आचार्यश्री महाश्रमण की महिमा अचिन्त्य

आचार्यश्री महाश्रमण की महिमा अचिन्त्य

आचार्य महाश्रमण के आभामंडल में पराक्रम की ऊर्जा तरंगें तरंगित होती रहती हैं क्योंकि मुदित और महाश्रमण दोनों का आद्य अक्षर मकार है। ज्योतिष के अनुसार यह नाम सिंह राशि का है। सिंह राशि पराक्रम की राशि है। इसके साथ यदि दो मकार का योग और हो जाता है तो यह त्रिपुटी बहुत शक्तिशाली बन जाती है। आपश्री के जीवन की अन्यान्य विशेषताओं के साथ मकार द्वय का सहचार बहुत महत्वपूर्ण है। विशेष इस प्रकार हैं -
01. मुस्कान/मुस्कुराहट
02. मंगलपाठ
इन दोनों के प्रथम अक्षर मकार होने से ये भी सिंह राशि के हो जाते हैं। सिंह राशि के नाम का सिंह राशि के साथ योग होने से ये आपके यश, कीर्ति में योगभूत बनते हैं।
मुस्कान/मुस्कराहट क्या है?
मुस्कुराहट जीवन की रोशनी है। इसे खरीदा अथवा बेचा नहीं जा सकता। यह एक ऐसा धन है, जिसे उधार भी नहीं दिया जा सकता है। विज्ञान के अनुसार मुस्कुराहट के कारण चेहरे की लगभग 365 मांसपेशियां सक्रिय होती हैं। जो ब्रेन को भी एक्टिव रखने में सहयोगी बनती हैं। पाश्चात्य दार्शनिकों का ऐसा मानना है कि मुस्कुराहट थके हुए व्यक्ति का आराम है, निराश के लिए आशा की किरण है और दर्द के लिए प्रकृति की सबसे श्रेष्ठ दवा है। क्योंकि मुस्कुराहट से एंटीबॉडी का निर्माण होता है। एंटीबॉडी व्यक्ति की उसी प्रकार रक्षा करती है जिस प्रकार समुद्र में डूबते हुए व्यक्ति के लिए ‘टापू’।
जर्मन के भौतिक शास्त्री हार्ट मैन ने धरती से निकलने वाली ऊर्जा को मापने का एक यंत्र बनाया जिसका नाम है ‘लोब एंटीना’, इससे जाना गया कि प्रसन्नता और सुवासित वस्तुओं से एक उच्चस्तरीय ऊर्जा निकलती है जिसे ‘टेलुरिक’ ऊर्जा कहा जाता है। यह ऊर्जा सकारात्मक आभामंडल से भी निकलती रहती है। जब व्यक्ति मुस्कुराता है तो उसके आभामंडल में पवित्र भावधारा बहती है और वह भावधारा ही मुस्कुराहट के साथ दूसरे व्यक्ति को गुड फीलिंग करवाती है। मिशिगन यूनिवर्सिटी के मनौवैज्ञानिक प्रोफेसर जेम्स वी मेकानल के अनुसार दिल से निकलने वाली सच्चे मुस्कान की तरंगों से आस-पास का परिसर बदल जाता है तथा व्यक्ति के हृदय को भी बदला जा सकता है।
मुस्कुराहट - जीवन की संपदा
किसी भी कोण से अनुभव किया जा सकता है कि पूज्यवर की मुस्कुराहट सच्ची है, अच्छी है। यह न केवल दिल से निकलने वाली है बल्कि दिल को छूने वाली भी है। यह आपके आकर्षक व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इससे कितने लोगों को सकून मिलता है, आंकलन करना कठिन है। 2 अप्रैल 2024, पूना से कुछ लोग दर्शनार्थ आए। गुरुदेव की उपासना करने के बाद साध्वियों की सेवा करने के लिए उनके स्थान पर भी आए। उन्होंने कहा- ‘महाराज ! आज तो म्हारो आणो सार्थक हुग्यो, म्हैं धन्य-धन्य हूग्या’। हमने पूछा कैसे? क्या हुआ? उन्होंने कहा आज गुरुदेव ने हम सभी को मुस्कुराहट के साथ बार-बार जयकारा दिया। ऐसा तो हमें पूने में भी कभी अनुभव नहीं हुआ, जैसा आज हुआ। इतना ही नहीं हमने जो निवेदन किया वह भी मुस्कान के साथ अच्छी तरह से सुना। हमारी थकान मिट गई। वास्तव में आचार्य महाश्रमण की मुस्कान लाखों-लाखों लोगों के तन और मन की दवा है। इसका प्रभाव दिखाई दे न दे चिरस्थायी होता है। यह एक ऐसी ताकत है जो व्यक्ति को अपनेपन के धागे से बांध लेती है।
मुस्कान - सुकून और संपदा
4 मई 2024, दो स्थानकवासी बहिनें गुरुदेव के दर्शन कर साध्वियों के पास कुछ जिज्ञासा समाधान करने के लिए आई। उन्होंने जब साध्वियों के साथ वार्ता की, उस दौरान बताया कि आचार्य श्री के दर्शनमात्र से उनके मुस्कुराहट भरे चेहरे को पल भर निहारने मात्र से उन्हें बहुत शांति मिली। आज हमें इस बात का दुःख है कि हमने इतने वर्षों तक महाश्रमणजी के दर्शन क्यों नहीं किए?
इस प्रकार के अनेक घटना प्रसंग हैं जिन्हें लिपिबद्ध करना कठिन हैं। इन्हें टेलूरिक ऊर्जा के संदर्भ में समझा जा सकता हैं क्योंकि पवित्र आभा वलय से टेलूरिक ऊर्जा तरंगे निकलती हैं ये तरंगे ही जन-जन का उद्धार करने वाली बन जाती हैं। इसी भावना से प्रेरित होकर सुकरात ने कहा था कि जिसके पास मुस्कुराता हुआ चेहरा है उसके पास दुनिया की सारी सम्पदाए हैं। अध्यात्म से अनुप्राणित आचार्यवर की मुस्कान बिना बोले ही लोगों के लिए संतुष्टि का आत्मतुष्टि का हेतु बनती हैं।
महात्मा कौन? - ‘मनस्येकं वचस्येकं कायेचैकं’ महात्मनाम्’
जिसके मन, वचन और काया की प्रवृत्ति एक दिशा गामी होती है, वह महात्मा होता है। आचार्य महाश्रमण के मन में मध्यस्थ भाव है, वाणी में ज्ञाता-दृष्टा भाव है और काया में स्थितप्रज्ञता है, इसलिए आप महान हैं व आप का मंगलपाठ भी महान है। अनेकानेक जीवन्त प्रसंगों से पाठक केवल एक घटना से जान सकेंगे कि मंगलपाठ का प्रभाव अचिन्त्य कैसे होता है।
अचिन्त्य प्रभावकारी मंगलपाठ
वालाजाबाद निवासी महावीर पीपाड़ा, मुम्बई नंदनवन में सेवा कर रहे थे। उनकी धर्मपत्नी की इच्छा थी कि इस बार दीपावली घर पर ही मनाऐंगे, इसलिए उन्होंने 08.11.2023 के फ्लाइट के टिकट बना लिए। वे लगभग 12.05 मिनिट पर पूज्य प्रवर के दर्शन करने मंगलपाठ सुनने गए। उस समय समणीजी सेवा कर रहे थे। उन्हें सेवा का समय 12.10 मिनिट का दिया गया। उनकी पुत्रवधु ममता ने कुछ जिज्ञासाएं श्री चरणों में निवेदित की इसलिए मंगलपाठ श्रवण में कुछ विलम्ब हो गया। गुरुदेव ने उन्हें ठीक 12.17 मिनिट पर मंगलपाठ सुनाया। ठीक उसी समय उनके दोनों जुड़वा पुत्र- राकेश व मुकेश का एक्सीडेंट हो गया। एक्सीडेंट बहुत जबरदस्त था। गाड़ी स्लिप हो गई, इस पार से उस पार जाकर पलटी खा गई। गाड़ी के हालात देखकर तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि इसमें यात्रा करने वाला कोई जिंदा रह सकता है क्या?
महावीर जी को जब ज्ञात हुआ कि उनके दोनों पुत्रों का एक्सीडेंट हो गया, गाड़ी चकनाचूर हो गई पर दोनों पुत्र सुरक्षित है तो उन्होंने कहा- यह तो गुरुदेव के मंगलपाठ का प्रभाव है। क्यों हुआ, कैसे हुआ? इसकी व्याख्या मैं नहीं कर सकता जो हुआ वह साक्षात् था। संतो ने हमें मंगलपाठ का समय 12.05 बजे का दिया। हम समय पर उपस्थित हो गए। पूज्यवर द्वारा 12.17 बजे पर पूज्यवर द्वारा मंगलपाठ सुनाना और उसी समय गाड़ी का एक्सीडेंट होना तथा दोनों भाईयों को यह महसूस होना कि हमें कोई बचा रहा है, ऊपर ही ऊपर हमारी रक्षा हो रही है। हम मौत को सामने देख रहे हैं फिर भी कोई घबरा नहीं रहे हैं। यह कोई कहानी, आख्यान अथवा चमत्मकार नहीं है यह दोनों भाईयों के साक्षात् अनुभव की प्रस्तुति हैं। यद्यपि राकेश पीपाड़ा के हल्की चोट आई। वह गाड़ी ड्राइव कर रहा था। किन्तु प्राथमिक चिकित्सा के बाद उसी समय घर पर आ गया।
प्रश्न है हम अपनी बुद्धि से इसका क्या समाधान खोज सकते हैं? हम यह तो अनुभव करते हैं कि एक-एक शब्द मंत्र बन जाता है। जयाचार्य ने 'भिक्षु म्हारै प्रगट्याजी' गीत में लिखा है- ''मंत्राक्षर सम नाम तुम्हारो, विघ्न मिटै घर-घर में''।
आचर्य महाश्रमण का मंगलपाठ भी मंत्राक्षर है क्योंकि आप एक दिन में सैंकड़ो-सैंकड़ों बार मंगलपाठ का उच्चारण मन, वचन व काया की स्थिरता व एकरूपता से करते हैं। ये तरंगें न केवल आपके आभामंडल को सशक्त करती है अपितु सुदूर तक अपना प्रभाव छोड़ सकती है। आज के युग में तो यह बात और सरलता से स्पष्ट हो जाती है। तंरगें तरंगों को प्रभावित करती हैं और तंरगें तरंगों से प्रभावित होती भी हैं। इसे हम ऊर्जा का, तरंगों का, गुरुवाणी का अचिन्त्य प्रभाव कह सकते हैं।