संवर और निर्जरा हो जाएं आत्मगत : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संवर और निर्जरा हो जाएं आत्मगत : आचार्यश्री महाश्रमण

गुजरात स्तरीय भव्य स्वागत समारोह का व्यारा में हुआ आयोजन

गुजरात प्रदेश के व्यारा में तेरापंथ सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी का सूरत चातुर्मास हेतु पदार्पण पर गुजरात स्तरीय भव्य स्वागत समारोह का आयोजन किया गया। के. एम. गांधी प्राइमरी स्कूल प्रांगण में बने तीर्थंकर समवसरण में गुजरात प्रवेश स्वागत समारोह के अवसर पर जन-जन के हृदय सम्राट आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि दो कार्य होते हैं, एक निरोध यानि रोकना और दूसरा कार्य होता है निकालना। शोधन के लिए निरोध भी अपेक्षित है तो विजातीय तत्वों को बाहर निकालना भी जरूरी होता है। नए सिरे से गन्दगी आए नहीं और पहले से जो मैल है, उसको निकाल लिया जाए।
जैन साधना पद्धति में दो शब्द हैं- संवर, निर्जरा। ये दोनों शब्द जैन साधना पद्धति का प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द हैं। संवर का काम है कि नए सिरे से पाप कर्म का बन्ध न हो और आगे जाकर कोई भी पाप-पुण्य बन्ध न हो, यह व्यवस्था संवर के द्वारा होती है। जो पहले से कर्म बन्धे हुए हैं, उन पाप कर्मों को तोड़ना, निकालना यह कार्य निर्जरा तत्त्व के अन्तर्गत होता है। संवर और निर्जरा दोनों तत्त्व हमारे जीवन में आत्मगत हो जाएं तो हम विशुद्धि की दिशा में गति कर सकते हैं, संवर और निर्जरा की अन्तिम निष्पत्ति मोक्ष को हम प्राप्त कर सकते हैं। संवर की साधना का बड़ा महत्व है। संवर रहेगा तो कर्म कटेंगे। संवर कुछ मुश्किल है, निर्जरा उसकी तुलना में कुछ आसान है। निर्जरा तो पहले गुणस्थान में भी हो सकती है पर संवर पांचवें गुणस्थान से शुरू होता है। अकाम निर्जरा तो और भी सुलभ है, एकेन्द्रिय जैसे जीव के भी कर्म झड़ते हैं। सम्पूर्णतया संवर चौदहवें गुणस्थान में होता है। एकमात्र चौदहवें - अयोगी केवली गुणस्थान में पांचों संवर सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषाय और अयोग मिलते हैं। अन्य किसी भी गुणस्थान में पांचों संवर एक साथ नहीं हो सकते।
निर्जरा छोटे-छोटे प्राणियों के भी हो सकती है। निर्जरा का साधन है- तप। तप और निर्जरा में अभेद भी बताया गया। इसलिए तपस्या के बारह भेद को ही निर्जरा के भेद के रूप में मान लिए गये हैं। कारण और कार्य से भेद है, बाकी निर्जरा तो एकाकार है। तपस्या के बारह प्रकारों में एक प्रकार अनशन है। चतुर्मास में तो उपवास, अठाई, मासखमण आदि अनेक तपस्याएं होती हैं। पिछली बार सूरत में अक्षय तृतीया कार्यक्रम में वर्षीतप के 1000 से भी अधिक पारणे हुए थे। गुरुकुलवास में इतने वर्षीतप पारणे का कार्यक्रम संभवतः पहली बार हुआ था। कठिनाई को सहन करना भी तपस्या है। जीवन में प्रतिकूलताएं आ सकती हैं, समता भाव से इनको सहना तपस्या है। कष्ट में भी चिन्तन स्पष्ट रहे कि मेरे कर्मों की निर्जरा हो रही है। निमित्त कोई भी हो सकता है, पर किए गए कर्म तो भोगने ही पड़ते हैं।
भगवान महावीर से जुड़े शासन से हम संबद्ध हैं। भगवान के सामने तो कितनी प्रतिकूलताएं आई थी फिर भी उन्होंने समता भाव रखा। हमारे आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु के जीवन में कितने विरोध-प्रतिकूलताएं आए थे। गुरुदेव तुलसी के सामने भी कितने विरोध के प्रसंग आए थे। विरोध को विनोद मान कर छोड़ दें। आचार्य श्री तुलसी का लम्बा जीवनकाल रहा। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को भी हमने देखा। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने गुजरात को दो चातुर्मास प्रदान किए थे। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने सूरत से खान्देश की ओर प्रस्थान किया था, हमने खान्देश से सूरत की ओर प्रस्थान किया। गुजरात का हमारा प्रवास, प्रवेश और यात्रा लंबे समय की संभावित है। गुजरात में जैन संस्कृति को देखने का अवसर भी मिलता है। एक संयोग यह भी बन गया कि गुरुदेव तुलसी ने का गुजरात का पहला चातुर्मास वि.सं. 2024 में किया था और हमारा आचार्य रूप में पहला चातुर्मास सन् 2024 में होने जा रहा है। मानो गुरुदेव तुलसी का अनुगमन हो रहा है। हमारी गुजरात की यात्रा आध्यात्मिकता की दृष्टि से अच्छी रहे, मंगलमय रहे। सभी धार्मिक-आध्यात्मिक उत्साह बनाते हुए खूब धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि कुछ वृक्ष पत्तों वाले होते हैं, कुछ वृक्ष फूलों वाले होते हैं और कुछ वृक्ष फलों वाले होते हैं। पत्तों वाले वृक्ष अल्प उपकारी, उनसे अधिक उपकार करने वाले फूलों वाले और विशिष्ट उपकार करने वाले फलों वाले वृक्ष होते हैं। पत्तों वाले वृक्ष छाया और चमक, फूलों वाले वृक्ष सुगंध और फलों वाले वृक्ष सरसता के प्रतीक बनते हैं। आचार्यवर के जीवन में चमक है, महक है और सरसता भी है। जहां चमक, महक और सरसता है, वह व्यक्ति दूसरों के लिए कुछ कर सकता है, वह व्यक्ति ही अध्यात्म से संपन्न बन सकता है। आचार्यवर जहां भी जहां पधारते हैं, अध्यात्म की वर्षा करते हैं। आप अध्यात्म का मानसून लेकर आये हैं, जिनसे जन-जन को अमृत की प्राप्ति होगी, तृप्ति की अनुभूति होगी। आचार्यवर नैतिकता और नशामुक्ति के भावों को जगाने पधारें हैं।
पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष मीठालाल खाब्या, तेयुप से संदीप चौरड़िया, मूर्तिपूजक समाज से ऋषभ भाई शाह, स्थानकवासी समाज से रणजीत बडोला, बी. एन. शाह, ने अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत गीत एवं ज्ञानशाला ने सुन्दर प्रस्तुति दी। गुजरात स्तरीय स्वागत समारोह में चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति सूरत के अध्यक्ष संजय सुराणा, स्वागताध्यक्ष संजय जैन एवं कच्छ भुज से चंदूभाई संघवी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अहमदाबाद व्यवस्था समिति अध्यक्ष अरविन्द संचेती ने अपने भाव व्यक्त किए। अहमदाबाद चातुर्मास के लोगो का अनावरण पूज्यवर की सन्निधि में हुआ। व्यवस्था समिति सूरत एवं तेरापंथ किशोर मंडल ने गीत का संगान किया। प्रिया गुर्जर ने पूज्यवर से 9 की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।