कल्याणी वाणी सुनने से दूर हो सकती है विषयों के प्रति आसक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कल्याणी वाणी सुनने से दूर हो सकती है विषयों के प्रति आसक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी ने धुळे जिले के आनन्द खेड़े गांव स्थित गांधी एण्ड फुले विद्यालय में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फ़रमाया- प्रश्न किया गया कि प्राणियों को भय किस चीज का लगता है? प्रश्नकर्त्ता ने ही उत्तर दे दिया कि प्राणी दुःखों से भय खाते हैं। जीव स्वयं ही अपने ही प्रमाद के कारण दुःख पैदा करता है। हमारे जीवन में कई बार कठिन स्थितियां भी आ सकती है, हमें उनसे दुःख भी हो सकता है। हो सकता है कई लोग उन स्थितियों में दुःखी न बने तो कई ज्यादा दुःखी भी हो सकते हैं।
पदार्थों व विषयों के प्रति अनुगृद्धि होती है, उससे दुःख पैदा होता है। लोक में जितना भी दुःख पैदा होता है, वह कामानुवृद्धि से होता है। आसक्ति, मोह, लालसा, तृष्णा आदि क्षीण हो जाएं तो दुःख कम हो सकते हैं। दुःख शारीरिक भी हो सकते हैं और मानसिक भी हो सकते हैं। जरा और शोक दोनों प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिल जाए, आठों कर्मों से मुक्त होकर जीव मोक्ष में चला जाए तो पूर्णतया दुःखों से छुटकारा मिल सकता है। सारे दुःखों का कारण मोहनीय कर्म है, हम मोहनीय कर्म को क्षीण करने का प्रयास करें। पदार्थों का त्याग करें, भीतर से आकांक्षा को छोड़ें। अनुप्रेक्षा व प्रवचन-सत्संग भी आसक्ति को कम करने में सहायक बन सकते हैं। ज्ञान मिले और संवेग जाग जाए तो आसक्ति कम हो सकती है। त्यागी अणगार मुनि के सत्संग से कभी प्रेरणा मिल सकती है और जीवन की दशा और दिशा बदल जाती है। धर्म ग्रन्थों को पढ़ते-पढ़ते भी विरक्ति की भावना, अनासक्ति की भावना का विकास हो सकता है।
त्यागी संतों का प्रवचन रोज सुनते रहना चाहिए। उनकी वाणी से भीगते-भीगते ऐसी स्थिति बन सकती है कि इस जन्म में नहीं तो आगे के जन्म में कोई अच्छा रास्ता मिल सकता है। धर्म को सुनने का मौका नहीं गंवाना चाहिये। साधु की कल्याणी वाणी दूसरों का कल्याण करने में निमित्त-सहायक बन सकती है। विषयों के प्रति जो आसक्ति होती है वह अच्छी बातें सुनने से दूर हो सकती है और मनुष्य की चेतना ऊर्ध्वगामी बन सकती है। पूज्यप्रवर के स्वागत में विद्यालय की अध्यापिका रजनी महाजन एवं खेड़े श्रीसंघ की ओर प्रदीप चतुरमूथा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।