सहना चाहिए, मौके पर कहना चाहिए और शांति से रहना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म शक्ति सम्पन्न आचार्य श्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारे भीतर कषाय हैं, कषाय के रूप में मानो वृत्तियां हैं। हर जीव में कषाय हो यह जरूरी नहीं है। पच्चीस बोल के पंद्रहवें बोल में आठ आत्माएं बताई गई हैं। उनमें एक तो द्रव्य आत्मा है, जो हर प्राणी में और सिद्धों में सब में ही है। जीव है तो द्रव्य आत्मा होती ही है। आठ आत्मा में एक आत्मा है- उपयोग आत्मा। उपयोग आत्मा भी हर जीव में होती है। अनन्तकाल से द्रव्य आत्मा और उपयोग आत्मा का साहचर्य है, आगे भी हर जीव में रहेगा। दर्शन आत्मा भी सिद्ध हो या संसारी, हर जीव में रहती है, ऐसा प्रतीत होता है। द्रव्य, उपयोग और दर्शन ये तीन आत्माएं हर जीव में उपलब्ध होती हैं, चाहे सिद्ध हो या संसारी।
कषाय आत्मा सब जीवों में नहीं होती। वीतराग, केवलज्ञानी और सिद्ध भगवान में कषाय आत्मा नहीं होती। दसवें गुण स्थान के बाद कषाय आत्मा नहीं होती है। योग आत्मा भी सबमें नहीं है। चौदहवां गुणस्थान अयोगी केवली गुणस्थान है, वहां योग आत्मा नहीं है। ज्ञान आत्मा केवल सम्यक् दृष्टि जीवों में होती है, मिथ्या दृष्टि जीवों में नहीं। चारित्र आत्मा छठे गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक होती है। सिद्धों में और स्थावर जीवों आदि में चारित्र आत्मा नहीं होती।
वीर्य आत्मा सिद्धों में नहीं होती, संसारी जीवों में होती है। आठ आत्माओं में से तीन आत्माएं द्रव्य, दर्शन, उपयोग तो सब जीवों में पाई जाती हैं। अन्य पांच आत्माएं सब जीवों में नहीं होती। सिद्धों में आठ आत्माओं में से चार आत्माएं पाई जाती है, संसारी जीवों में कम से कम छः आत्माएं होती है। आठ आत्माओं में कषाय आत्मा भी है। क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं, जो कभी तो भीतर में पड़े रहते हैं, कभी उभर जाते हैं। सामान्य आदमी को गुस्सा तीव्र, मन्द या मध्य स्तर का आ सकता है। हम गुस्से से बचने का प्रयास करें।
क्रोध मनुष्य का शत्रु होता है, मोह कर्म के विपाक से आदमी तेज गुस्से में चला जाता है। तीव्र गुस्से में कोई शांत करने वाला मिल जाये तो गुस्सा शांत हो सकता है। गुस्सा हमारी दुर्बलता है, इससे आदमी स्वयं भी परेशान हो जाता है और दूसरों को भी परेशान करने वाला बन सकता है। जिस आदमी के पास क्षमा रूपी तलवार हाथ में है, तो दुर्जन व्यक्ति उसका क्या बिगाड़ पाएगा? ज्ञान होने पर भी मौन हो जाना और शक्ति होने पर भी क्षमा रखना महानता को दर्शाता है। बड़ों का बड़प्पन है कि वे भी सहन करें। कभी कहना चाहिए तो कभी सहना भी चाहिए, कड़ाई के साथ में नरमाई भी रखनी चाहिए। आदमी को सहना चाहिए, मौके पर कहना चाहिए और शांति से रहना चाहिए। परिवार, व्यापार और समाज में भी शांति रखें। गुस्सा हमारा शत्रु है, हम इससे यथासंभव बचने का प्रयास करें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।