इक्षुरस जैसी मिठास सब के जीवन में रहे : आचार्यश्री महाश्रमण
छत्रपति संभाजीनगर में हुआ अक्षय तृतीया महोत्सव का आयोजन
वैशाख शुक्ला तृतीया, अक्षय तृतीया का पावन दिन। पूज्य प्रवर की सन्निधि में इस बार अक्षय तृतीया का समारोह छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) में आयोजित किया गया। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् महासूर्य, महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि जैन आगम दसवेआलियं के प्रथम अध्ययन की प्रथम गाथा है- धम्मो मंगल मुक्किट्ठं। इस गाथा में धर्म की महिमा बतायी गयी है। पहली महिमा है कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। दुनिया में मंगल का महत्व है पर उत्कृष्ट मंगल मिलना बहुत बड़ी बात है। दूसरी महिमा है कि उसे देवता भी नमस्कार करते हैं जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है। धर्म क्या है? अहिंसा, संयम और तप धर्म है। आध्यात्मिक संदर्भ वाला धर्म इन तीन शब्दों में समाविष्ट हो जाता है।
आज अक्षय तृतीया का दिन भगवान ऋषभ से जुड़ा दिन है, उनका प्रथम भिक्षा ग्रहण का दिन है। आज के दिन श्रेयांस कुमार द्वारा प्रथम दान दिया गया। वह प्रथम दान था इक्षुरस का। इक्षुरस जैसी मिठास सब के जीवन में रहे। भगवान ऋषभ ने समाज सेवा की, असि, मसि कृषि का प्रशिक्षण देने का कार्य भी किया। आदिनाथ ऋषभ ने गार्हस्थ्य का जीवन जीया और समाज उत्थान का कार्य किया और बाद में दीक्षा लेकर केवल ज्ञान भी प्राप्त किया। वे अध्यात्म जगत के महान नेता भी बन गए थे, प्रथम तीर्थंकर बन गए थे। भगवान ऋषभ के जीवन से यह प्रेरणा ली जा सकती है कि हम भी यथायोग्य प्रशिक्षण देने वाले बनें। योगक्षेम वर्ष भी प्रशिक्षण का समय हो सकता है। देने वाले अच्छा प्रशिक्षण दें और लेने वाले अच्छी तरह प्रशिक्षण ग्रहण कर सकें तो अच्छा विकास हो सकता है। दूसरों को ज्ञान देना उपकार का कार्य हो सकता है।
वर्षीतप करना साधना का प्रयोग है। अनेक साधु-साध्वियां, समणियां व गृहस्थ वर्षीतप की साधना करने वाले हैं। वर्षीतप करने वाले गृहस्थों के लिए कुछ नियम भी हैं, जो इस प्रकार हैं :
1. ॐ ऋषभाय नमः की 11 माला
2. आधा घंटा ध्यान
3. एक घंटा मौन
4. ब्रह्मचर्य की साधना
5. सचित्त एवं छः जमीकन्द का त्याग
6. पारणे के दिन रात्रि में चौविहार या तिविहार रखना
7. सुबह या सायं एक बार प्रतिक्रमण अथवा उस समय स्वाध्याय अथवा जप करना।
8. क्षमा की साधना, गुस्सा आ जाये तो पारणे के दिन चीनी अथवा नमक अथवा लाल मिर्च भक्षण का वर्जन।
वर्षीतप के साथ ये नियम जुड़ जाते हैं तो वर्षीतप रूपी पुरुष आभूषित हो जाता है। पूज्यप्रवर ने पिछले वर्षीतप की आलोयणा के रूप में 51 अतिरिक्त सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान करवाई एवं आगामी वर्ष में वर्षीतप करने वाले तपस्वियों को प्रत्याख्यान करवाए। लगभग 285 तपस्वी वर्षीतप की पूर्णता के उपलक्ष में पूज्य प्रवर की सन्निधि में उपस्थित हुए। पारणार्थी तपस्वियों ने पूज्य प्रवर को इक्षुरस का दान देकर धन्यता का अनुभव किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन परम्परा में तपस्या पर विशेष ध्यान दिया जाता है। भगवान ऋषभ ने भी तप तपा था। उनके तप के पारणे से जुड़ा आज का दिन है। तपस्या से आदमी अपनी विघ्न बाधाओं को दूर कर लेता है।
जब व्यक्ति अपनी आठ कर्म ग्रन्थियों को तपाता है, वह वास्तविक तप होता है। तपस्या ईहलोक के सुख, परलोक के सुख या यश व कीर्ति के लिए नहीं होनी चाहिए। तपस्वी का एक ही लक्ष्य होना चाहिए - कर्म निर्जरा। मुख्य मुनिश्री ने कहा कि असंख्य-असंख्य वर्षों पहले भगवान ऋषभ ने जो अनुष्ठान किया था उसका अनुकरण आज भी सैंकड़ो-सैंकड़ो तपस्वी कर रहे हैं। भगवान ऋषभ एक विशिष्ट वैज्ञानिक थे। उन्होंने अनेक प्रकार की कलाएं सिखाई। उन्होंने महिला सशक्तिकरण का भी कार्य किया था। उन्होंने अहिंसोन्मुखी समाज का निर्माण किया था। वर्षीतप करने वाले साधक कषाय मंद करने का प्रयास करें। इस अवसर पर मुख्य मुनि प्रवर ने 'आयो आदिश्वर रे वर्षीतप तो पारणो' गीत का सुमधुर संगान किया।
साध्वीवर्या संबुद्ध यशाजी ने कहा कि भगवान ऋषभ विशिष्ट पथप्रदर्शक और आदिकर्ता पुरुष थे। उन्होंने धर्म और कर्म युग का प्रवर्तन किया था, आत्म साधना का पथ दिखलाया था। उन्होंने समाज, परिवार और व्यापार व्यवस्था का भी ज्ञान दिया था तो आत्मज्ञान भी दिया था। भोग के साथ त्याग का ज्ञान भी दिया था। साध्वीवर्याजी ने 'ऋषभ को वंदन बारंबार' गीत का सुमधुर संगान भी किया।
आचार्य प्रवर की सन्निधि में मुनि अजीत कुमार जी, मुनि राजकुमार जी, मुनि लक्ष्य कुमार जी, मुनि चिन्मय कुमार जी, साध्वी उज्ज्वलप्रभा जी, साध्वी सन्मतिप्रभा जी एवं साध्वी रुचिरप्रभा जी ने अपने वर्तमान वर्षीतप को पूर्ण किया। कार्यक्रम में आचार्य श्री महाश्रमण अक्षय तृतीया प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष सुभाष नाहर ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।