तेरापंथ का महाकुंभ है मर्यादा महोत्सव
बीदासर
साध्वी रचनाश्रीजी के सान्निध्य में 160वाँ मर्यादा महोत्सव का आयोजन किया गया। साध्वी रचनाश्री जी ने कहा कि संस्कृत साहित्य के एक श्लोक में आता है कि जिस प्रकार आकाश का भूषण है सूरज, वक्ता का भूषण है सत्य, वैभव का भूषण है ममत्व विसर्जन, मन का भूषण है मैत्री की भावना, उसी प्रकार संघ का भूषण शिष्यों का समर्पण है। संघ के प्रति शिष्यों का समर्पण ही संघ को तेजस्वी बनाता है। आचार्यप्रवर के सान्निध्य में लाखों-लाखों लोग आते हैं। वे इस युग के प्रभावक आचार्य हैं। क्योंकि वे स्वयं मर्यादा, अनुशासन और व्यवस्था का पालन करते हुए, संघ के साधु-साध्वियों को भी पालन करने की प्रेरणा देते हैं।
इस अवसर पर साध्वी कार्तिकयशा जी ने कहा कि स्वामी विवेकानंदजी ने शिकागो की यात्रा संपन्न कर स्वदेश लौटने पर पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा-मैं यात्रा पर जाने से पहले अपने देश से प्यार करता था, लेकिन अब मैं इसकी पूजा करना चाहता हूँ। क्योंकि इसकी धर्म संपदा आज भी सुरक्षित है। यहाँ की आध्यामिक चेतना पूजनीय है। वैसे ही तेरापंथ की अध्यात्म चेतना, आज्ञा निष्ठा, मर्यादा निष्ठा और एक गुरु का अनुशासन विलक्षण है, पूजनीय है, आचरणीय है।
काई भी उत्सव मनाने के दो कारण हैं-एक अपने आराध्य को स्मरण करना और दूसरा उसकी महिमा और गौरव को उजागर करना। यह महोत्सव भी आचार्य भिक्षु को स्मरण करता हुआ उनके द्वारा बनाई गई मर्यादाओं की महिमा और गौरव को उजागर करता है। यह मर्यादा हमारे लिए बंधन नहीं, जीवन का प्रबंधन बने। शासनश्री साध्वी साधनाश्री जी ने गीत के माध्यम से भावना व्यक्त की। साध्वी जयंतयशा जी, साध्वी ऋजुप्रभा जी ने विचार व्यक्त किए। साध्वीवृंद ने सुमधुर गीत का सामूहिक संगान किया। महिला मंडल ने मंगलाचरण किया। साध्वी लब्धियशा जी ने कार्यक्रम का संचालन किया।