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आत्मबल के धनी बालक थे आचार्यश्री तुलसी
चंडीगढ़।
मात्र 11 वर्ष की अल्प आयु में गुरु के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले बालक का नाम आचार्य तुलसी। 11 वर्ष तक गुरु के संरक्षण में रह अपना चहुँमुखी विकास करने वाले थे आचार्य तुलसी। बचपन से ही स्वच्छता प्रेमी, निर्भीक, मजबूत, दृढ़-संकल्पी, मजबूत मनोबल, आत्मबल के धनी बालक तुलसी के शुभ भविष्य को गुरु कालूगणी ने परख लिया। मात्र 22 वर्ष की उम्र में गुरु ने अपने युवा शिष्य तुलसी को युवाचार्य पद का दायित्व दिया। आचार्य तुलसी ने अपना पूरा जीवन साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं के निर्माण में, जन-जन का जीवन नैतिक बनाने के लिए लगा दिया। यह विचार मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने तेरापंथ भवन में आचार्य तुलसी के दीक्षा दिवस समारोह में व्यक्त किए।
मुनिश्री ने कहा कि आचार्य तुलसी अपने प्रवचन में गूढ़ तथ्यों को इतनी सरलता से समझाते थे कि सामान्य व्यक्ति को भी वे आसानी से समझ में आ जाते थे। प्रखर बुद्धि एवं वक्तृत्व कौशल के धनी आचार्य तुलसी आचरण व व्यवहार को भी अध्यात्म जितनी ही प्राथमिकता देते थे। इसलिए उनके प्रवचन एवं वार्तालाप में दैनंदिन जीवन की समस्याओं एवं उनके समाधान की चर्चा भी होती थी।मुनिश्री ने आगे कहा कि अणुव्रत लोगों में नैतिकता जगाने का आंदोलन था। अणु का अर्थ है छोटा और व्रत अर्थात संकल्प। आचार्यश्री का मत था कि हम यदि जीवन में छोटा सा व्रत लेकर उसका निष्ठा से पालन करें, तो न केवल अपना अपितु परिवार एवं आसपास वालों का जीवन भी बदल जाता है। अणुव्रत के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने व्यापक भ्रमण किया।