साधना के लिए आवश्यक है संघ का आश्रय : आचार्यश्री महाश्रमण
प्रथम दिवस पर पूज्य प्रवर ने की मर्यादा पत्र की स्थापना और दी सेवा करने की प्रेरणा
वाशी, नवी मुंबई।
14 फरवरी, 2024
बृहत्तर मुंबई में वाशी के मर्यादा समवसरण में युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा बसंत पंचमी एवं मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिन नमस्कार महामंत्र एवं आर्ष वाणी के सम्मुचारण के पश्चात मर्यादा महोत्सव की स्थापना एवं त्रि-दिवसीय कार्यक्रम के शुभारंभ की घोषणा की गई।
भारी मर्यादा बांधी संघ में:
बहुश्रुत परिषद् सदस्य मुनि दिनेश कुमार जी ने मर्यादा घोष का उच्चारण करवाकर ओजस्वी स्वरों में मर्यादा गीत का संगान किया।
गुरु दृष्टि में बस जाएं:
मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिन गीत का संगान कर उपासक श्रेणी ने कुछ ऐसे भाव प्रकट किए:
हम उपासक साधना में आगे बढ़ते जाएं।
अपना समय लगाए, गुरु दृष्टि में बस जाएं।।
प्रशासनिक राजधानी से आर्थिक
राजधानी पहुंचे उग्रविहारी:
उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी अपने सहवर्ती संतों के साथ दिल्ली से उग्रविहार कर नवी मुंबई गुरु चरणों में पधारे। मुनिश्री ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि हम दिल्ली से नहीं दिल से आये हैं, आज गुरुदेव के दर्शन पाकर आह्लाद की अनुभूति कर रहे हैं। मुनि श्री ने दिल्ली प्रवास की संक्षिप्त जानकारी गुरु चरणों में निवेदित की।
पूज्यप्रवर का संदेश लेकर पुनः किया विहार:
पूज्य गुरुदेव ने अनंत कृपा करवा कर मुनि कमल कुमार जी को साध्वी सोमलताजी (मुनिश्री की संसारपक्षीय बहिन) को दर्शन देने एवं चित्त समाधि पहुंचाने के लिए अपना संदेश देकर प्रस्थान करवाया।
साध्वियों की ओर से सेवा का निवेदन:
साध्वी जिनप्रभाजी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- तेरापंथ की विलक्षणता का एक घटक है- सेवा। आचार्य भिक्षु ने शिष्य प्रथा को िनरस्त कर एक मात्र आचार्य को उनके योगक्षेम का अधिकार दिया। साध्वी िजनप्रभाजी ने साध्वी समुदाय के साथ सेवा केन्द्रों में सेवा देने के अवसर प्रदान करने हेतु पूज्य चरणों में निवेदन किया।
संतों की ओर से भी हुआ निवेदन:
मुनि कुमारश्रमण जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- मर्यादा को अक्षुण्ण बनाये रखने में सेवा और सेवा केन्द्रों की व्यवस्था का अहम योगदान है। चित्त समाधि पहुंचाना सेवा का मूल रूप है। संतों की ओर से सेवा केंद्र में चाकरी हेतु निवेदन किया गया।
आचार्य पर है सेवा का दायित्व:
साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि किसी भी संस्था, संघ या संगठन की दीर्घजीविता और अखंडता का एक प्रमुख तत्त्व है- सेवा। आगामों में बताया गया है कि गुरु और वृद्ध की सेवा मोक्ष का मार्ग है। तेरापंथ की सेवा विलक्षण सेवा है, जहां सभी साधु-साध्वियों की सेवा और समाधि का दायित्व आचार्य पर होता है। आचार्य न केवल साधु-साध्वियों या समणियों को अपितु श्रावक-श्राविकाओं को भी चित्त समाधि पहुंचाते हैं। इस धर्मसंघ की दहलीज पर कदम रखते ही साधु- साध्वियों और समणियों को सेवा के संस्कार प्राप्त हो जाते हैं। इस भैक्षवशासन की छत्रछाया में कोई भारभूत नहीं होता। इतिहास मिलता है कि साध्वी अणचांजी ने 16 वर्षों में 63 साध्वियों को संभाला था।
सेवा की महिमा तो हर कोई गा सकता है पर अग्लान भाव से सेवा करना कठिन है। सेवाभावी में चित्त की पवित्रता, उपाय तोषण, सेवा की कला, आत्मीयता का भाव ये चार गुण होने चाहिए तभी वह सेवा समाधि दे सकती है।
साधना के लिए आवश्यक है संघ का आश्रय:
परम पावन मर्यादा के शिखर पुरुष आचार्य प्रवर ने अपनी मंगल देशना में कहा - धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। अहिंसा, संयम और तप धर्म है, इनके सिवाय धर्म का और कोई अंग अवशिष्ट नहीं रहता। धर्म की साधना व्यक्तिगत, आत्मगत होती है। इसके सहायक निमित्त के रूप में संगठन हो सकता है। साधना के अनुकूल परिस्थिति प्राप्त करने के लिए संघ का आश्रय लिया जा सकता है। जहाँ संघ होता है, अनेक व्यक्ति साथ में साधना करते हैं वहां मर्यादा, व्यवस्था, अनुशासन, मुखिया की आवश्यकता होती है।
देश का अपना संविधान, सरकार, प्रशासन होते हैं तो देश व्यवस्थित ढंग से गति प्रगति कर सकता है। धर्मसंघ में मर्यादाएं, व्यवस्थाएं, विधान, मुखिया होता है तब धर्मसंघ भी अच्छा चल सकता है। हमारे धर्म संघ में मुखिया और विधान दोनों की व्यवस्था है।
जहां संघ होता है वहां कोई रुग्ण भी हो सकता है, वृद्ध भी हो सकता है या अन्य कठिनाई या अपेक्षा भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में सेवा की बात आवश्यक हो जाती है। तत्वार्थाभिगम सूत्र में आचार्य उमास्वाति ने लिखा है- परस्परोपग्रहो जीवानाम् - जीवों का परस्पर आलंबन होता है। एक जीव दूसरे जीव का आलंबन बनता है, उपकार करता है। यह सूत्र सेवा का आधार सूत्र बन सकता है।
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय, ये दूसरों के आलंबन बनते हैं। जीवास्तिकाय- जीव-जीव के काम आता है, उपकार करता है। एक साधु ज्ञानी है, बहुश्रुत है, शास्त्रों का ज्ञाता है, समसामयिक विषयों पर अच्छी पकड़ रखता है, वह दूसरे साधुओं को ज्ञान दे सकता है। कोई भाषण देने में कुशल हैं, कोई व्यवस्था में सहयोग करते हैं, कोई गोचरी की व्यवस्था करते हैं, हर कोई अपनी विशेषता के द्वारा दूसरों का उपकार कर सकते हैं। पुरानी परंपरा है कि बहिर्विहार के साधु-साध्वियां भेंट लाते हैं, धर्मोपकरण की व्यवस्था कर उपकार करते हैं।
मुनि सोहनलाल जी का है उपकार:
पूज्य प्रवर ने संतों के कला कौशल की भी प्रशंसा करते हुए कहा कि मुनि सोहनलालजी 'चाड़वास' भी कला में कुशल थे। मुझे उनके पास कुछ समय रहने का भी अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने मुझे थोकड़ों का ज्ञान, तत्त्व ज्ञान, तेरापंथ की दान दया के सिद्धांत आदि बचपन में सिखाए थे। ये भी उनका एक उपकार था । गुरु और संघ के प्रति भी उनकी भक्ति अदभुत थी ।
बड़ा होने का अर्थ श्रमहीन होना नहीं:
गुरुदेव तुलसी ने कितनी यात्राएं की, साहित्य, प्रशासन, प्रबंधन, जनसंपर्क, अणुव्रत आदि का कितना कार्य किया , सेवा की। उन्होंने मानों यह पाठ पढ़ाया कि बड़ा होने का अर्थ श्रमहीन होना नहीं है। साधु-साध्वियां शारीरिक-मानसिक सेवा से अन्य साधु-साध्वियों को चित्त समाधि पहुंचाने का प्रयास करें।
प्रकृति से जटिल हो, उसे भी स्वीकार करने का प्रयास करें। गृहस्थ भी परिवार में सभी को परोठ कर चलें। फूल के साथ कांटा भी हो सकता है, पर एक साथ रहकर कार्य करने का प्रयास करना चाहिए।
पूज्यप्रवर ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु- साध्वियां धर्मसंघ के सेवा केन्द्रों में :
1. अंतर्मन से सेवा करें।
2. चित्त समाधि का ध्यान दें।
3. मर्यादा, व्यवस्था का भी पालन करें।
4. उपकरणों का अनावश्यक संग्रह न हो, उनका निरीक्षण भी करें।
सेवा केंद्रों में नव नियुक्तियां कर चित्त समाधि का दिया आशीर्वाद:
आचार्य प्रवर द्वारा आगामी कार्यकाल के लिए सेवा केंद्रों में सेवादायी सिंघाडों की घोषणा की गई। इन घोषणाओं के साथ ही पूज्यप्रवर ने मुनि विनोद कुमार जी को अनिश्चित काल के लिए व्यवस्थापक के रूप में नियुक्त किया।
सभी साधु साध्वियों को चित्त समाधि में रहने एवं संयम और तप से स्वयं को भावित करने की प्रेरणा प्रदान की।
आचार्य वर ने महासभा, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद्, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम आदि संगठन मूलक संस्थाओं, श्रावक श्राविकाओं की सेवा का भी उल्लेख किया।
जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित जय तिथि पत्रक, मित्र परिषद् कोलकाता द्वारा प्रकाशित तिथि दर्पण, मुनि जिनेश कुमार जी द्वारा लिखित एवं जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित शासन श्री मुनि श्री मोहन लाल जी आमेट की जीवनी 'अलबेले संघ सेनानी' का लोकार्पण पूज्यप्रवर को भेंट कर किया गया। मुनि मोहनलाल जी स्वामी के बारे में उद्गार फरमाते हुए आचार्यप्रवर ने कहा मुनिश्री मोहनलाल जी स्वामी गुरुदेव तुलसी के युग के अपने ढंग के संत थे, तेरापंथ के सिद्धांत, संस्कार, क्षेत्र की संभाल आदि में कुशलता प्राप्त थे। मुनि जिनेश कुमार जी उनके पास रहे हुए हैं, उनमें में भी वैसे ही संस्कार हैं। मुनि मोहनलाल जी के जीवनवृत्त से दूसरों को प्रेरणा प्राप्त हो सकेगी।
तेरापंथ सभा वाशी के अध्यक्ष विनोद बाफना, पूर्व राज्य सभा सांसद डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे, स्वागताध्यक्ष चांदमल दुगड़, नवरतनमल गन्ना आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ समाज वाशी ने 160 मर्यादा महोत्सवों की झांकी प्रस्तुत करते हुए जय हो भैक्षव शासन गीत का सामूहिक संगान किया गया। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति ने सामूहिक गीत का संगान किया। औरंगाबाद में आयोज्य अक्षय तृतीया महोत्सव एवं जालना में आयोज्य आचार्य प्रवर के दीक्षा कल्याण महोत्सव, जन्मोत्सव, पट्टोत्सव कार्यक्रम से संदर्भित बैनर का अनावरण किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुिन िदनेश कुमार जी ने िकया।
साध्वियों के सेवा केंद्र
1- लाडनूं : साध्वी प्रमिलाकुमारी जी
2- बीदासर : साध्वी कार्तिकयशा जी
3- श्रीडूंगरगढ़ : साध्वी कुंथुश्री जी
4- गंगाशहर : साध्वी चरितार्थप्रभा जी
एवं साध्वी प्रांजलप्रभा जी
5- हिसार (उप सेवा केंद्र) :
साध्वी सरोज कुमारी जी
संतों के सेवा केंद्र
1- छापर : मुनि विनोद कुमार जी
2- लाडनूं : मुनि रणजीत कुमार जी