शक्ति का विवेक के साथ हो सदुपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शक्ति का विवेक के साथ हो सदुपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

वाशी, मुंबई। २१ फरवरी, २०२४

ग्यारह दिवसीय वाशी प्रवास के अन्तिम दिन तेरापंथ के महासूर्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने मर्यादा समवसरण में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि जीवन में शक्ति का बहुत महत्त्व होता है। शक्ति के योग से आदमी कुछ भी कर सकता है, शक्तिहीन आदमी क्या कर पायेगा? सबल होना एक विशेष बात होती है।
अनेक प्रकार के बल बताए गए हैं। पहला है, तन बल- शरीर यदि शक्ति सम्पन्न है, ऊर्जावान है, सबल है तो व्यक्ति कोई भी कार्य कर सकता है। दूसरा है, मन बल- मनोबल हो तो आदमी असंभव काम के लिए भी साहस कर सकता है। मन कमजोर पड़ने से कोई भी काम करना मुश्किल हो सकता है। तीसरा बल बताया गया- वचन बल। किसी के पास वाणी का बल हो तो उसका कहा हुआ दूर तक सुना जा सकता है। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी माइक के बिना भी प्रवचन-व्याख्यान फरमाते थे। आज तो माइक की व्यवस्था है, जिससे जोर से बोलने की अपेक्षा नहीं रहती। फिर भी वाणी का बल और प्रभाव होना चाहिए ताकि जो बात कही जाए वो स्वीकार कर ली जाए।
गृहस्थों में धनबल का भी महत्व है। साथ में जनबल का भी महत्व है। चुनाव में जनबल का साथ है तो उम्मीदवार जीत सकता है। बुद्धि का भी बल होता है। जिसके पास बुद्धि है उसके पास बौद्धिक बल होता है। चिंतन, सोच, योजना और क्रियान्विति इन सबके लिए बुद्धि का बल आवश्यक है। अध्यात्य साधना का बल, तपोबल का भी विशेष महत्व होता है। शास्त्रकार ने कहा- शक्ति का गोपन मत करो। शक्ति का सदुपयोग करें। दुर्जन आदमी शक्ति का दुरुपयोग कर लेता है, सज्जन आदमी शक्ति का सदुपयोग करता है। दुर्जन के पास विद्या है तो वह उसका विवाद में दुरुपयोग करता है। सज्जन के पास विद्या है तो वह उसे दूसरों को बांटने में, अच्छा कार्य करने में या संवाद करने में उपयोग कर लेता है। दुर्जन आदमी का धन मद का कारण भी बन जाता है। दुर्जन अहंकार से धन का दुरुपयोग करता है। सज्जन धन का उपयोग दान में, सद्कार्य में करता है। सबल होना एक उपलब्धि है पर उसके उपयोग का विवेक होना चाहिए। अच्छे कार्यों में शक्ति को लगाओ। दुनिया में कमजोर-निर्बल होना मानो अभिशाप है, शक्तिशाली होना अच्छी बात हो सकती है पर उस शक्ति का सदुपयोग हो। शक्ति का उपयोग पाप कर्म करने में नहीं हो। ताकत होने पर भी संयम रखें, विद्या होने पर भी मौन रखें, प्रदर्शन, दिखावा न करें, शक्ति होने
पर भी क्षमा का भाव रखें, दान करके प्रशंसा पाने का प्रयास न करें, निष्काम भाव से दान करें। शक्ति का विकास जितेना अपेक्षित हो उतना विकास भी किया जा सकता है। परंतु प्रतिकूल स्थिति आए तो उसमें समभाव रखना चाहिए। भगवान महावीर में कितना बल था। उनका शरीर वज्र ऋषभनाराच संहनन का था। १२.५ वर्षों तक उन्होंने कितने उपसर्गों को सहन किया था। हम भी मन के प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने का प्रयास करें। हमारे पूर्वाचार्यों आचार्य भिक्षु, आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ जी के जीवन को हम देखें, उनमें ज्ञान का बल, प्रतिभा, शरीर का बल आदि का साक्षात्कार होता है। आदमी यह ध्यान रखे कि मैं बल का दुरुपयोग करने से बचूं।
सभी संयम का बल रखें, अहिंसा भी बलवती हो। डरपोक होकर नहीं, निर्भीक होकर अहिंसा की साधना करें। हम अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने से बचने का प्रयास करें, जितना हो सके सदुपयोग करने का प्रयास करें। आचार्य प्रवर ने अणुव्रत गीत के आंशिक संगान के साथ संयम और अहिंसा की प्रेरणा दी।
मुख्य प्रवचन के पश्चात पूज्य प्रवर की सन्निधि में जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित एवं साध्वी वीरप्रभाजी द्वारा लिखित पुस्तक 'Theory of Numbers in Jain Agam' का लोकार्पण किया गया। साध्वी वीरप्रभाजी ने पुस्तक के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने गीत का संगान किया। वाशी सभाध्यक्ष विनोद बाफना, नीरज बंब, तेयुप अध्यक्ष महावीर सोनी, मंत्री अरविंद खांटेड़ ने अपनी भावना असिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।