मानव जीवन है दुर्लभ और महत्वपूर्ण : आचार्य श्री महाश्रमण
भैक्षव शासन के सरताज जन-जन का कल्याण कराने वाले आचार्य श्री महाश्रमण जी अपना पंच दिवसीय पूना प्रवास पूर्ण कर कल्याणी नगर पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए परम पूज्य प्रवर ने फरमाया कि शास्त्र की वाणी है कि यह मनुष्य भव दुर्लभ है। सब प्राणियों के लिए लंबे काल तक यह दुर्लभ रह सकता है। यह दुर्लभ मानव जीवन वर्तमान में हमें प्राप्त है, इस माने में हम भाग्यशाली हैं। मानव जीवन दुर्लभ भी है और महत्वपूर्ण भी। इस दुर्लभ मानव जीवन में जो अध्यात्म की ऊंचाई प्राप्त की जा सकती है वह ऊंचाई अन्य किसी भी जीवन में प्राप्त नहीं हो सकती है। केवलज्ञान की प्राप्ति केवल मनुष्य भव में ही हो सकती है। मोक्ष की प्राप्ति भी मनुष्य जन्म से ही हो सकती हो। उच्च कोटि के देवों को भी मोक्ष जाने के लिए मानव भव में आना ही होगा।
हम इस मानव जीवन का बढ़िया उपयोग करें, इसे सुफल बनाये। यह मानव जीवन एक प्रकार का वृक्ष है, जिसमें फल लगने चाहिए। पहला फल है जिनेन्द्र पूजा। हम राग-द्वेष मुक्त जिनेश्वर भगवान की पूजा करें। हम चौबीस तीर्थकरों की स्तुति चौबीसी के माध्यम से भी कर सकते हैं। स्तुति करने से हमारे भीतर भी गुण संक्रमण हो सकते हैं। कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र ने कहा कि जिनकी राग आदि विकृतियां क्षीण हो चुकी हैं, चाहे उनका नाम ब्रह्मा हो, विष्णु हो, महेश हो या अर्हत् हो, उन आत्माओं को मेरा नमस्कार है। दुसरा फल है- गुरु पर्युपासना। संसार में हमेशा कम से कम 20 तीर्थंकर तो रहते ही हैं। पर साक्षात् तीर्थंकर नहीं हो तो गुरु की उपासना करो, गुरु की इंगित-आज्ञा में रहो। तीसरी बात बताई गई- सत्वानुकम्पा। प्राणीमात्र के प्रति दया का भाव रहे, अपनी ओर से किसी को तकलीफ न हो, हिंसा न हो।चौथा है- सुपात्र दान। जो त्यागी साधु-सन्त हैं, महाव्रतों की आराधना करने वाले हैं, उन्हें सुपात्र में दान दो, संयम की साधना में सहयोगी बनो। पांचवा फल है- गुणानुराग, गुणों के प्रति अनुराग। हम व्यक्ति की नहीं गुणों की पूजा करें।
छठी बात है- श्रुतिरागमस्य। अपने कानों से धर्म की वाणी, कल्याणी वाणी सुनें, जिनसे कान धन्य हो जाएं। कान में आगम वाणी को बूंदें प्रवेश कर जाएं, तो वे कल्याणकारिणी हो सकती हैं। मानव जीवन में रूपी वृक्ष में ये फल लगें और हम मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें। पूज्य प्रवर की अभिवंदना में विनोद दुगड़, सरला नाहटा, वर्षा नाहटा, मनोज सकलेचा, मूर्ति पूजक संघ से सुधीर घेमावत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। मुख्य प्रवचन से पूर्व महिला मंडल की सदस्याओं ने पूज्य प्रवर के स्वागत में गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।