आदर्श के अनुरूप करें गति प्रगति : आचार्यश्री महाश्रमण
वैशाख शुक्ला नवमी, तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी का 63वां जन्म दिवस। आज से 62 वर्ष पूर्व सरदारशहर के दुगड़ परिवार में मां नेमांजी की कुक्षि से बालक मोहन का जन्म हुआ था। आज वह बालक हमारे धर्मसंघ के सिरमौर ग्यारहवें आचार्य के रूप में हम सबके आराध्य बने हुए हैं। आर्षवाणी की अमृत देशना प्रदान कराते हुए जनोद्धारक आचार्य श्री महाश्रमणजी ने फरमाया कि दुनिया में व्यक्ति का जन्म होता है। मानने वाला एक दिवस को अपना जन्म दिवस मान लेता है, परन्तु अनन्त जन्म दिवस हर आत्मा के हो गये होंगे। अतीत के प्रायः याद नहीं रहते होंगे। पूर्व जन्म प्रायः विस्मृत हो जाते हैं। जीव जब नई योनि में जन्म लेता है, तो पूर्व जन्म पर आवरण सा आ जाता है।
अनन्त जन्मों में जब मानव जीवन के रूप में जन्म होता है, वह बड़ा महत्वपूर्ण होता है। एक दृष्टि से देव जन्म से भी मनुष्य जन्म उत्तम होता है। क्योंकि जो साधना, उत्कृष्ट आराधना मानव जन्म में की जा सकती है, वह अन्य जन्मों में नहीं की जा सकती। मोक्ष की प्राप्ति भी इस मानव जीवन से ही होती है। मानव जन्म मिलने के बाद इसका उपयोग हम क्या करते हैं, यह खास बात है। जो व्यक्ति अध्यात्म की साधना, संयम-चरित्र की आराधना करता है, सम्यग-ज्ञान, सम्यग-दर्शन की उपलब्धि कर लेता है, तो मानव जीवन सार्थक सफल हो जाता है। अध्यात्म की साधना मिलना विशेष बात हो जाती है।
निमित्तों का भी अपना महत्व हो सकता है। मेरी संसारपक्षीया मां नेमा बाई थी, उन्होंने एक महत्वपूर्ण कार्य कर दिया कि मुझे साधु-संतों के सम्पर्क से जोड़ दिया। साधु-साध्वियों से एक प्रेरणा मिली कि एक महान पथ पर चलने का मानो संकल्प जाग गया। संस्कार निमित्त मिलने से आदमी कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। मेरे संसारपक्षीय पिताजी झूमरमल जी सूर्यरूपी तेजस्वी तत्व के सामने खड़े होकर हाथ जोड़ते थे, माला फेरते थे। माता-पिता को देखने से भीतर में संस्कार उपलब्ध हो सकता है।
मुझे संसारपक्षीय पिताजी का साया लगभग सात वर्ष तक ही मिला था। दादाजी हुकमचन्दजी उस समय विद्यमान थे। माताजी व बड़े भाईजी सुजानमल जी के साये में रहने का मौका मिला। थोड़ी पढ़ाई करने का भी मौका मिला। बाद में जीवन में धर्म और अध्यात्म का रास्ता मिल गया। इस मानव जीवन में कुछ कर सके तो वो खास बात होती है। बाद में तो गुरुओं का संरक्षण मिला। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी के सान्निध्य का अवसर मिला। बचपन में स्कूल में अध्यापकत्व भी प्राप्त हुआ। साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं के भी प्रमोद भाव है। साध्वी सुमतिप्रभाजी व साध्वी चारित्रप्रभाजी मेरी संसारपक्षीय भतीजी हैं। मुझे परिवार के साथ रहने का कम ही अवसर मिला। धर्म परिवार बड़ा है, मैं छोटे परिवार से बड़े परिवार में आ गया।
जीवन में आदर्श बनाना चाहिए। आदर्श के अनुरूप जितना हो उसके निकट जाने का प्रयास करें। अच्छे आदर्श से अच्छी गति-प्रगति हो सकती है। जन्म दिवस तो एक शिष्टाचार है। इसके निमित्त से प्रमोद भावना प्रकट की जा सकती है। हमें हमारे धर्मसंघ में विकास करने का अवसर मिला है। छः दिवसीय आयोजन का आज प्रथम दिवस है। कोई प्रेरणा जाग जाये तो जन्म दिवस मनाना सफल हो सकता है। हर प्राणी का अपना जन्म दिवस होता है, पर किसी-किसी का जन्म दिवस आयोजन के रूप में मनाया जाता है। जीवन में आदमी अच्छा पुरुषार्थ करने का प्रयास करें। केवल भाग्य भरोसे न बैठे। भाग्य भरोसे बैठे रहने वाला अभागा आदमी होता है।
अच्छी राह मिले, भीतर में चाह मिले और अच्छा उत्साह जागृत रहे तो आदमी कहीं पहुंच सकता है, कुछ प्राप्त कर सकता है। हम सभी जीवन में ऐसा कुछ करें कि आगे कभी जन्म न लेना पड़े। अजन्मा बनने की साधना सिद्ध हो जाये। जन्म से अजन्म की ओर बढ़ने का प्रयास श्रेयस्कर हो सकता है। साधु को न्यातिलों का ज्यादा मोह-आकर्षण नहीं रखना चाहिए। पूज्य प्रवर की अभिवंदना में साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के शब्द हैं- ‘युवाचार्य महाश्रमण के हाथ प्राणवान हैं।’ मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्राणवान हाथों की अभ्यर्थना करती हूं। आप एक ओजस्वी आचार्य हैं, विलक्षण स्मृति के धारक हैं। आप स्वतंत्र रूप में निर्णय लेते हैं, प्रतिकूल स्थितियों को बड़े धीरज से सहन कर लेते हैं, निर्भीक रहते हैं। आपके पास श्रमणत्व, आचार्यत्व और ब्रह्मचर्य का तेज है।
आचार्यवर को जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘सात बातें ज्ञान की’ संसारपक्षीय भ्राता सुजानमलजी दुगड़ द्वारा समर्पित की गयी। पूज्यवर की अभ्यर्थना में संसारपक्षीय भ्राता सुजानमलजी दुगड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। संसारपक्षीय दूगड़ परिवार द्वारा गीत की प्रस्तुति हुई। मनन बागरेचा व तेरापंथ महिला मंडल की प्रस्तुति हुई। जय माता दी ग्रुप द्वारा ‘जालना सोने का पालना’ की प्रस्तुति हुई। साध्वी वृंद ने सामूहिक गीत का संगान किया। अनेकों साधु-साध्वियों एवं समणियों ने पूज्य प्रवर की अभिवंदना में अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का सञ्चालन मुनि दिनेश कुमार जी द्वारा किया गया।