सुंदर उपवन बन जाए मानव जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सुंदर उपवन बन जाए मानव जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

भांडुप, 13 जनवरी, 2024
भांडुप प्रवास के दूसरे दिन अध्यात्म के उत्कृष्ट पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि पाँच आश्रवों की बात बताई गई है। जैन विद्या में जो नौ तत्त्व बताए गए हैं, उनमें एक है-आश्रव। हमारी आत्मा संसार में परिभ्रमण करती है, उसका कारण आश्रव है। जन्म-मरण की परंपरा का हेतु आश्रव होता है। अगर प्राणी के आश्रव न रहे, तो उसी जन्म में मुक्ति हो जाती है। साधु के तो पाँच महाव्रत होते हैं, पर साधु के कई आश्रव रहते हैं। गृहस्थ भी आश्रवों से अपना बचाव करे। हिंसा, झूठ, चोरी भी आश्रव है। गृहस्थ इनसे निवृत्त होने का प्रयास करे।
अणुव्रत से अनेक जैन-अजैन लोग जुड़े हैं। हिंसा, झूठ, चोरी करना कोई धर्म नहीं कहता है। संकल्पपूर्वक हिंसा न हो। आश्रव संसार में जन्म-मरण की परंपरा को बढ़ाने वाले हैं। मनुष्य जन्म मिला है, इसमें मोक्ष जाने की तैयारी करें। यही मानव जीवन की सार्थकता है। मानव जीवन जो हमें प्राप्त है, उसका लाभ उठाएँ। सुबह-सुबह रोज एक सामायिक करने का लक्ष्य रखना अच्छी बात है।
जो धर्म करेगा उसकी आत्मा का विकास होगा। नमस्कार महामंत्र का इक्कीस बार जप तो रोज करना चाहिए। जैन धर्म में तो त्याग, संयम और तप की ही बात है। संतों की कल्याणी वाणी सुनने का प्रयास करें। साथ में यथाऔचित्य सेवा करने का प्रयास करें। मानव जीवन एक सुंदर उपवन बन जाए, जहाँ आध्यात्मिकता की फसल, फूल और फल हो। मानव जीवन सार्थक बने, यह काम्य है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में भांडुप तेरापंथ ट्रस्ट से सुरेश कोठारी ने अपनी भावना अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला, कन्या मंडल एवं तेयुप की प्रस्तुति हुई व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़ ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। मूर्तिपूजक समाज से भीमराज मादरेचा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। 50 व्यक्तियों ने समूह में महाश्रमण अष्टकम् का समुच्चारण किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।