भिन्नता होते हुए भी बनी रहे अभिन्नता : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन शासन की श्वेतांबर परंपरा का आज यह त्रिवेणी संगम है जहां मूर्ति पूजक आम्नाय, स्थानकवासी आम्नाय और तेरापंथ आम्नाय का संगम हो रहा है। तीन समुद्रों के संगम कोई देखने जाते होंगे, आज तो यहां देख लो त्रिवेणी पास-पास स्थित है। उपरोक्त विचार परम पूज्य युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मुख्य प्रवचन में समुपस्थित विशाल जनमेदिनी को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। पूज्यवर ने फरमाया कि जैन शासन से हम जुड़ें हुए हैं, जैन शासन में दो धाराएं हैं दिगम्बर परम्परा और श्वेतांबर परम्परा। कई बार दिगम्बर परम्परा के मुनियों आदि के साथ बैठने का काम पड़ता है, आज श्वेतांबर परम्परा की तीन धाराओं के संगम हो रहा है। हमारी श्वेतांबर परम्परा में वस्त्र स्वीकृत है।
हम सब एक हैं, एकता में भी सापेक्ष बात हैं। एक संदर्भ में एक हैं, यों देखे तो भिन्नता भी है। जहां मूर्तिपूजक मुनिजी के मुखवस्त्रिका नहीं है पर हमारे मुखवस्त्रिका है, ये वेशभूषा की भिन्नता है। स्थानकवासी आम्नाय के मुखवस्त्रिका है यानी स्थानक और तेरापंथी दोनों मुखवस्त्रिकाधारी आम्नाय होते हैं और वैसे देखा जाए तो हम स्थानकवासियों से ही आये हुए हैं। कहीं सिद्धान्तों की भिन्नता है तो कहीं आचार-क्रिया संबंधी भिन्नता होती है। ये भिन्नता होने पर भी अभिन्नता बनी रहे। एक सीमा तक जहां जैन शासन का प्रश्न है, जहां धर्म अध्यात्म का प्रश्न है, वहां एकता की बात भी हो सकती है।
सन् 2018 के चेन्नई प्रवास के एक प्रसंग का स्मरण करते हुए आचार्य प्रवर ने फरमाया कि हम चेन्नई में थे तब प्रवीण ऋषि जी महाराज के वहां गये थे, वहां दिगम्बर भी और भी कई आम्नाय के संतों ने मिलकर चिंतन गोष्ठी की थी। चेन्नई में जैन शासन की एक संगोष्ठी हो गई थी। ऐसे यदा कदा जैन शासन के आचार्य, साधु, साध्वियां आदि भी मिल जाते हैं। भिन्न-भिन्न देश में पैदा हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के आहार से परिपुष्ट देह वाले जिन शासन को प्राप्त हो गए हैं, वे सभी मुनि भाई कहलाते हैं। ऐसे तो हर व्यक्ति के साथ मैत्री रखना चाहिए, वैर विरोध किसी से करना ही क्यों चाहिए? किसी से लड़ाई-झगड़ा न हो, मैत्रीपूर्ण व्यवहार हमारा रहना चाहिए। हम जैन शासन से जुड़े हुए हैं परस्पर हमारा सौहार्द और मैत्री का व्यवहार रहना चाहिए।
आज जो जैन शासन से जुड़ा हुआ 'जैनम् जयतु शासनम्' यह कार्यक्रम हो रहा है और श्वेतांबर परंपरा की त्रिवेणी संगम का प्रसंग बना है हम सभी खूब अच्छी साधना आराधना करते रहें। जैन शासन के भी और दूसरों के बीच जितनी आध्यात्मिक धार्मिक सेवा हमारे द्वारा हो सके, वह हम करने का प्रयास करें।