आज देश को जरूरत है मर्यादा और निष्ठा की

आज देश को जरूरत है मर्यादा और निष्ठा की

आज के इस उच्छृंखल व अनुशासनहीन युग में अक्सर सुनने को मिलता है-‘नियम तो बनाए ही जाते हैं, तोड़ने के लिए’। आमतौर पर देखने को भी मिलता है, एक व्यक्ति सिग्नल तोड़ता है और पीछे-पीछे कई आगे बढ़ जाते हैं। सड़क के किनारे पर रखे कूड़ेदान खाली पड़े हैं और सड़क पर बेझिझक कूड़ा फेंका जा रहा है। आसपास लिखे गए दिशा-निर्देशों का पालन तो दूर, ज्यादातर लोग तो उसे पढ़ते ही नहीं। और तो और भारतीय लोग जब कभी विलंब से पहुँचते हैं, तो ‘इंडियन स्टैंडर्ड टाइम’ कहकर व्यंग्य और मजाक में ही सही, खुद को वाजिब ठहराने का प्रयास करते हैं। यह आज एक प्रवृत्ति हो गई है। यही अनुशासनहीनता एक दिन परिवार, समाज व देश के सामने संकट की स्थिति उत्पन्न कर देती है।
प्रश्न उपस्थित होता है आखिर लोग नियमों पर अमल क्यों नहीं करते? क्यों अनुशासनहीनता आज एक ज्वलंत समस्या के रूप में उभर रही है। लगता है व्यक्ति को अनुशासनहीन बनाने में उसकी मानसिकता निमित्त बनती है। वातावरण का भी प्रभाव होता है। एक बच्चा बड़ा (व्यस्क) होने तक सैकड़ों- हजारों बार यहाँ कोई नियम-कानून नहीं है, कहीं कोई सुनवाई नहीं होती, सब पैसों का खेल है, भ्रष्टाचारी तो मजे में हैं जैसे वाक्य सुन लेता है। दूरदर्शन, सिनेमा व समाचार पत्रों के माध्यम से आए दिन यही ज्ञान व संस्कार परोसा जा रहा है। नियम तोड़ने पर सजा न मिलना भी नियमों की अवहेलना को बढ़ा रहा है।
कभी-कभार व्यक्ति निष्ठापूर्वक तो नहीं, लेकिन दंड, सजा आदि के डर से नियमों का पालन भी कर लेता है। जैसे, चौराहे पर जो लोग ट्रैफिक लाइट की अनदेखी कर आगे बढ़ते हैं, वही लोग सिपाही को देखकर रुकते भी हैं। अपनी सलामती के लिए नहीं ही सही, व्यक्ति जुर्माने से बचने के लिए कई बार हेलमेट पहनता है। कुछ भारतीय भारत में तो नहीं, लेकिन विदेशों में नियमों का बाकायदा पालन करते हैं, क्योंकि सब ऐसा कर रहे होते हैं, साथ ही नियम के उल्लंघन का दंड भी भारी भरकम होता है।
लेकिन इस प्रकार डर से नियमों का पालन करना ज्यादा फायदेमंद नहीं है। नियमों का निष्ठा से पालन करने के लिए लोगों को यह अहसास कराना जरूरी है कि ये नियम हमारे सुरक्षा कवच हैं। ये नियम हमारे जीवन को संवारने वाले हैं। ये हमारी सुविधा और सहयोग के लिए हैं। और जब यह नियम निष्ठा जग जाएगी, फिर चाहे कोई देखे या न देखे, कोई दंड मिले या ना मिले, व्यक्ति आत्म साक्षी से नियमों का पालन करेगा।
इस नियम निष्ठा के परिप्रेक्ष्य में यदि अवलोकन किया जाए तो जीता-जागता उदाहरण है-तेरापंथ धर्मसघ। यह एक मर्यादित व अनुशासित धर्मसंघ है। स्वतंत्रता के इस युग में, जहाँ मर्यादा को तोड़ना ही महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है, जहाँ स्वतंत्र रूप से काम बनने का मनोभाव बढ़ रहा है, वहाँ इस धर्मसंघ में सैकड़ों-लाखों लोगों की बागड़ोर एक आचार्य के हाथ में रहती है। एक आचार्य का नेतृत्व सबको मान्य होता है। आचार्य स्वयं मर्यादित रहते हुए संघ को मर्यादित रखते हैं। जहाँ मर्यादा का अतिक्रमण होता है, वहाँ जागरूकता के साथ उसे रोकते हैं। साधु-साध्वियों को मर्यादा, अनुशासन, विनय, सेवा व समर्पण के संस्कार दीक्षित होते ही जन्मघुट्टी के रूप में दिए जाते हैं और साधु-साध्वियाँ भी किसी दबाव से नहीं, बल्कि पूर्ण निष्ठा के साथ आचार्य के आज्ञा-निर्देश का पालन करते हैं। क्योंकि उनको प्रारंभ से ही मनोवैज्ञानिक तरीके से इस प्रकार के आध्यात्मिक संस्कार दिए जाते हैं कि मर्यादाओं का उल्लंघन करना दूसरों के लिए नहीं, लेकिन स्वयं के लिए हानिकारक है। यहाँ मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाला कभी सम्मान प्राप्त नहीं करता। कई बार तो उल्लंघन करने वालों का संघ से संबंध-विच्छेद भी कर दिया जाता है। और जो मर्यादा का निष्ठा से पालन करता है, उसे समय-समय पर पुरस्कृत व सम्मानित किया जाता है। इन्हीं मर्यादाओं के कारण यह धर्मसंघ आज 263 वर्ष बाद भी एकसूत्र के धागे में बँधा हुआ है। एक गुरु और एक संविधान इस धर्मसंघ की पहचान बनी हुई है और इस तेरापंथ धर्मसंघ के प्राणतत्त्व हैं-मर्यादा निष्ठा, अनुशासित जीवनशैली, एक आचार्य का नेतृत्व व एक संविधान।
इस मर्यादा निष्ठा को और अधिक सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए यहाँ प्रतिवर्ष मनाया जाता है मर्यादा महोत्सव। मर्यादा महोत्सव महान सांस्कृतिक कार्यक्रम है। यह विश्व भर के पर्वों, उत्सवों और त्योहारों में एक विलक्षण महोत्सव है। इस महोत्सव में संघीय व शास्त्रीय मर्यादाओं की जानकारी दी जाती है। समय-समय पर मर्यादाओं में परिवर्तन, परिशोधन व परिवर्धन होता रहता है। यह महोत्सव संघ के प्रत्येक सदस्य में नई प्रेरणा, नई ऊर्जा व नए उत्साह का संचार करता है। इसमें यहाँ केवल साधु-साध्वियों में ही नहीं, श्रावक समुदाय में भी मर्यादा, अनुशासन व संघीय संस्कार कूट-कूटकर भरे जाते हैं। आस्था और आचरण को पवित्र व पुष्ट करने की प्रेरणा मिलती है। ताकि संघ के प्रत्येक सदस्य की मर्यादा निष्ठा उत्तरोत्तर बढ़ती रहे।
इस महोत्सव को देखने के लिए हजारों लोग एकत्रित होते हैं। कभी-कभी यह संख्या पचास-साठ हजार तक भी चली जाती है। इतने लोगों की भीड़, इतने कार्यक्रम पर व्यवस्था के लिए कभी पुलिस की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि यहाँ सब स्वयं अनुशासित है। अस्तु! काश इस मर्यादा महोत्सव से प्रेरणा लेकर सरकार द्वारा भी मनोवैज्ञानिक तरीके से, जागरूकता अभियान चलाकर प्रत्येक देशवासी में नियम पालन के प्रति ऐसी निष्ठा जगाई जाए कि देश का हर व्यक्ति अपने जीवन की मर्यादाओं का, अपनी परंपराओं का, अपनी संस्कृति का मूल्यांकन करे, उन्हें सुरक्षित व विकसित करने का प्रयास करे तो समूचे देश का बहुत बड़ा हित हो सकता है।