जीवन की बहुत बड़ी सम्पदा है अच्छे संस्कार, विचार और आचार : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ के नाथ आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलदेशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारी यह धर्म यात्रा-अध्यात्म यात्रा चल रही है। यात्रा दो प्रकार की हो जाती है- एक तो पैरों से या वाहन से चलकर होने वाली यात्रा और दूसरी यात्रा है- जत्ता यात्रा, धर्म की यात्रा। चतुर्मास में एक जगह रहते हुए भी वह धर्म यात्रा चलती रह सकती है। अध्यात्म की, साधना की यात्रा चलती रहती है। हमारी यात्रा धर्म की यात्रा है। पैरों से चलकर होने वाली यात्रा भी धर्म को पुष्ट करने वाली, अहिंसा का उद्घोष करने वाली यात्रा है। इस यात्रा में हम तीन बातें बताया करते हैं- सद्भावना, नैतिकता और नशा मुक्ति। विचारों में भिन्नता होते हुए भी हम सबमें परस्पर सद्भावना रहनी चाहिए। आदमी को व्यापार, लेन-देन में ईमानदारी रखनी चाहिये। किसी को धोखा देने से बचने का प्रयास करना चाहिये। आदमी को नशीली चीजों के सेवन से बचने का प्रयास करना चाहिये। ये तीनों बातें गृहस्थों में है, तो मान लें जीवन में अच्छे संस्कार है।
जीवन की बहुत बड़ी सम्पदा है- अच्छे संस्कार, अच्छा विचार, अच्छा आचार। विचार अच्छे हैं, वे व्यवहार में भी आने चाहिए। ज्ञान व्यवहार में उतरे इसके लिए संस्कारों का पुल बनाएं। हमारी आस्था अच्छी हो। ईमानदारी, अहिंसा, निरंहकारिता, शांति, क्षमा, संयम रूपी अच्छे संस्कार हों और वे व्यवहार में अवतरित हो जाएं तो व्यवहार अच्छा हो सकता है। अच्छे संस्कार परिवारों में मिलते हैं। विद्यालयों में भी शिक्षा संस्कारयुक्त हो तो बच्चे अच्छे और सच्चे बनेंगे, यह समाज-देश के लिए अच्छी बात हो सकती है। इन संस्कारों को पुष्ट करने में ज्ञानशालाएं भी बहुत बड़ा माध्यम बन सकती हैं। धार्मिक ज्ञान भी बच्चों को मिले, यह बाल-पीढ़ी की एक सेवा है। छोटे-छोटे बच्चे ज्ञानशाला में आते हैं, रूचि से पढ़ते हैं, तो यह अच्छी बात है। ज्ञानशाला संस्कारों की सम्पदा है। महासती गुलाबांजी तो आठ वर्ष पूरे होने से पहले ही दीक्षित हो गई थी। अनेक साधु हैं, जो नौ-दस वर्ष की उम्र में ही दीक्षित हो गए थे। छोटे संत भी हमारी बालपीढ़ी है। ज्ञानशाला के बच्चे समाज का भविष्य हैं, तो छोटे संत धर्मसंघ का भविष्य हो सकते हैं।
अणुव्रत और जीवन-विज्ञान लोक कल्याणकारी कार्य हैं। आज भौतिक तकनीकी में कितना विकास हो रहा है, सुविधाएं भी बढ़ी हैं। इनका उपयोग भी है, पर इनके साथ अध्यात्म और धर्म को भी पुष्टि मिले। यह संस्कारों की सम्पदा बढ़ती रहे, यह काम्य है। प्रिया गुर्जर ने पूज्यवर से अठाई के प्रत्याख्यान किये। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।