१६०वें मर्यादा महोत्सव के विविध कार्यक्रम
लातूर
अनुशासन और मर्यादा का पथ फूलों से नहीं कांटों से भरा है। उस पथ से गुजर जाने के बाद हर कांटा फूल बनकर मुस्करा उठता है। नये सृजन की प्रतीक्षा का नाम है-मर्यादा। जो अनुशासन में नही रह सकता वो कभी भी स्वतंत्र नही हो सकता। मर्यादा का अस्वीकार जीवन की पहली हार है। मर्यादा का तिरस्कार जीवन को बेकार बना देता है। यह विचार मुनि अर्हतकुमार जी ने मर्यादा महोत्सव कार्यक्रम पर व्यक्त किये। मुनिश्री ने बताया कि आर्य भिक्षु ने मर्यादाओं का सूत्रपात किया।
पूर्ववर्ती आचार्यो ने अपने खून-पसीने से इस धर्म संघ को सींचा व जयाचार्य ने इसे महोत्सव का रूप दिया। तेरापंथ धर्म संघ में मुख्य पांच मर्यादाए हैं जिन्होंने संघ की नींव को गहरी बनाया है। मुनि भरत कुमार जी ने बताया कि आर्य भिक्षु ने मर्यादा का सुन्दर कवच बना कर तेरापंथ धर्म संघ को सुदृढ़ बना दिया। लोग सोचते हैं कि मर्यादा ने हमारी आजादी को हमसे छीन लिया और हमें बन्धन में डाल दिया, पर वे समझ नहीं पाते हैं कि मर्यादा ही हमारी सफलता की पहली सीढ़ी है।
अनुशासन जीवन को संवारने और निखारने वाला तत्त्व है। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित सोलापुर विद्यापीठ के पूर्व कुलगुरु डॉ देबेन्द नाथ मिश्रा व आचार्यश्री महाश्रमण अक्षय तृतीया प्रवास समिति, औरंगाबाद के अध्यक्ष सुभाष नाहर ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन मुनि जयदीपकुमार जी ने किया।