वित्त रागी नहीं वीतरागी चेतना हैं आचार्य महाश्रमण
आज भौतिक उत्थान की उपग्रह बेला में बौद्धिकता की पराकाष्ठा है, सद्बुद्धि की रोशनी बुझती जा रही है, ज्ञान का मार्तण्ड भी अज्ञान से घिरा हुआ है। मनुष्य की दोनों मुट्ठियों में मानवता और शांति के मासूम बुदबुदे छटपटा रहे हैं, चिहुँ ओर से आवाज आ रही है- शान्ति से शान्ति को संभालो? कौन करे ऐसा प्रयास जो सम्मान्य शान्ति का मार्ग प्रशस्त करे, जो हिंसा की भावना को मिटा सके, जो भ्रष्टाचार का प्रलय मचाने वाली शक्ति से राहत दिला सके। मानवता के इस दर्द पर सूचिकारस भरण करने, मानवता का रोग पहचानने तेरापंथ के एकादशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अहिंसा यात्रा और अणुव्रत यात्रा की। प्राची के नभ पर उदित सार्वभौम भास्कर आचार्य श्री महाश्रमण मानवता की दुःखती हुई नसों पर शान्ति का संदेश देकर शान्ति से शान्ति को संभालने का प्रयास कर रहे हैं, विनाश की ओर वेग से दौड़ते घोड़े को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, सुपाच्य अमृत-अणुव्रत की औषधि से भौतिकता की उच्छृंखल प्रगति से उत्पन्न व्यामोह को कम करने की दिशा दिखा रहे हैं। जिनकी साधना की अद्भुत शक्ति जन-जन में आध्यात्मिकता के तत्वांकुर को वृक्ष बनाने का कार्य कर रही है जो केवल विख्यात ही नहीं विलक्षण भी हैं, व्यक्ति और समय की आवश्यकता को समझकर उनके अनुरूप पथदर्शन भी करते हैं। अपने व्यक्तित्व की स्वतंत्रता के साथ संघ के वैशिष्ट्य को बनाए रखने का भागीरथ प्रयास करते हैं, जिनके उपदेश से जनता आश्वस्त ही नहीं पूर्ण रूप से विश्वस्त भी है। जिनके नेत्रों से विशद आनंद और नीरव शांति का स्रोत बह रहा है, वाणी में मितभाषिता मधुरता है, मार्मिक एवं सहज ज्ञान का एक प्रवाह सा बहता है जिसे सर्वसाधारण सहज ही ग्रहण कर सकते हैं। विद्वानों का मंतव्य है -
‘यत्र तत्र समय यथा तथा, योऽसि सोऽस्याभिधया यथा तथा’
जिस किसी देश, जिस किसी समय में महापुरुषों का जन्म हो, वह किसी भी नाम से पुकारा जाए वे वीतराग सम आदर के पात्र होते हैं। पूज्य गुरुदेव का चित्त वित्त रागी नहीं वीतरागी है।
मानव की अनमोल निधि है- भाग्य एवं श्रम। एक सहज प्राप्त है दूसरा यत्नसाध्य। आज तेरापंथ धर्मसंघ उन्नति एवं विकास के जिस स्वर्णशिखर पर खड़ा है वह श्रम की महिमा एवं संघ के सौभाग्य का स्वयं भाषी प्रमाण है। श्रम के प्रतिरूप आचार्य महाश्रमण के लिए अथक श्रम जीवन का पर्याय बना हुआ है। ज्ञान-गोमुख होकर ज्ञान की जाह्नवी बहा रहे हैं, कभी साधु-साध्वियों के बौद्धिक एवं मानसिक स्तर को उन्नत करने के लिए ज्ञान-दान की पवित्र प्रवृत्तियों में संलग्न रहते हैं, कभी आगमों पर अनुसंधान करते हैं। क्लान्ति उन्हें स्पर्श नहीं कर पाती। त्याग की वेदी पर कठोर श्रम की सविद्या से कर्मों का होम करने वाले कर्मठ पंडित हैं। समय की अनन्तता में अखंड विश्वास करते हुए पल-पल का हिसाब उसी तरह करते रहते हैं जैसे-अवसान बेला में वणिक लगता है।
पश्चिम रात्रि से रात्रि 10 बजे तक का प्रत्येक क्षण बंधा हुआ रहता है जैसे जीवन कठिन मर्यादाओं से बंधा है यथासंभव कोई भी मिसल एवं मसला दूसरे दिन के लिए नहीं छूटता। मानस पटल गहरा मितद्रु सा लगता है निस्तरंग थाह हीन, शान्त पवन। प्रभाव, निरीक्षण, नियंत्रण में अपूर्व धैर्य एवं अपार संयम से अल्प अनुशासन के साथ आध्यात्मिक शक्ति का भंडार सम्पूर्ण संघ में भर रहे हैं, युगों-युगों तक भरते रहें।