स्वदर्शन की यात्रा है प्रेक्षाध्यान

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स्वदर्शन की यात्रा है प्रेक्षाध्यान

कोलकाता। मुनि जिनेशकुमार जी के सान्निध्य में व्योम में प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस अवसर पर मुनि जिनेशकुमार जी ने कहा- जीवन का नाम है जागरुकता एवं जागरूकता का नाम है जीवन। नींद में सोया हुआ व्यक्ति तो जीता हुआ भी बेहोश ही लगता है। जागरुकता का दूसरा नाम ही है- ध्यान, जिसे हम द्रष्टा भाव कहते हैं। अपने को भूलकर पर से और पदार्थ में जब व्यक्ति अपनापन जोड़ता है तब वह बहिर्यात्रा करता है। प्रेक्षाध्यान स्वदर्शन की यात्रा है। मुनिश्री ने आगे कहा- ज्ञान वास्तव में वह है जो अभेद का दर्शन कराता है और स्व पर का भेद मिटाता है। मन का निर्विषयी हो जाना ध्यान है। ध्यान से सकारात्मक सोच का विकास होता है, स्मरणशक्ति बढती है, वृत्तियों का परिष्कार होता है, चरित्र का निर्माण होता है, व्यवहार स्वस्थ होता है। मुनि श्री ने आगे कहा ध्यान भारतीय संस्कृति की आत्मा है। भगवान महावीर ने ध्यान और तप के द्वारा केवल ज्ञान को प्राप्त किया । ध्यान विशिष्ट शक्ति है, ध्यान से योग भी पवित्र होते हैं। मुनिश्री ने ध्यान के प्रयोग करवाए। प्रेक्षा प्रशिक्षक, प्रशिक्षिकाओं ने संभागियों को प्रशिक्षण प्रदान किया। कार्यशाला में 65 संभागियों ने भाग लिया।