दोषों का प्रायश्‍चित करने से चारित्र शुद्धि रह सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दोषों का प्रायश्‍चित करने से चारित्र शुद्धि रह सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 19 सितंबर, 2021
श्रुत प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम में शास्त्रकार ने बल-सामर्थ्य के दस प्रकार बताए हैं। हमारे जीवन में तो बल का बहुत महत्त्व है। बल के बिना आदमी कार्य भी कैसे कर पाए। दस प्रकारों में पाँच तो इंद्रिय बल हो गए। श्रोतेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वा और स्पर्श इंद्रिय बल। इंद्रियाँ अपने विषय को ग्रहण करने में समर्थ हैं तो वह इंद्रियों का बल है। इंद्रियाँ अर्थ-ग्रहण बिलकुल नहीं कर सकती हैं, तो फिर वह बलहीनता हो जाती है। शरीर में इंद्रिय ज्ञान माध्यम बनती है। पाँच कर्मेन्द्रियाँ भी हैं। पर ये पाँच इंद्रियाँ ज्ञान का माध्यम है। सुनने, पढ़ने, देखने से कितना ज्ञान हो सकता है। अनुकूल इंद्रियों का होना एक भाग्य की स्थिति है। छठा बल हैज्ञानबल। ज्ञान बहुत बड़ा बल है। कंठस्थ ज्ञान भी होता है। धर्म क्षेत्र के सिवाय भी कितने-कितने विद्यालयों, विश्‍वविद्यालयों में शिक्षण संस्थाओं में ज्ञान विकास गृहस्थ करते हैं। सातवाँ-दर्शन बल। अपनी श्रद्धा-निष्ठा का बल। लक्ष्य व यथार्थ के प्रति निष्ठा, श्रद्धा-आस्था का बल होता है। चारित्र बल-संयम-चारित्र का भी बल होता है। नौवाँ बल हैतपोबल। तपस्या में भी शक्‍ति-सामर्थ्य हो सकता है। अनेक प्रकार के अनाहार के बल होते हैं। साधना के अनेक रूपों में तप बल किया जा सकता है। दसवाँ बल बतायावीर्य बल। शरीर का बल होता है, तो आदमी दूसरों की सेवा-परिचर्या कर सकता है। वचन बल और मन बल भी महत्त्वपूर्ण है। साधु चारित्र में जागरूक रहे। वीर्य शरीर से प्रभव होता है। दस प्राण और दस बल मिली-जुली सी बात है। इन दसों को तीन विभागों में बाँट सकते हैं। इंद्रिय बल, योग बल और मोक्ष बल।
साधु दोष से बचते रहे तो चारित्र की शुद्धि रह सकती है। संयम जीवन में जो प्रायश्‍चित है, वो एक सर्जरी रूप में छेद प्रायश्‍चित है। छेद प्रायश्‍चित के द्वारा शुद्धि का प्रयास करणीय होता है। शुद्धि न हो तो आगे के लिए कठिनाई हो सकती है। साधु-साध्वी, समणी का प्रयास रहे कि चारित्र निर्मल रहे। वर्तमान में संयम में दोष लग सकते हैं, पर प्रायश्‍चित होता रहे। वर्तमान की परिस्थिति में तो प्रायश्‍चित और काम का है। आचार के प्रतिकूल सेवन हो गया, उसकी शुद्धि हो जाए। चारित्र रूपी शरीर ठीक रहे। दोष की आलोयणा होती रहे। दस प्रकार के बल है। हम बलवान भी रहें। अपने बल का अच्छा उपयोग करें, यह हमारे लिए काम्य है।
आज चतुर्दशी है। मर्यादा पत्र वाचन-हाजरी का दिवस है। पूज्यप्रवर ने मर्यादावली का वाचन कर प्रेरणा प्रदान करवाई। हमारे तेरह नियम पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति की आराधना अखंड चलती रहे। भाषा समिति अच्छी रहे। जागरूकता रहे।
एषणा समिति में भी जागरूकता रहे। अलमारियों की हर पूनम को प्रतिलेखना हो जाए। चार काल का स्वाध्याय होता रहे। चर्चाओं के प्रति जागरूक रहें। ये सब हमारे चारित्र को संपोषण देने वाली बन जाती है। आचार्य भिक्षु द्वारा प्रदत्त पाँच मर्यादाएँ हमारे धर्मसंघ के पिलर है। शिरोमणी मर्यादा हैसर्व साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें। हाजरी की शिक्षाएँ हमारे सभी के लिए अच्छा जीवन जीने में सहयोगी बन सकती है। मुनि शरीर को छोड़ दें पर धर्म शासन को न छोड़ें। इन दिशा-निर्देशक तत्त्वों के प्रति हमारी जागरूकता बनी रहे। मुनि ज्योतिर्मय जी, मुनि मार्दव जी व मुनि मोक्ष जी से लेख पत्र वाचन का निर्देश दिए। सभी चारित्रात्माओं द्वारा लेख पत्र का वाचन किया गया। नवदीक्षित व बाल साधु-साध्वियों को चार गीतिकाएँ याद करने का निर्देश फरमाया।
हमारे भाग्य बड़े बलवान, मिला ये तेरापंथ महान। गीत के एक पद्य का सुमधुर संगान पूज्यप्रवर ने करवाया। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान एवं सम्यक्त्व दीक्षा ग्रहण करवाई। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि आचार्यप्रवर साधु-साध्वियों, समणियों एवं गृहस्थों को समय-समय पर अनेक कोणों से शिक्षण-प्रशिक्षण देते रहते हैं। तेरापंथ के आचार्य इस बात के प्रति जागरूक रहते हैं कि चतुर्विध धर्मसंघ में अध्यात्म का उजाला फैलता रहे। जीवन का स्तर उन्‍नत होता रहे। और जो लक्ष्य जिसने निर्धारित किया है, उस दिशा में प्रगति करता रहे। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि दु:ख में भगवान की स्मृति निरंतर रहेगी। यह दु:ख जीव ने अपने ही प्रमाद से प्राप्त किया है। अप्रमाद से जीव दु:ख की निवृत्ति करता है। मुनि ज्योतिर्मय जी ने गीत का संगान किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि साधु ज्ञान में तर्क करे और आज्ञा-निर्देश पालन में सतर्क रहे।