विलक्षण और विचक्षण आचार्य : आचार्यश्री महाश्रमण जी

विलक्षण और विचक्षण आचार्य : आचार्यश्री महाश्रमण जी

मानव धर्म के प्रभावक आचार्य - जैन धर्म के इतिहास में जितने प्रभावशाली आचार्य हुए उणमें यदि तुलना की जाए तो आचार्य महाश्रमण जी का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है। आचार्य प्रवर ने जहां एक ओर कुशल अनुशास्ता की तरह तेरापंथ धर्मसंघ की अभूतपूर्व प्रभावना की वहीं दूसरी ओर अहिंसा यात्रा के माध्यम से देश और विदेश की न केवल यात्रा की अपितु वहां भूकम्प, भूस्खलन सर्दी, गर्मी एवं बारिश जैसे भयंकर परीषहों एवं कष्टों को समता एवं प्रसन्नता से सहन किया तो जन-जन मुखरित हो कहने लगा की हमने नेपाल में महावीर को देखा नहीं किन्तु महाश्रमण जी महावीर की तरह चमक रहे हैं। धन्य है आपकी सहिष्णुता, जागरुकता, पापभीरुता एवं अभय की पराकाष्ठा को। आपकी प्रभावकता दिन दूनी रात चौगुनी प्रर्वधमान होती रहे ।
समता की पराकाष्ठा - सन् 2000 मे गंगानगर अंचल की यात्रा में मैंने देखा एक बार मुनि योगेश कुमारजी को लेकर आचार्य प्रवर दोपहर की आग बरसाती कड़ी धूप में अचानक बाधा होने पर पंचमी के लिए बाहर पधारे करीब 2 KM से अधिक दूर जाने पर भी जब बाहर में उचित स्थान न मिलने पर भी आचार्य प्रवर समता एवं प्रसन्न भाव से वापिस अपने प्रवास स्थल पर पधार गए। आपश्री के अतिश्रम को देखकर साध्वी श्री जिनप्रभा जी ने निवेदन किया की आप इतना श्रम न कराएं क्योंकि अब यह शरीर आपका नही पूरे संघ का है।
जब दुःखी महिला का दुःख देख नहीं सके - सन् 2000 मे गंगानगर की बात है। एक बार पूज्यप्रवर घरों में पगलिये कराने के बाद पुनः भवन में पधारे तो देखा दो बहनें गुरुजी का इन्तजार कर रही थी। युवाचार्य प्रवर ने उन्हें दर्शन दिए तो बहनें अपना दुःख सुनाते-सुनाते सुबक सुबक कर रोने लगी और बोली - घर वाला क‌माता नहीं और दो लड़के हैं, दोनों शराब पीते रहते हैं। ऐसे ही हम गरीब और ऊपर से इतनी सारी समस्या। अपना दुःख सुनाने क बाद फिर रोने लगी। गुरुदेव ने मुझे कहा तुम इनके घर जाओ और लड़कों को समझा कर हमारे दर्शन कराना। मैं अकेला उनके साथ उनके घर गया तो एक लड़के को समझा कर युवाचार्य प्रवर के पास लेकर आया। आपने उसे समझाकर शराब नहीं पीने का संकल्प कराया। परिवार को आध्यात्मिक संबल प्रदान कराया तो परिवार के लोग बहुत खुश हुए और दुःख से मुक्त हो गए।
बात कहने का तरीका अच्छा लगा - सन् 2007 में आचार्य महाप्रज्ञजी का चातुर्मास उदयपुर में था। श्रावक कार्यकर्त्ता रतनलाल चौपड़ा ने मुझे कहा- आपको युवाचार्य प्रवर ने याद किया। मैंने दर्शन किए तो मुझे पूछा कि तुम्हें अपने परिवार की याद नही आती क्या? मैंने कहा नहीं। फिर पूछा कि माता से बात होती है क्या? मैंने कहा नहीं। फिर पूछा कि माता से मोह तो नहीं है न? मैंने कहा नहीं, बिलकुल नहीं। फिर युवाचार्यश्री ने फरमाया कि उनका स्वर्गवास हो गया। माता के जाने की घटना का मेरे मन के अंदर जरा भी असर नही हुआ। रात नींद भी अच्छे से आ गई थी। ये सब आचार्यश्री के कहने की कला का परिणाम था। वर्ना ये बात यदि और कोई अचानक कहे तो सुनने वाले का पहले स्वर्गवास हो जाये। सुबह गुरुदेव ने कहा कि तुम उज्जैन जाकर परिवार वालों को आध्यत्मिक सम्बल प्रदान कर देना। जब आचार्य महाप्रज्ञजी को पता चला तो आचार्य प्रवर ने मुझे संबल प्रदान करते हुए मेरी संसारपक्षीय माता चन्दा बाई बोरदिया को 'श्रद्धा की प्रतिमूर्ति' सम्बोधन प्रदान किया।
अनुशासन का तरीका मन को बहुत लुभाया - सन् 2014 के गंगाशहर महोत्सव की बात है। दोपहर को मैं भिक्षा की आज्ञा लेने गया। मुस्कुरा कर अच्छा कहते हुए इशारे से पास में बुला कर कहा- यहां जो भी गोष्ठी होती है उसमें भाग ले सकते हो। मैं खुश होकर जाने लगा तो फिर बुलाया और कहा कहीं भी जाओ तो आज्ञा लेकर जाया करो। मैंने कहा तहत् गुरुदेव! मैं प्रायः आज्ञा लेकर जाता हूं। तब गुरुदेव ने मृदु अनुशासन करते हुए कहा - आज सुबह तुमने प्रातःराश की आज्ञा नही ली? मैंने कहा कि भंते! आज सुबह मैंने नाश्ता ही नहीं किया। तो पूछा क्यों ? तब मैंने कहा- गुरुदेव आज शनिवार है और मैं शनिवार को एकासन करता हूं। गुरुदेव को बहुत प्रसन्नता हुई और मुझे इस बात की खुशी हुई कि इतना बड़ा संघ है और मेरे जैसे इतने छोटे समण का भी कितना गुरुजी ध्यान रखते हैं।
लगता है अवधिज्ञान हो गया - सिलीगुड़ी मर्यादा महोत्सव के बाद मुझे भी कुछ दिन साथ में चलने का मौका मिला। एक दिन की बात है गुरुदेव करीब 5 से अधिक किलोमीटर विहार होने के बाद अचानक रुके और साथ मे चल रहे संतों से पूछा कि पीछे कोई सतियां तो नहीं रही? संतों ने कहा - नहीं। गुरुदेव फिर कुछ आगे बढे फिर रुके और फिर संतों से पूछा पीछे कोई साध्वियां तो नहीं रह गई? मुनि कुमारश्रमण जी ने कहा - गुरुदेव सबसे अंत में हम आये थे और हमारे पहले प्रायः सतियां आगे आ गई थी।
गुरुदेव आगे बढ़ने लगे तभी एक आदमी मेरे पास आया और बोला पीछे साध्वियां धीरे-धीरे आ रही हैं। मैंने कहा गुरुदेव को अर्ज कर दो। उसने गुरुदेव को अर्ज किया। सब संतों को आश्चर्य हुवा की आचार्यप्रवर को कैसे पता चला कि सतियां पीछे रह गई। आचार्यप्रवर ने इंतजार किया कि सतियां आ जाए। कुछ समय बाद कुछ साध्वियां आई। गुरुदेव ने कारण पूछा कि पीछे कैसे रह गई तो सतियों ने बताया कि साधन की हवा निकल गई थी, हवा भराने में लेट हो गए। इस घटना से लगता है कि गुरुदेव को अवधिज्ञान हो गया हो। दूसरा उदाहरण सन् 2016 का है। 'शासनश्री' मुनि सुरेशकुमार जी एवं मुनि संबोधकुमार जी के साथ उज्जैन में कुंभ मेले में रहने का दुर्लभ मौका मिला। गुरुदेव ने गुलाब बाग बिहार में कहा कि मेले में कच्चे दीवार के मकान में नहीं रहना अर्थात पक्के दीवार वाले मकान में रहना। अचानक तेज तूफान आया और बड़े-बड़े टेंट तंबू आदि हवा से गिर गए और हमारे प्रवास का पक्का मकान नहीं गिरा। हम सब गुरु कृपा से बच गए। इस तरह की अनेक छोटी-मोटी घटनाएं हैं जिससे यह स्पष्ट लगता है कि गुरुदेव को अवधि ज्ञान हो गया है।
निष्कर्ष - आचार्य श्री महाश्रमणजी का जन्म तेरापंथ का भाग्योदय है। आचार्य प्रवर की दीक्षा तेरापंथ की सुरक्षा है। आचार्यश्री का महातपस्वी होना पुरुषार्थ की गौरव गाथा है और उनका आचार्य होना जैन धर्म का शुभ भविष्य है।