आचार्य महाश्रमण की सन्निधि में मेरी अनुभूतियां

आचार्य महाश्रमण की सन्निधि में मेरी अनुभूतियां

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा माना गया है। प्रसिद्ध वैदिक शास्त्र कुलार्णवतन्त्र में गुरु के 6 रूप बताए गए हैं–
प्रेरकः सूचकश्चैव, वाचको देशिकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्चैव, षडैते गुरवः स्मृताः।।
वास्तव में महान गुरु अपने शिष्य-शिष्याओं के लिए अनेक रूपों में उपकारक बनते हैं। वे अपनी दृष्टि से शब्दों से और अपने जीवन से शिष्यों को विशुद्धि, बोधि और समाधि प्रदान करते हैं। उनकी सन्निधि में जीए गए पल और उनके पवित्र शब्द जीवन की अनमोल विरासत बन जाते हैं। हम सौभाग्यशाली है कि परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महान गुरु का पावन सान्निध्य हमारा जीवन-पथ प्रकाशित कर रहा है। वैसे तो चतुर्विध धर्मसंघ के अनेक सदस्यों के आचार्यप्रवर से जुड़े अपने-अपने अनुभव हैं। मैं यहां अपने जीवन से सम्बन्धित तीन प्रसंगों का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगी। जब-जब मुझे इन प्रसंगों की स्मृति होती है, मेरा मन आनंद सागर में निम्मजित हो जाता है।
कयामत का दिन : बना किस्मत का दिन
यह प्रसंग 1/7/2015 गुरुवार इटहरी (नेपाल) का है। गुरु-सन्निधि में कयामत के दिन की चर्चा चल रही थी। उस समय इस प्रकार की महाविनाशकारी अफवाह भी चल रही थी कि अमुक दिन कयामत का दिन होगा। उस समय साधु-साध्वी एवं कुछ समणीजी उपस्थित थे। गुरुदेव ने महाश्रमणीजी से पूछा– ‘कल कयामत का दिन है क्या’? गुरुदेव ने फरमाया– ‘कल शुक्रवार है, अफवाह है कि यह कयामत का दिन हैं।’ गुरुदेव ने कुमारश्रमणजी को कहा– जाओ। तुम इस सम्बन्ध में जानकारी करके आओ। कुछ समय पश्चात् उन्होंने कहा–नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है। कल का दिन कयामत का दिन नहीं है। अनिष्ट की संभावना को टालने के लिए आचार्यप्रवर ने सोचा–तपस्या का अनुष्ठान कर लेना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा-संतों में हमारे मुनि दिनेशजी उपवास कर लेंगे, साध्वी में सुमतिप्रभा कर लेगी, समणी में समणी जिज्ञासाप्रज्ञा कर लेगी, गुरुदेव ने मुझे पूछा– ‘तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं है?’ गुरुमुख से उपवास के लिए मेरा नाम सुनकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई। मैंने कहा– नहीं गुरुदेव! मुनि दिनेशकुमारजी से कहा– कल एक श्रावक और एक श्राविका को भी उपवास के लिए तैयार करना है। उन्होंने कहा– आचार्यवर के निर्देंश के अनुसार श्रावक और श्राविका को मैं तैयार कर लूंगा। मुझे ऐसा लगा– गुरुदेव की अंतर दृष्टि जागृत थी, अतः विघ्न निवारण के लिए सबको उपवास हेतु प्रेरित किया। उस दिन मुझे ऐसा लगा कि कयामत तो पता नहीं कब आएगी, लेकिन मेरे लिए वह दिन किस्मत का दिन बन गया।
मूल्यांकन शिष्य का
सन् 2023 में संघीय अपेक्षा से आदरणीय समणी मधुरप्रज्ञाजी और मुझे ह्युस्टन (अमेरिका) केन्द्र में भेजा गया। वहां से लौटकर हमने 6 फरवरी 2024 को परमाराध्य गुरुदेव के दर्शन किए। विदेश से आने वाले सभी समणीजी की पृच्छा हुई। आचार्यप्रवर की प्रसन्न दृष्टि से हमारा मन आह्लादित था। पृच्छा सम्पन्न होने पर मैंने आचार्यवर को निवेदन किया-‘‘श्रीचरणों में कु ‘‘गुरुदेव! विदेश का भी इतिहास सुरक्षित होना चाहिए, क्योंकि प्रारम्भ के समणीजी ने बहुत सहन करके केन्द्रों की स्थापना की है। यदि अभी लिखित नहीं होगा तो विस्मृति के गर्त
में चला जाएगा।’’ वहां साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्याजी आदि साध्वीवृंद एवं समणीजी भी उपस्थित थे। गुरुदेव ने साध्वीप्रमुखाजी से पूछा, साध्वीप्रमुखाजी ने भी सहमति प्रकट की। गुरुदेव ने पूछा–‘‘कौन समणीजी इतिहास लिख सकती है?’’ समणी मधुरप्रज्ञाजी से पूछा–‘क्या तुम लिख सकती हो?’ उन्होंने कहा–‘गुरुदेव की कृपा होगी तो हो जाएगा।’ पुनः गुरुदेव ने पूछा-‘क्या तुमको सहयोगी के रूप में कोई चाहिए?’ उन्होंने कहा–‘समणी सन्मतिप्रज्ञाजी।’ पास में मुख्यमुनिप्रवर विराजे हुए थे। गुरुदेव ने लिखित करवाया और साध्वीवर्याजी को कहा-‘याद रखना 2 वर्ष में कार्य सम्पन्न हो जाए तो मधुरप्रज्ञा को उपहार देना है।’
मैंने अनुभव किया कि गुरुदेव संघ के छोटे-से-छोटे सदस्य की बात पर भी पूरा ध्यान देते हैं एवं यथा अपेक्षा मूल्यांकन भी करते हैं। हम सब धन्य है कि इस कलियुग में हमें ऐसे महान पराक्रमी और यशस्वी गुरु प्राप्त हुए हैं। उनकी छत्रछाया में हम उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकास करें, यह अपेक्षा है।
मंगल पाठ की कहानी : मेरी नादानी
प्रसंग दिल्ली का है। मैं और समणी अर्हत्प्रज्ञाजी औरंगाबाद से दिल्ली गुरु-सन्निघि में जाने लगे तो शासनश्री साध्वी चंदनबालाजी ने कहा-‘आज कल मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। रात में नींद नहीं आती है। अभी मुझे संघ की सेवा करनी है। अतः आप मेरी तरफ से गुरुदेव को मंगलपाठ सुनाने का निवेदन कर देना। गुरु सन्निधि में पहुंचते ही मैंने मंगलपाठ के लिए निवेदन किया तो गुरुदेव ने फरमाया-लो तुम्हें ही मंगलपाठ सुना देते हैं।’ मैंने निवेदन किया– ‘आप साध्वीवर्याजी को सुना देना।’
गुरुदेव मेरी बात सुनकर मुस्कराने लगे। जब मैंने समणियों, साध्वियों और साध्वीवर्याजी को यह बात बताई तो उन्होंने कहा– भोली हो, गुरुदेव ने कृपा कराई तो सुन लेते। मंगलपाठ, बाद में जब साध्वीवर्याजी ने साध्वीश्री चंदनबालाजी के लिए मंगलपाठ का निवेदन किया तो आचार्यवर ने कहा-हमने तो उसी दिन समणी जिज्ञासाप्रज्ञाजी को मंगलपाठ सुनने के लिए कहा ही था। साध्वीवर्याजी ने कहा-‘गुरुदेव! जिज्ञासाप्रज्ञाजी को ऐसा ध्यान में था कि किसी के लिए मंगलपाठ सुनना हो तो मुख्यमुनिप्रवर एवं साध्वीवर्याजी ही सुन सकते हैं। मेरी यह बात सुनकर वहां उपस्थित सभी साध्वीजी मुस्कराने लगीं। इस घटना को मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊंगी, क्योंकि गुरु ने स्वयं मंगलपाठ सुनाने को कहा, पर मैं अपनी नादानी के कारण उससे वंचित रह गयी।
इस तरह गुरु-सन्निधि के क्षण विविधता लिए होते हैं, कभी प्रेरणा पाथेय के निमित्त बनते हैं, वे कभी आनंद के साथ स्मृति में स्थायी बन जाते हैं, कभी जागरूकता के साथ नया प्रशिक्षण देते हैं। हम उन प्रसंगों से अपने जीवन-उपवन को सजाते रहें। ऐसे महान गुरु चिरकाल तक धर्मसंघ का योगक्षेम करते रहे, इसी शुभकामना के साथ।