निर्मलता को प्रदान करने वाला तत्त्व है तपस्या : आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अध्यात्म की साधना में सम्यक् ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चारित्र का महत्व है, तो तप का भी महत्व है। तपस्या के द्वारा आत्मा की शुद्धि होती है। तपस्या के बारह प्रकार बताए गए हैं। वैसे शुभ योग भी अपने आप में तप होता है।
अक्षय तृतीया का दिन तपस्या की सम्पन्नता के साथ जुड़ा हुआ है। अनेकों लोग इस दिन अपना वर्षीतप सम्पन्न करते हैं। वर्षीतप भगवान ऋषभ से जुड़ा हुआ है। भगवान ऋषभ की स्तुति में भक्तामर एक ऐसा ग्रन्थ है, जो जैन एकता का प्रतीक है, आधार है। श्वेताम्बर हो या दिगंबर दोनों आम्नाय में भक्तामर का स्वाध्याय होता है। इसमें भक्ति का भाव सन्निहित है। अनेकों विघ्न- बाधाएं इस स्तोत्र के माध्यम से दूर हो सकती हैं।
अक्षय तृतीया को शुभ दिन के रूप में भी माना जाता है। तेरस और तीज बिना पूछे ही मुहूर्त माने जाते हैं। यह वैशाख महीना भगवान ऋषभ से तो जुड़ा हुआ है ही, भगवान महावीर के केवल ज्ञान दिवस से भी जुड़ा हुआ है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का महाप्रयाण भी वैशाख कृष्णा एकादशी को सरदारशहर में हुआ था। वैशाख पूर्णिमा का दिन महात्मा बुद्ध से भी जुड़ा हुआ है। तपस्या निर्मलता को प्रदान करने वाला तत्व है। तपस्या के अनेक प्रकार हैं, ध्यान, स्वाध्याय करना भी तपस्या है, जिनसे कर्म निर्जरा हो सकती है। तपस्या करने वाले अनुमोदना-साधुवाद के पात्र हैं। तपस्या का सार यह आ जाना चाहिए कि कषाय मुक्ति हो जाए, राग-द्वेष पतले पड़ जाएं, आत्मा शांत, उपशम से युक्त हो जाए। तपस्या हो न हो पर कषाय मुक्ति हो जाए तो बहुत बड़ी बात हो जाती है। समता की स्थिति हमें प्राप्त हो, उसका महत्व है। ध्यान, स्वाध्याय, आध्यात्मिक सेवा आदि भी तपस्या हैं, इनसे भी आत्मा विशुद्ध होती है।
पूज्य प्रवर के स्वागत में ललीता सुभाष नाहर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। नाहर परिवार के सदस्यों ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।