महान यायावर : आचार्य महाश्रमण

महान यायावर : आचार्य महाश्रमण

यदि कोई पूछे कोलम्बस और वास्कोडिगामा कौन थे? तो सीधा सा उत्तर होगा कि वे घुमक्कड़ थे। जिन्होंने अपनी घुमक्कड़ी के द्वारा देश को खोजा, समुद्री मार्गों का शोध किया और दुनिया का नक्शा बदल डाला। भारत विविधताओं में एकता का देश है। हजारों वर्षों से इसकी संस्कृति की सुरक्षा और मानव कल्याण हेतु अनेक ऋषि मुनियों ने पदयात्रा करते हुए, अपने उपदेशों के द्वारा व्यक्ति, समाज व देश को बदला तथा अहर्निश इस दिशा में प्रयत्नशील भी हैं। पदयात्रा श्रमण संस्कृति की मौलिक पहचान है, जैन मुनि का जीवन व्रत है। पदयात्रा का मतलब सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाना ही नहीं अपितु पदयात्रा के माध्यम से व्यक्ति विभिन्न प्रांतों के लोगों की संस्कृति, रीति-रिवाजों को देखता, समझता और उनसे जुड़ता है। कुछ व्यक्ति साइकिल व मोटरसाइकिल से विश्व भ्रमण व भारत भ्रमण के लिए यात्रा करते हैं।
'परहित सरिस धर्म नहीं भाई' इस सुभाषित को अपने जीवन का ध्येय बनाकर चलने वाले तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी एक ऐसे महान यायावर संत है जो अपने जीवन काल में अब तक लगभग 60,000 कि.मी से अधिक पदयात्रा कर चुके हैं तथा यह यात्रा वर्तमान में भी अनवरत जारी है। यात्रा के अनेक प्रकार हैं- मनोरंजन जन्य यात्रा, साहसिक यात्रा तथा किसी विशेष उद्देश्य के साथ की जाने वाली यात्रा। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की किसी विशेष उद्देश्य के साथ की जाने वाली यात्रा है। जिसका उद्देश्य है- नैतिकता, नशामुक्ति व सदभावना का विकास। जिनकी यात्रा का नाम है- अहिंसा यात्रा। आचार्य प्रवर की राष्ट्रव्यापी पदयात्रा शांति और अहिंसा की प्रतिष्ठा के लिए एक आंदोलन का रूप ले चुकी है। आपश्री ने अपनी लम्बी-लम्बी पदयात्राओं के माध्यम से शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के संदेशों द्वारा लाखों करोड़ों लोगों के दिलों में स्थान बनाया है। कच्छ से काजीरंगा और काठमांडो से कन्याकुमारी तक की इस अहिंसा यात्रा ने मानवीय मूल्यों के संदेशों द्वारा लाखों लोगों को एक जुट किया है। आपश्री की इस यात्रा ने वैश्विक स्तर पर लोगों को एकजुट किया है। आपश्री की यह यात्रा वैश्विक स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बांधती है। वृहत्तकल्प भाष्य में देशाटन से होने वाले पांच प्रकार के विशेष लाभ का उल्लेख मिलता है।
दर्शन विशुद्धि – विभिन्न देशों में पर्यटन करने वाला मुनि अतिशय, अचिंत्य और प्रभावी अर्हतों की जन्म अभिनिष्क्रमण आदि से संबंधित भूमियों को साक्षात देखता है। उन्हें देखकर यह जानकारी प्राप्त होती है कि जिनेश्वर भगवान अमुक स्थान पर दीक्षित हुए, अमुक स्थान पर निर्वाण को प्राप्त हुए। उनको देखने से उत्पन्न विशिष्ट अध्यवसायों से मुनि को आन्तरिक प्रसन्नता होती है तथा इससे सम्यक्त्व की विशुद्धि होती है। आचार्य महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के दौरान बिहार प्रांत में विचरण करते हुए भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावापुरी, विचरण भूमि राजगिरी व अन्य 22 तीर्थंकरों की निर्माण भूमि सम्मेद शिखर पधारें। 4430 फुट की ऊंचाई पर स्थित पारसनाथ पर्वत का आरोहण पूज्यप्रवर ने बिना किसी लाठी का साहारा लिये किया। यह आपश्री के आत्मबल, संकल्पबल व मनोबल का एक उदाहरण था। सम्मेदशिखर की एक दिन की यह यात्रा लगभग 23 कि.मी. की थी। तीर्थंकरों की पावन भूमि में तीर्थंकर तुल्य आचार्य के पदार्पण से तथा उनकी देशना को सुनकर अनेक भविजनों ने आनंदानुभूति का अनुभव किया।
स्थिरीकरण – विहरणशील भव्य आचार्य को देखकर तत्रस्थ संविग्न मुनियों में संवेग उत्पन्न होता है। आचार्य स्वयं सुविहित, अप्रमत्त तथा विशुद्ध लेश्या संपन्न होते हैं। अत: विशुद्ध लेश्या वाले मुनियों का स्थिरीकरण करते हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आचार्य बनने के बाद घोषणा की थी कि मैं सर्वप्रथम स्थिरवासी वृद्ध साधु-साध्वियों के सेवा केन्द्रों की तीर्थयात्रा करूंगा। अपने इस शुभ संकल्प के साथ पूज्यप्रवर सभी सेवा केन्द्रों में पधारें। वहां स्थिरवासी सभी साधु साध्वियों की सुख-पृच्छा की। उन्हें चित्त समाधि पूर्वक स्थिरीकरण प्रदान किया। देशी भाषा कौशल – अलग-अलग प्रांतों में भिन्न देशी भाषाओं का प्रयोग होता है। वहां विहार करने वाला मुनि उन दोनों प्रदेशों की भाषाओं में निष्णात हो जाता है। विविध भाषाओं में निष्णात होने के कारण तत्रस्थ भाषाओं में निबद्य आगम सूत्रों के उच्चारण तथा अर्थ कथन में वह मुनि कुशल हो जाता है। आचार्यश्री विविध भाषाओं के ज्ञाता है। आप एक और अन्तराष्ट्रीय प्रेक्षा शिविरों में अंग्रेजी भाषा में ध्यान के प्रयोग, जिज्ञासा समाधान व कभी-कभी प्रवचन भी करते हैं तो दूसरी ओर ग्रामीण जनता से उनकी भाषा में वार्ता कर उन्हें संतुष्ट करते हैं। आप संस्कृत, प्राकृत हिन्दी अंग्रेजी आदि भाषाओं के ज्ञाता है। यात्रा के दौरान यथानुकूलता इन भाषाओं का प्रयोग करते हैं।
अतिशय उपलब्धि – परिभ्रमण करने वाला मुनि विभिन्न विधाओं में पारगामी आचार्य तथा बहुश्रुत मुनियों से मिलते हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी भी अपनी यात्राओं के दौरान विविध सम्प्रदायों के विशिष्ट आचार्यों तथा अनेक साधु-साध्वियों से मिले। उनसे चर्चा-वार्ता की। परस्पर का यह मिलन आचार्यश्री की बहुश्रुतता, उनकी तेजस्विता की अमिट छाप है। जनपद परीक्षा – विभिन्न देशों की यात्रा करता हुआ मुनि वहां की सभ्यता व संस्कृति का ज्ञान करता है। देश दर्शन करता हुआ मुनि जनपदों की परीक्षा करता है। आचार्य प्रवर भी नेपाल (काठमांडु) भूटान, नागालैंड, शिलोंग आदि देश-विदेशों की यात्रा करते हुए वहां की सभ्यता व संस्कृति से रूबरू हुए। यात्राओं के दौरान श्रावक समाज की संघ भक्ति से अवगत होते हैं। पदयात्रा जनमानस व प्रकृति से जुड़ने का एक सीधा सा प्रयास है। कहा जाता है कि संत जन गंगा के समान भुजंगी चाल से चलते हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी भी अपनी यात्रा भुजंगी चाल से कर रहे हैं। 'तिन्नाणं तारयाणं' ध्येय को लेकर चलने वाले पूज्यप्रवर अपनी यात्राओं के दौरान सरल पथ को छोड़कर टेढ़े-मेढ़े ऊबड़-खाबड़ जैसे कठिन पथ पर विहरण कर रहे हैं। सन् 2016 असम यात्रा के दौरान आप बीहड़ पथ की परवाह किए बिना लगभग 80 कि.मी. का चक्कर लेकर नागालैंड पधारे। संभवत: किसी जैनाचार्य का नागालैंड की धरती पर प्रथम बार पदार्पण हुआ।
सन् 2024 मुंबई मर्यादा महोत्सव के पश्चात आचार्यश्री को पनवेल से पूना पधारना था। पनवेल से पूना लगभग 110 कि.मी. किन्तु आचार्यश्री ने कोंकण क्षेत्र को परसने के लिए 123 कि.मी. का अतिरिक्त विहार किया। इसी प्रकार पूना से औरंगाबाद का सीधा रास्ता था। किन्तु बीड क्षेत्र के भक्तों की भावना रखने के लिए 156 कि.मी. का चक्कर लेकर औरंगाबद पधारें। यदि 2023-24 के यात्रा पथ का आंकलन किया जाए तो मात्र 250 कि.मी. को मार्ग को पूज्यप्रवर ने 1772 कि.मी में तब्दील कर दिया। इस प्रकार एक नहीं अनेकों ऐसे उदाहरण है जहां श्रद्धालु श्रावकों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए आचार्य महाश्रमणजी भुजंगी चाल से यात्रा कर रहे हैं। यात्रा के दौरान मार्गवर्ती गांवों में रूक ग्रामीण जनता को नैतिकता, नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करवाते हैं।26 मार्च 2011 का प्रसंग मेवाड़ यात्रा के दौरान आचार्यश्री ने बदनौर से आसींद के लिए 17 कि.मी. का प्रलंब विहार किया। इस एक विहार में पूज्यप्रवर ने मध्यवर्ती गांवों में नौ पड़ाव किए। ये पड़ाव न तो थकान के कारण न ही स्थानाभाव के कारण और न ही मार्गवर्ती कठिनाई के कारण।
मात्र ग्रामीण जनता की भक्ति भावना को देखते हुए स्थान-स्थान पर प्रवचन किया, उन्हें नशा मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान की। पूज्यप्रवर की इस यात्रा ने स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र व स्वस्थ विश्व की संकल्पना को साकार किया। यह यात्रा लोगों के ह्रदय परिवर्तन की यात्रा है। अस्तु लोक कल्याण की उदात्त भावना को लेकर चलने वाले आचार्य महाश्रमण जितने गतिशील हैं, आपश्री का आभावलय उतना ही उज्जवल व पवित्र है। गतिशीलता व उज्जवलता का यह अद्भुत संगम आपके पुरुषार्थ और चारित्रिक आस्था का जीवंत प्रतीक है। दीक्षा कल्याण महोत्सव पर यही मंगल कामना है कि आप शतायु, सहस्रायु हो। आपकी संयम यात्रा निरामयता के साथ अनवरत प्रर्वधमान बनी रहें।