पूर्वजन्म का संस्कार तथा वर्तमान का संयोग
पूर्वजन्म का संस्कार तथा वर्तमान का संयोग जब दोनों का मेल हो तभी वैराग्य के अंकुर फूटते हैं। बालक मोहन में पूर्व जन्म के संस्कार तो थे ही वर्तमान में मुनि पानमलजी जैसे संतो का संयोग मिल गया, दोनों बातें मिलकर आपको अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ाने लगी।
मुनिश्री पानमलजी बच्चों को कहानियों के माध्यम से दीक्षा लेने की प्रेरणा दिया करते थे। बालक मोहन भी वैरागी बन गया। तेरापंथ धर्मसंघ में अभिभावकों की ओर से आज्ञा पत्र प्राप्त होने के बाद ही किसी मुमुक्षु को दीक्षित किया जाता है। बालक मोहन की दीक्षा के लिए जब मुझे आज्ञा पत्र लिखकर देने का कहा गया तो मैंने मना कर दिया। क्योंकि हमारे पिताजी का स्वर्गवास हो चुका था और बालक मोहन के बड़े भाई तथा संरक्षक की दोहरी जिम्मेदारी मुझ पर थी। इसलिए आज्ञा पत्र लिखने का मानस नहीं बना। जब मोहन ने मुझ पर दबाव बनाना शुरू किया तो माताजी की इच्छा का सम्मान करते हुए आज्ञा देने की हामी इस शर्त पर भर दी कि मैं आज्ञा पत्र छह माह बाद लिख कर दूंगा। फिर मुनिश्री सुमेरमल जी स्वामी ने मुझे कहा कि जब तुमने हां भर ली है तो देर करने से फायदा नहीं, क्योंकि वैशाख शुक्ला चतुर्दशी के बाद मुहूर्त नहीं मिल रहा है। मैंने आज्ञा पत्र लिख कर दे दिया और इस प्रकार बालक मोहन की दीक्षा मुनिश्री सुमेरमलजी के करकमलों से हो गई। फिर आचार्य तुलसी की पारखी नजरे आप पर टिकी और आपको तैयार करना शुरु कर दिया। फिर समय आने पर आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने तो आपको अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के महाप्रयाण के बाद आप इस तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य पद पर आसीन हो गए। आप पुण्यवान आचार्य हैं। आपकी पुण्यवत्ता के प्रभाव से हम बुराइयों से अपने आपको बचा सकेंगे। आपके इस दीक्षा कल्याण महोत्सव पर मैं मंगल कामना करता हूं कि आप अध्यात्म के शिखरों को छूते हुए अपना तथा जन-जन का कल्याण करते रहें।