साधु की योग साधना चेतना को निखारने वाली बने : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधु की योग साधना चेतना को निखारने वाली बने : आचार्यश्री महाश्रमण

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के पावन अवसर पर महायोगी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि आगम वाङ्मय की भाषा में योग की साधना अध्यात्म की साधना होती है। अभिधान चिंतामणि में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है- मोक्ष का उपाय योग है और वह उपाय ज्ञान, दर्शन और चारित्र स्वरूप वाला होता है। अर्थात सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र की आराधना योग साधना है।
ऐसी ही दूसरी परिभाषा यह है कि मोक्ष से जोड़ने वाला योग होता है। सारी धर्म की प्रवृत्ति योग है क्योंकि वह मोक्ष से जोड़ने वाली होती है। पातंजल योग दर्शन में चित्त-वृत्ति निरोध को योग बताया गया है। जैन सिद्धान्त दीपिका - जैन दर्शन के सन्दर्भ में, भिक्षु न्याय कर्णिका- न्याय के सन्दर्भ में और मनोनुशासनम् - योग साधना, ध्यान साधना के सन्दर्भ में, ये गुरुदेव तुलसी के संस्कृत भाषा के तीन ग्रन्थ हैं। हमारे परिपेक्ष्य में देखें तो योग साधना की दृष्टि से मनोनुशासनम् का अपना महत्व हो सकता है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की कृति सम्बोधि ग्रन्थ में भी अध्यात्म-धर्म की बातें संस्कृत भाषा के श्लोकों में देख सकते हैं।
अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आ जाते हैं। नाम माला में इन आठों का वर्णन संक्षेप में प्राप्त होता है। हमारे यहां प्रेक्षाध्यान योग साधना पद्धति चलती है। योग साधना हमारे जीवन में रहे। साधु तो योगी होता ही है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य की साधना भी योग ही है। शुभ योग भी योग ही है।
विश्व अन्तर्राष्ट्रीय दिवस पर योग को व्यापक होने का मौका मिला है। अनेकों ऋषि-संन्यासी भारत वर्ष में हुए हैं। भगवान महावीर तो महायोगी, परमयोगी थे।आसन-प्राणायाम भी योग के ही अंग हैं। आज के दिन जगह-जगह योग साधना के प्रयोग करवाये जाते हैं। योग साधना में अनेक प्रयोग श्वास के साथ जुड़े हुए हैं। गुरुदेव तुलसी भी योग साधना करते थे, साथ में हम बालसाधुओं को भी करवाते थे।
स्वाध्याय भी योग है। प्रेक्षाध्यान भी योग साधना में विख्यात हुआ है। कई गृह त्यागी व कई गृहस्थ भी इससे जुड़े हैं। कई सहज योगी, तपोयोगी होते हैं। तपोयोग साधना के भी कई प्रकार हैं। हमारे धर्म संघ में अनेक चारित्रात्माएं तपोयोग से जुड़े हैं। अतीत में भी कई साधु-साध्वियां लम्बी तपस्या करने वाले हुए हैं। निकट अतीत में दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नाजी को हमने देखा। वर्तमान में भी कई साधु-साध्वियां तपस्या करते हैं। चारित्रात्माएं योगी ही रहें। साधु की योग साधना चेतना को निखारने वाली बने। दर्शन व चारित्र भी योग है। गृहस्थों में भी कई अच्छे संयमी साधक-साधिकाएं मिल सकते हैं। तपस्या से कई लब्धियां प्राप्त हो सकती है, पर उनका सदुपयोग हो। साधु की तो हर क्रिया में योग होता है, हम ध्रुवयोगी रहें। आचार्य भिक्षु भी महान योगी पुरुष थे, उन्होंने कहा था कि दो घड़ी श्वास रोककर रह जाऊं। सभी चारित्रात्माएं सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र की आराधना करते रहें। पूज्यवर ने योग दिवस के उपलक्ष में ध्यान का संक्षिप्त प्रयोग करवाया। आचार्य प्रवर ने मुमुक्षु तैयार करने के लिए चार संत, चार साध्वियों और चार समणियों की नियुक्ति के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान की। चतुर्दशी के अवसर पर पूज्यवर ने हाजरी का वाचन करवाते हुए प्रेरणाएं प्रदान करवायी। आचार्य प्रवर के निर्देशानुसार मुनि ध्यानमूर्तिजी एवं मुनि देवकुमारजी ने लेख पत्र का वाचन किया।
धर्मसंघ के वयोवृद्ध श्रावक जेसराजजी सेखाणी ने 101वें जन्मदिवस के अवसर पर पूज्यप्रवर के दर्शन किए। पूज्यप्रवर ने फ़रमाया कि ये वयोवृद्ध नहीं बालवृद्ध श्रावक लग रहे हैं। पूज्यवर के स्वागत में अजय पगारिया, प्रेक्षा एवं आराध्या, उपांशु कुमठ, टीना कुमठ, ईक्षिता कुमठ, प्रतीक्षा कुमठ, मीनल कुमठ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अरिहंत बहु मंडल ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। महाराष्ट्र विधान सभा के स्पीकर अरुण भाई गुजराती ने पूज्यप्रवर के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।