भाग्यशाली को मिलता है श्रावक जीवन

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भाग्यशाली को मिलता है श्रावक जीवन

'शासनश्री' मुनि विजय कुमार जी के जीवन के 75वें वर्ष प्रवेश के उपलक्ष्य में ‘श्रावक जीवन की शोभा' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुनिश्री ने इस अवसर पर श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए कहा- श्रावक का जीवन भाग्यशाली को मिलता है। पूर्व जन्म के किए हुए सुकृत् का उपहार इसे कहा जा सकता है। इस जीवन की शोभा कैसे बढ़े, यह हर श्रावक के लिए मननीय है। जीवन तो नास्तिक-आस्तिक, पापी-धर्मी सभी जीते हैं, किंतु श्रावक का जीवन कुछ विशिष्ट होता है। वह धर्म को अपना मित्र बनाकर चलता है, कभी उसका साथ नहीं छोड़ता। श्रावक जीवन की भी एक आचार संहिता बनी हुई है, उसका यथाशक्य पालन होना चाहिए। व्यवहार में जैन संस्कृति की झलक दिखाई देनी चाहिए।
स्वीकृत तत्त्व के प्रति गहरी आस्था होनी चाहिए, जैन धर्म व तेरापंथ का प्रारंभिक ज्ञान सभी को करना चाहिए। प्रतिदिन धार्मिक उपासना में एक निश्चित समय का सदुपयोग जरूरी है। परिवार के सभी सदस्य सायंकालीन सामूहिक प्रार्थना या अर्हत् वंदना जैसा कोई उपक्रम चलाएं। श्रावक जीवन की सबसे बड़ी शोभा है, व्यसन मुक्ति। प्राचीन युग में सात व्यसनों का उल्लेख आता था, किन्तु आधुनिक युग में व्यसनों के नए-नए रूप सामने आ रहे हैं। श्रावकों को व्यसनों के दलदल से सदा दूर ही रहना चाहिए। किसी ने सही कहा है, हर दुर्व्यसन पहले मेहमान बनकर आता है, कुछ समय किराएदार की तरह रहता है और फिर मालिक बनने की कोशिश करता है। एक दिन आपको नौकर बनाकर अपने ढंग से नाच नचाता है। शरीरिक, मानसिक व बौद्धिक स्वास्थ्य के लिए भी व्यसनमुक्ति अनिवार्य है। कार्यक्रम की संपन्नता पर उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने त्याग प्रत्याख्यान किये। कार्यक्रम की शुरुआत पड़िहारा महिला मंडल के मंगल संगान के साथ हुई। सभा अध्यक्ष पन्नालाल दूगड़, विनोद भंसाली, अशोक बैद आदि ने अपनी प्रस्तुति दी।