जीवन में मार्दव का विकास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में मार्दव का विकास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

जिनधर्म के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्हत् वाणी की अमृतवर्षा कराते हुए फरमाया कि मनुष्य का जन्म बहुत महत्वपूर्ण जन्म होता है। दुनिया में प्राणी तो अनेक हैं, किन्तु मनुष्य की योनि, मनुष्य का जीवन विशिष्ट होता है। आदमी में अच्छाइयां मिल सकती हैं, तो कमजोरियां भी मिल सकती हैं। आदमी में सद्गुण मिल सकते हैं, तो दुर्गुण भी मिल सकते हैं। एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के प्राणी अविकसित प्राणी होते हैं। समनस्क मनुष्य इन्द्रियों की दृष्टि से एक विकसित प्राणी होता है। प्राणी के भीतर चेतना होती है, सामान्य चेतना कषाय से रंजित होती है। चार कषायों में मान भी एक कषाय है, निरंहकार होना बड़ी बात है। ज्ञान होने पर भी मौन रखना बड़ी बात है। शक्ति होकर भी क्षमा रखना बड़ी बात है।
विद्या विनय से शोभित होती है। पद, जाति, रूप, बल और धन का घमंड हो सकता है। कुछ होने पर भी घमंड नहीं होना अच्छी बात है। हर चीज का कुछ न कुछ उपयोग हो सकता है। हम साधु तो अकिंचन होते हैं। हमें न नोट चाहिये, न वोट चाहिये, न प्लोट चाहिये, न सर्दी में कोई कोट चाहिये। हमें तो कोई खोट हो तो दे दो। आदमी घमंड के कारण अपना कुछ अहित कर सकता है, यह अभिमान तो सुरापान के समान है। जो अभिवादनशील है, वृद्धों की सेवा करने वाला है, उसके आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि हो सकती है। गृहस्थों में भी पैसा या पद हो सकता है, पर उसका अहंकार न हो। जो चीज मिली है, उसका घमंड नहीं करें, उसे बांटने का प्रयास करें। जीवन में मार्दव का विकास करें। पूज्यवर के स्वागत में रोशन शिरिषकुमार नाइक, संगीता भरत गावित ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नवापुर बहु मंडल ने स्वागत गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।