वीतरागता युक्त एकाग्रता होती है महत्त्वपूर्ण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वीतरागता युक्त एकाग्रता होती है महत्त्वपूर्ण : आचार्यश्री महाश्रमण

महागणपति मंदिर के लिए प्रसिद्ध रांजनगांव में तेरापंथ धर्मसंघ के गणपति आचार्य श्री महाश्रमण जी का पावन पदार्पण हुआ। परम पूज्य आचार्य श्री ने अपने मुख्य प्रवचन में उपस्थित जनमेदिनी को संबोधित करते हुए फरमाया कि आध्यात्मिक साहित्य में ध्यान का उल्लेख उपलब्ध होता है, एक स्थान पर सद्ध्यान का उल्लेख िमलता है। ध्यान के दो प्रकार हो सकते हैं- अच्छा ध्यान और खराब ध्यान। आगम साहित्य में ध्यान के चार प्रकार भी मिलते हैं- आर्त्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल। इनमें से दो धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान साधना में योगदान देने वाले सद्ध्यान हैं। आर्त्त और रौद्र ध्यान तो संकलिष्ट है। इष्ट का वियोग होने पर होने वाली व्यथा में लीनता को आर्त्त ध्यान कहते हैं। अप्रिय का संयोग होने पर भी आर्त्त ध्यान हो सकता है। अपराध, हिंसा आदि प्रवृत्ति रौद्र ध्यान से जुड़ी हुई है। धर्म और शुक्ल ध्यान तो बहुत ऊँची चीज है। हम अभी शुक्ल ध्यान की स्थिति में तो नहीं जा सकते पर धर्म ध्यान करने का प्रयास करें। पूज्यवर ने ध्यान के बारे में बताते हुए आगे कहा कि 30 सितंबर 2024 से प्रेक्षाध्यान नामकरण का पचासवां वर्ष स्थापित किया गया है। एक आलम्बन पर मन को नियोजित कर देना या योग का निरोध करने की साधना ध्यान है। ध्यान में एकाग्रता की बात आती है। मन चंचल होता है।
लक्ष्मी, प्राण और जीवन चंचल है, जवानी और ये सारा संसार चलाचल है। धर्म एक ऐसा तत्व है जो निश्चल है और हमें भी निश्चल स्थान पर ले जाने वाला है। धर्म अपने आप में कल्याणकारी है। ध्यान की साधना के द्वारा हम मन की चंचलता को कम करने का प्रयास कर सकते हैं। एकाग्रता होना एक बात है, एकाग्रता कहां हो यह विशेष बात है। वीतरागता युक्त एकाग्रता की महत्ता है। राग-द्वेष युक्त एकाग्रता तो साधना में अवरोधक तत्त्व बन सकती है। मन की एकाग्रता के लिए पहले शरीर की अस्थिरता और शिथिलता को साधने का प्रयास होना चाहिए। विविध आलंबनों पर मन भ्रमण करता है वह मन की व्यग्रता है। एक जगह मन को केंद्रित कर लेने से मन की एकाग्रता बढ़ सकती है।
प्रेक्षाध्यान पद्धत्ति के शुभारंभ में आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का बड़ा योगदान है। शरीर मे सिर का और वृक्ष में मूल का जो स्थान है, साधुता में वही स्थान ध्यान का होता है। आगमो में चार प्रहर स्वाध्याय के व दो प्रहर ध्यान के उल्लेखित हैं। ध्यान कई रूपों में हो सकता है, भाव क्रिया के रूप में हमारा स्वाध्याय चलता रहे। प्रेक्षाध्यान के पांच सूत्र जीवन शैली के बड़े महत्वपूर्ण सूत्र हैं।चतुर्दशी के अवसर पर पूज्यवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए समय प्रबंधन के महत्त्व को समझाया। पूज्यवर के निर्देशानुसार साध्वी समताप्रभा जी एवं साध्वी ऋद्धिप्रभा जी ने समय प्रबंधन के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी रुचिरप्रभा जी व साध्वी चेतनप्रभा जी ने लेख पत्र का उच्चारण किया। तत्पश्चात उपस्थित सभी साधु-साध्वियों ने लेख पत्र का सामूहिक उच्चारण किया। पूज्यवर के स्वागत में स्कूल के प्राचार्य डॉ. प्रकाश कटारिया व दर्शन चोरडिय़ा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।