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केंद्रीय संस्थाओं की ओर से भावपूर्ण अभिवंदना स्वर
आचार्य महाश्रमण जैन परंपरा के तीर्थंकर तुल्य एक प्रतिनिधि आचार्य तो हैं ही, अपनी निस्पृहता, समता, आचार कुशलता और दृढ़ धर्मिता से उन्होंने एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया है जिसके सामने कोई भी सहज ही नतमस्तक होना चाहता है। अति विद्वान, तपस्वी अथवा वक्ता होने से भी शतगुणा कठिन है आचार के आदर्शों को जीना। आचार्य महाश्रमण इसकी जीवंत प्रतिमूर्ति है। उन्होंने साधना के जीवन के नए मानदंड प्रस्तुत किए हैं। धर्म संघ के अधिशास्ता के रूप में भरत चक्रवर्ती की अनासक्ति के साथ शासन की सार-संभाल ऋषभ के काल की याद दिलाती है। कोटिश: नमन।