मानवता के महामंगल-आचार्यश्री महाश्रमण
वंदन! वैशाख शुक्ला नवमी के उस मधुरिम पल को जब सरदारशहर की पुण्य धरा पर अहिंसा, संयम व मैत्री का दीप जलाने वाले दिव्य चेतना का अवतरण हुआ।
नमन! वैशाख शुक्ला चतुर्दशी के उस अमृतमय क्षण को जब ऋजुता, मृदुता तथा विनम्रता आदि अनेक गुणों से समृद्ध बालक मोहन ने संयम रत्न को अंगीकार किया।
अभिवंदन! वैशाख शुक्ला दशमी के उस स्वर्णिम पल को जब चतुर्विध धर्मसंघ को आचार्यश्री महाश्रमण के रूप में कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ तथा वे तेरापंथ धर्मसंघ के शहंशाह बन गए।
जय-जय ज्योतिचरण! जय-जय महाश्रमण!
भैक्षव शासन के भव्य भाल पर आचार्य सिंहासन का पद सुशोभित करने वाले देदीप्यमान महासूर्य हैं- आचार्य महाश्रमण! जिनकी अलौकिक रश्मियों से पूरा विश्व जगमगा रहा है। आपश्री के ऐतिहासिक कीर्तिमानों की सौरभ से सारा जहां सुरभित हो रहा है। प्रभो! आप के तेजोमय आभामंडल से निकलने वाली हर किरण जन-जन के लिए कल्याणकारी साबित हो रही है।
हे मानवता के महामंगल! आपकी आगम निष्ठा, आत्मनिष्ठा अनुशासन निष्ठा, मर्यादानिष्ठा, सत्यनिष्ठा बेमिसाल है। पुठवीसमे मुणी हवेज्जा, काले कालं समायरे, सोही उज्जुयभूयस्स, उट्ठिए णो पमायए आदि आर्ष वाणी से परिपूरित आपश्री का संपूर्ण जीवन जिनवाणी को समर्पित है। गुरुदेव ने नैतिकता की मशाल हाथ में लेकर अनैतिकता को दूर किया, नशा मुक्ति का अभियान चलाकर लाखों-लाखों लोगों को सुख के राजमार्ग पर प्रस्थित किया, सद्भावना का दीपक जलाकर अनेक लोगों की जीवन बगिया को रोशन किया तथा अणुव्रत चेतना का अमृत बांटकर लोगों की चेतना को जागृत किया। युग की धाराओं को मोड़ने वाले, नए-नए इतिहास का सृजन करने वाले तथा जन-जन की सांसों में बसने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण की परोपकारिता, श्रमशीलता, उदारता, समता विश्व वंदनीय है। आचार्य तुलसी द्वारा तराशे गए तथा आचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा संवारे गए महायशस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी को हृदय की अन्तहीन गहराईयों के साथ वंदना! अभिवंदना!! अभ्यर्थना!!!
63 वें जन्मोत्सव पर - जय हो जय दिव्य दिवाकर की।
51 वें दीक्षोत्सव पर - जय हो जय संघ प्रभाकर की।
15 वें पट्टोत्सव पर - जय हो जय विश्वंद्य सर्वेश्वर की।
''जानकी को राम प्यारे, राधिका को श्याम प्यारे।
चंदना को वीर प्यारे, रक्षिता को गुरुदेव प्यारे।।''