उपयोगी, हितकर और मार्गदर्शक बात को सुनना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
पंच दिवसीय पुणे प्रवास का दूसरा दिन। अध्यात्म साधना के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी सुनता है। जिन्हें श्रोत्रेन्द्रिय प्राप्त है और श्रोत्रेन्द्रिय सक्षम भी हैं तो आदमी कितनी चीजें सुन लेता है। प्रश्न है- क्या सुनना चाहिए? क्यों सुनना चाहिए? और कैसे सुनना चाहिए? इन तीन प्रश्नों का सही उत्तर मिल जाता है तो आदमी अच्छे ढंग से कार्य कर सकता है।
सुनने को संतों के प्रवचन, अच्छे भक्तिमय भजन, जीवन के बारे में, आत्मा के बारे में अनेक जानकारियां सुनने को मिल सकती है। वर्तमान में तो सुनने की सामग्री बहुत ज्यादा सुलभ हो गयी है। तकनीक के विकास से आज सुनना कितना आसान हो गया है। फालतू बातों को सुनने में हम समय न गंवाएं। क्या सुनना चाहिए? हमारे लिए उपयोगी, हितकर, मार्गदर्शक हो, उस बात को हमें सुनना चाहिए। कोई दु:खी अपनी समस्या बताता है तो उसकी बात भी सुनकर उसे सहयोग देने का प्रयास करना चाहिए। सहयोग न भी दे सकें पर उसकी बात सुन लेने से भी उसको सम्बल मिल सकता है। क्यों सुनना चाहिए? श्रोता और वक्ता दोनों के हित के लिए सुनना चाहिए। स्व-परहित संपादन के लिए सुनना चाहिए।
कैसे सुनना चाहिए? जैसे बोलने का अच्छा तरीका होता है वैसे सुनने का भी अच्छा तरीका हो सकता है। सुनने की भी कला होती है। सुनने की सुश्रुषा-इच्छा होनी चाहिए, तभी आदमी ध्यान से सुन सकता है। सुनने का प्रयत्न भी करना चाहिए। सुनने वाले ज्यादा संख्या में बैठे हो तो बिना कारण आपस में बातें नहीं करनी चाहिए, वरना काम की बातें सुनने से वंचित रह सकते हैं तथा दूसरों के भी अंतराय आ सकती है। मौन और धैर्य पूर्वक सामने वाले को सुनें। जो भी सुने वो ध्यान से सुनें और सुनने के बाद उसे ग्रहण करने का प्रयास करें। सुनने से श्रोता भी अच्छा वक्ता बन सकता है। आदमी सुनकर कल्याण को जान लेता है। सुनकर अच्छी बात व पाप की बात को भी जान लेता है। अच्छा और बुरा दोनों को जानकर जो हितकर है उसका आचरण करना चाहिए और अहितकर से दूर रहना चाहिए। जीवन में कोई गलत बात आई हुई है, उसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।
आधुनिक जो उपकरण हैं, वो गृहस्थों के लिए उपयोगी हो सकते हैं, उनका अनावश्यक उपयोग न हो। डिजिटल डिटॉक्स का प्रयोग करें। माेबाइल को रात्रि 12 बजे बाद नवकारसी करा दें। ड्रग्स रूपी जाल में न फंस जायें। संतों की प्रेरणा से आदमी गलत मार्ग पर जाने से बच सकता है। सुनने से बहुत सी जानकारियां मिल सकती है। संतों से तीर्थंकरों की वाणी सुनने का प्रयास करें। गृहस्थ भी अच्छे प्रशिक्षक हो सकते हैं, उनसे भी ज्ञान लिया जा सकता है। अच्छी, सच्ची व हितकर बात कहीं से भी मिले उसे ग्रहण किया जाना चाहिए। आगम का जो ज्ञान हमने ग्रहण किया है उसे सिंचन मिलता रहे जिससे ज्ञान तरोताजा रह सकता है। गृहस्थ चौबीसी को कंठस्थ करने का प्रयास करें। इससे आध्यात्मिक विकास हो सकता है। कानों की शोभा कुंडल से हो सकती है पर ज्ञान की बात सुनने से उनकी शोभा अधिक होगी। कान भी पंचेन्द्रिय होने का द्योतक है। कान का अच्छा उपयोग हो।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने कहा कि हमारे जीवन में लक्ष्य का निर्धारण होना आवश्यक है। हमारा लक्ष्य ऊंचा हो, लक्ष्य ऐसा हो कि उससे लाभ ही लाभ हो, लक्ष्य ऐसा हो कि उसे पाने के बाद कुछ भी शेष न रहे। ऐसा लक्ष्य परमार्थ का लक्ष्य हो सकता है। जो व्यक्ति परमार्थ के लक्ष्य को सामने रखकर चलता है वह मनुष्य अपनी उदय अवस्था को प्राप्त कर सकता है। पूज्यवर के स्वागत में अणुव्रत समिति अध्यक्ष धर्मेन्द्र चोरड़िया, वर्धमान सांस्कृितक केन्द्र के बालचन्द संचेती, मूर्ति पूजक समाज से अचलचन्द जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ किशोर मंडल ने अपनी सुन्दर प्रस्तुति दी। आचार्य प्रवर ने किशोरों को आशीर्वाद स्वरुप श्लोक प्रदान करवाया। तेरापंथ महिला मंडल एवं तेरापंथ प्रोफेशनल फॉरम ने भी अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।