एक विलक्षण अनुभव

एक विलक्षण अनुभव

12 नवम्बर 2023 का दिन हम शैक्ष साध्वियों के लिए ऐतिहासिक दिन था। चारों ओर खुशियों का माहाल था। हमारी खुशी भी आसमान को छू रही थी। क्योंकि उस दिन हम कुछ छोटी साध्वियों ने पूज्यवर से निवेदन किया - प्रभो! आप अपनी सन्निधि प्रदान कर छोटे संतों की तरह हमें भी प्रतिदिन क्लास देने की कृपा करें, हमारे भीतर ज्ञान दीप जलाने की कृपा करें। पूज्यवर की चेतना निर्धूम दीप की तरह है। आपश्री की साधना व आपश्री की तपस्या से प्रकाश प्राप्त करने वाला हर साधक स्वयं प्रकाशित होता है और दूसरों को भी प्रकाशित करने में समर्थ हो जाता है। इसी भावना से ओत प्रोत हो हमने अपनी भावना को गीत के माध्यम से भी प्रस्तुत किया।
पूज्यवर ने हमारी भावना पर गौर करते हुए फरमाया ठीक है, हमारे सम्पर्क में रहना। हम सभी साध्वियां प्रसन्नमना अपने प्रवास स्थल पर आ गईं। दूसरे दिन प्रातः काल वंदना करने गये उस दिन भगवान महावीर का निर्वाण दिवस था। गुरुदेव ने छोटी साध्वियों को याद किया, एक-एक साध्वी को अपने सम्मुख खड़ा किया और हर महीने की 11 तारीख को गुरुदेव के सान्निध्य में 2.30 बजे क्लास हो सकेगी ऐसा फरमाकर हम नन्ही कलियों की झोली भर दी। हम कुल 10 साध्वियां थीं जिनका इस क्लास के लिए चयन किया गया और पूज्यवर ने इस क्लास का नाम दिया- ‘शैक्ष साध्वी कक्षा’ । योजनानुसार हर महीने की 11 तारीख को जहां भी हो, गुरुदेव के सान्निध्य में क्लास लगती है। उस क्रम में 11 मार्च 2024 कोंकण प्रदेश की यात्रा के दौरान गुरुदेव के साथ लगभग 24 साध्वियां थीं। शैक्ष साध्वियों की संख्या बहुत कम थी, केवल तीन ही साध्वियां थी। शायद तीन साध्वियों को देखकर गुरुदेव ने पूछा ‘गीत याद है, थोड़ा सुना दो’। हम तीनों साध्वियों ने गीत सुनाना प्रारंभ किया- लगभग 1 पद्य सुनाया होगा, गुरुदेव ने पुनः पूछा- ‘याद है ना, याद है ना- ठीक है’। आगे के होमवर्क का निवेदन किया। गुरुदेव ने कुछ भी नहीं फरमाया, हमें लगा होमवर्क दिलाने की मर्जी कम है। जयकारा पाकर हम वही बैठ गईं। हम परस्पर बतियाने लगीं। गुरुदेव पुनः पत्र वाचन में लीन हो गए। थोड़ी देर हुई कि पुनः कृपा की दृष्टि हुई। शैक्ष साध्वी कक्षा की साध्वियों को याद किया पुछवाया गुस्सा आता है। हम एक दूसरे को देखने लगे बाले- हां। गुरुदेव मुस्कुराए, करुणा दृष्टि बरसाए, फिर आगे बुलाकर प्रश्न किया- गीत याद है? लो सुनाओ। गीत 31 पद्य का था पूज्यवर ने पूरा सुनवाया, आगे के लिए होमवर्क दिया, डायरी में लिखवाया। फिर हमें इंग्लिश में स्टोरी फरमाई, सेवा का महत्व समझाते हुए फरमाया- एक खेत था, जिसमें एक किसान काम रहा था। अचानक उसने देखा, घोड़े पर सवार होकर एक तेजस्वी व्यक्ति उसके खेत की ओर आ रहा है। वह व्यक्ति उस खेत में किसान के पास पहुंचा। किसान ने उसे देखा। देवदूत समझकर प्रणाम किया। उसने किसान से गेहूं मांगे। किसान ने बिना मन ही उसे मुट्ठीभर गेहूं दे दिया। वह गेंहू को लेकर आगे चला गया और थोड़ी दूर जाने के बाद आंखों से ओझल हो गया। अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद किसान जब खेत में आया तो उसने देखा कि खेत में कुछ गेंहू चमक रहे हैं। उसने गेंहू को हाथ में लेकर देखा सचमुच वे सोने के हो गए थे। उसने जितने गेहूं उस व्यक्ति को दिए थे उतने ही सोने के हुए थे। वह सोचने लगा यह कैसा चमत्कार, इधर-इधर देखने लगा, कुछ भी दिखाई नहीं दिया। इतने में आकाश से आवाज आई- कल तुमने जो गेहूं दिए थे यह उसका परिणाम है। किसान को अब समझ में आया कि जितने मैंने गेहूं उसे दिए थे उतने ही गेहूं सोने के हुए हैं। कितना अच्छा होता मैं उसे गेहूं और दे देता। किसान उस व्यक्ति से पुनः और गेहूं लेने को कहा। तुम मेरा यह पूरा खेत ही ले लो। परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
इस कहानी से गुरुदेव ने हमें प्रतिबोध दिया कि हम जितनी सेवा करेंगे उतना हमें वापस मिलेगा। जितना हम दूसरों को नुकसाान पहुंचाएगे उतनी ही हमें नुकसान मिलेगा। घड़ी हाथ में लेकर दिखाते हुए फरमाया जैसे यह घड़ी समय बता रही है, एक-एक सैकेंड, मिनिट बीतता जा रहा है। जितना हम उपयोग कर लें, वह हमारा है जो समय बीत गया वह वापिस नहीं आता, वह निष्फल हुआ जानो। इस तरह पूज्यवर समय-समय पर छोटी-छोटी कहानियों से, दृष्टांतो से, हमारे भीतर ज्ञान दीप प्रज्वलित करने का प्रयास करते हैं। हमने ऐसा सुना है, देखा है व जाना है कि आचार्य महाश्रमण जी के चरणों में आने वाला कभी खाली हाथ नहीं जाता, आज हम छोटी सतियों ने भी यह साक्षात अनुभव कर लिया कि गुरुदेव शरणागत की छप्पड़ फाड़ झोली भरते हैं।