संस्कार युक्त शिक्षा है परिपक्व विकास में सहायक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संस्कार युक्त शिक्षा है परिपक्व विकास में सहायक : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट के 14वें दीक्षांत समारोह में पहुँचे महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस

वाशी, 19 फरवरी, 2024
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट के 14वें दीक्षांत समारोह में प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। जैन आगमों में भी ज्ञान की बातें आती हैं। ज्ञान से आदमी भावों को जानता है। श्रीमद् भगवत् गीता में ज्ञान के लिए कहा गया है कि ज्ञान के समान कोई पवित्र चीज नहीं होती है। ज्ञान को प्राप्त करना, ज्ञान की आराधना करना और उसके लिए समर्पित हो जाना अपेक्षित होता है। जैन आगमों में बताया गया है कि ज्ञान प्राप्ति में पाँच बाधाएँ हैंµअहंकार, गुस्सा, प्रमाद, रोग और आलस्य। विद्यार्थी को चाहिए कि वह अहंकार मुक्त होकर ज्ञान का अर्जन करे, अपने मन को ज्यादा से ज्यादा शांत, गुस्से से रहित रखने का प्रयास करें, प्रमाद-कषाय आदि से बचने का प्रयास करें और शरीर व मन में बीमारी न रहे। शरीर और मन स्वस्थ होगा तो ज्ञान प्राप्ति में बड़ा सहयोग मिल सकता है। विद्यार्थी आलस्य से बचकर सम्यक् पुरुषार्थी बने रहने का प्रयास करे तो प्रतिभा आदि का योग होने पर ज्ञान प्राप्ति में सफल हो सकता है। ज्ञान का बड़ा महत्त्व है, ज्ञान के साथ आदमी के भाव भी शुद्ध हो, आचरणों में अच्छे संस्कार रहें। संस्कार युक्त शिक्षा हो तो ज्ञान और आचार दोनों का विकास होने पर विद्यार्थी परिपक्व, सक्षम और उपयोगी बन सकता है।
शिक्षा संस्थान सरस्वती की आराधना के स्थल होते हैं। शिक्षक ज्ञान प्रदान करते हैं, विद्यार्थी ज्ञान ग्रहण करते हैं, इस प्रकार ज्ञान के आदान-प्रदान से मानो सरस्वती की आराधना हो जाती है।
जैन विश्व भारती संस्थान के प्रथम अनुशास्ता परमपूज्य गुरुदेव आचार्य तुलसी भी स्वयं एक प्रकार से शिक्षण देने वाले, अध्यापन करने वाले भी रहे और उन्होंने अणुव्रत के रूप में एक ऐसा कार्यक्रम चलाया कि कैसे आदमी
अच्छा रहे, उसके जीवन में छोटे-छोटे अच्छे संकल्प रहें। अणुव्रत का अभी 75वाँ वर्ष अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष चल रहा है। अणुव्रत गीत का आंशिक संगान करते हुए पूज्यप्रवर ने कहा कि इस अणुव्रत गीत में संयम और नैतिकता की प्रेरणा दी गई है। ऐसे गीतों को बार-बार गाने से भीतर के भावतंत्र से भी कुछ शुद्धता का संचार हो सकता है, साथ में संकल्प बल जुड़ जाए तो नैतिकता, संयम आदि अच्छे सिद्धांत व्यवहार गत भी हो सकते हैं। विद्यार्थी परिश्रम करके उपाधि प्राप्त करें। परिश्रम के बिना अंक ज्यादा मिल भी जाए तो वे अंक ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होते हैं। विद्यार्थी में ज्ञान प्राप्ति के लिए निष्ठा होनी चाहिए कि मुझे अंक मिलें पर वे पढ़ाई, परिश्रम के आधार पर मिलें, बिना परिश्रम के मुझे अंक नहीं चाहिए।
जैन विश्व भारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी, पढ़ाने वाले प्राध्यापक और संचालन करने वाले सदस्य ज्ञान के विकास के प्रति जागरूक रहें। साथ में ईमानदारी, अहिंसा, नैतिकता, संयम इन मूल्यों का भी विद्यार्थियों एवं संस्थान के हर सदस्य में अच्छा विकास हो सके, इस संदर्भ में भी प्रयास होता रहना चाहिए। दीक्षांत समारोह में ज्ञान प्राप्ति के संदर्भ में प्रमाणित किया जाता है। इसके साथ-साथ हमारा चरित्र, आचार और संस्कार भी अच्छे रहें। भले इसकी कोई डिग्री मिले न मिले पर व्यक्ति में इन अच्छाइयों के विकास का प्रयास भी होना चाहिए। जैन विश्व भारती संस्थान के दूसरे अनुशास्ता परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान का क्रम आगे बढ़ाया। अध्यात्म योग, जीवन-विज्ञान उपक्रम भी यथायोग्य विद्यार्थियों के प्रयोग में आते रहें। जीवन में बौद्धिक, भावनात्मक और शारीरिक विकास होता है तो विद्यार्थी सुयोग्य बन सकता है। जैन विश्व भारती संस्थान परिवार आध्यात्मिक, नैतिक मूल्यों के उत्थान में भी सक्रिय बना रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत पूज्यप्रवर के नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ हुई। तदुपरांत समणीवृंद ने मंगलाचरण स्वरूप गीत की प्रस्तुति दी। कुलपति बच्छराज दुगड़ ने संस्थान की जानकारी प्रस्तुत की। कुलाधिपति अर्जुनराम मेघवाल की आज्ञा से कुलपति ने दीक्षांत समारोह के शुभारंभ की घोषणा की। कुल सचिव प्रोफेसर बी0एल0 जैन के निवेदन पर अलग-अलग विभागाध्यक्षों ने अपने-अपने विभाग से उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को आमंत्रित किया। मुनि आलोक कुमार जी को भी योग एवं जीवन विज्ञान विभाग में पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई। महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहाµजैन विश्व भारती संस्थान के 14वें दीक्षांत समारोह में सम्मिलित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। यह दिन सभी स्नातकों के लिए विशेष रूप से यादगार दिन है, क्योंकि आचार्यश्री महाश्रमण जी की शुभ उपस्थिति में सभी स्नातक अपनी उपाधि प्राप्त कर रहे हैं।
महाराष्ट्र संतों और समाज सुधारकों की भूमि रही है, यहाँ अनेक संतों का जन्म हुआ है। इसी भूमि पर सिख धर्म के गुरु गोविंद सिंह जी ने अंतिम कुछ वर्ष बिताए थे। हमारा सौभाग्य है कि हमारे मध्य में जैन संत आचार्यश्री महाश्रमण जी विराजमान हैं। जैन धर्म भारत की पूरे विश्व को देन है। जैन धर्म ने हमेशा शांति, अहिंसा और समन्वय का प्रसार किया है। महात्मा गांधी के विचारों पर जैन धर्म शास्त्रों का गहरा प्रभाव था। आज जैन धर्म की शिक्षाएँ विश्व के लिए पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। जैन श्वेतांबर तेरापंथ संघ के प्रति मेरे मन में हमेशा से बहुत अधिक आदर और सम्मान रहा है। भारत की स्वतंत्रता के बाद आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया था, जिसमें छोटी-छोटी प्रतिज्ञाओं के माध्यम से युवाओं के चरित्र निर्माण पर जोर दिया गया। उन्होंने राष्ट्र चेतना जगाने के लिए लाखों किलोमीटर की यात्रा की थी। आचार्य तुलसी के पश्चात तेरापंथ संघ का नेतृत्व विज्ञान विचारक आचार्य महाप्रज्ञ जी ने किया। संस्थान के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी के आध्यात्मिक अनुशासन निर्देशन में यह संस्था चेतनावान कर्णधारों का निर्माण कर रही है।
अपनी देशव्यापी यात्रा से पूज्य आचार्य महाश्रमण जी नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। जैन विश्व भारती संस्थान एक अनूठा विश्वविद्यालय है जहाँ उच्च शिक्षा के साथ-साथ युवाओं में संस्कारों का सिंचन भी होता है। मुझे खुशी है कि आज के दीक्षांत समारोह में दो महत्त्वपूर्ण हस्तियों को संस्थान द्वारा मानद् डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की जा रही है। के0वी0 कामत तथा प्रोफेसर दयानंद भार्गव देश की बौद्धिक संपदा के बहुमूल्य रत्न हैं, मैं उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ तथा उनका अभिनंदन करता हूँ। मैं जैन विश्व भारती संस्थान के विद्यार्थियों को कहना चाहूँगा कि देश के नव निर्माण में अपना योगदान दें। जिन-जिन विद्यार्थियों को डिग्री प्राप्त हुई उन्हें बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। समारोह में संस्थान द्वारा जियो फाइनेंसियल लिमिटेड के चेयरमैन के0वी0 कामत व जोधपुर यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ0 दयानंद भार्गव को डीलिट् की मानद उपाधि प्रदान की गई। कामत व डॉ0 भार्गव के प्रशस्ति पत्र का वाचन डॉ0 नलिन के0 शास्त्री ने किया। दोनों मानद उपाधि प्राप्तकर्ताओं ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को प्रस्तुत किया।
जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट के कुलाधिपति अर्जुनराम मेघवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारा सौभाग्य है कि आचार्यश्री महाश्रमण जी की मंगल सन्निधि में इस समारोह में संभागी बन रहे हैं। परम पूजनीय आचार्यश्री तुलसी की दूरगामी दृष्टि के फलस्वरूप इस संस्थान को मान्य विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया। आचार्यश्री का चिंतन था कि मूल्यपरक शिक्षा के बिना अच्छे मानव का निर्माण संभव नहीं हो सकता। यह संस्थान अनेक कार्यों में आगे बढ़ रहा है। इसे आचार्यश्री का निरंतर आशीर्वाद प्राप्त होता रहे। कार्यक्रम का संचालन कुल सचिव प्रोफेसर बी0एल0 जैन ने किया।