सदा धर्म में रमा रहे हमारा मन : आचार्यश्री महाश्रमण
भगवान महावीर यूनिवर्सिटी में चातुर्मासिक प्रवास हेतु पधारे महावीर के प्रतिनिधि
सिल्क सिटी एवं डायमंड नगरी के रूप में विख्यात सूरत शहर में तेरापंथ के कोहिनूर धर्म दिवाकर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी सन् 2024 का चातुर्मास करने हेतु अपनी धवल सेना के साथ तेरापंथ भवन सिटीलाइट से विहार कर भगवान महावीर युनिवर्सिटी में पधारे। विशाल महावीर समवसरण में महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए रमाया- दसवेंआलियं आगम का आद्य श्लोक धर्म की महिमा का आख्यान करने वाला है। धर्म क्या है? इसका निर्देशन भी इस श्लोक में हमें प्राप्त होता है।
संभवतः हमारे धर्म संघ में चारित्रात्माओं के द्वारा, आवश्यक के सिवाय सबसे ज्यादा कंठस्थ किया जाने वाला आगम दसवेंआलियं है। यह आगम मुनि मनक के लिए आचार्य शय्यंभव द्वारा निर्यूढ़ किया गया था। इस दसवेंआलियं को आगम मित्र, कल्याण मित्र भी बनाया जा सकता है। साधु-साध्वियां और समणियां इसे स्मृति गत रखने का प्रयास करें। इस मित्र को निकट रखने का उपाय है कि बार-बार इसका पुनरावर्तन होता रहे। हमारे जीवन में हम मंगल की, निर्विघ्नता की कामना करते हैं। मंगल के लिए आदमी प्रयास भी करता है, मुहूर्त भी देखा जाता है। कुछ पदार्थ भी मंगल के लिए काम में लिए जाते हैं। मंगलपाठ भी मंगल के लिए सुना जाता है। आदमी खुद का भी मंगल चाहता है और दूसरों के प्रति भी मंगलकामना की जाती है।
शास्त्रकार ने धर्म को इन सबसे बड़ा मंगल बताया है। धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अरहंत, सिद्व, साधु और केवली प्रज्ञप्त धर्म मंगल है। इनमें तीन तो कार्य मंगल हैं और चौथा कारण मंगल है। धर्म कारण है, धर्म से ही अरहंत, सिद्ध और साधु बने हैं। प्रश्न हो सकता है, कौन सा धर्म मंगल है? शास्त्रकार ने किसी धर्म का नाम नहीं लिया और तो और जैन धर्म का आगम है पर जैन धर्म का भी नाम नहीं लिया। नाम ऐसा लिया है, जो सर्वमान्य हो जाए। वह है- अहिसा, संयम और तप मंगल है। इन तीन के सिवाय और कोई धर्म अवशेष रहा नहीं। शास्त्रकार ने धर्म को महिमा बताई कि उसको देव भी नमस्कार करते हैं जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है। मन का कितना महत्व है, भीतर के भाव, परिणाम, लेश्या, अध्यवसाय कैसे हैं, इनका महत्व है। हमारा मन हमेशा धर्म में रमा रहे, यह अपेक्षा है।
आज हमने चातुर्मासिक मंगल प्रवेश किया है। 2024 सूरत चतुर्मास के संदर्भ में भगवान महावीर युनिवर्सिटी के स्थान में हमने चातुर्मासिक प्रवेश किया। भगवान महावीर के नाम से युनिवर्सिटी में हमारा चातुर्मास संभवतः पहली बार ही हो रहा है। विद्या का स्थान तो विद्या का मंदिर होता है, यहां का स्थान विद्या मन्दिर के साथ धर्म का मंदिर भी बनने जा रहा है। इधर महावीर समवसरण भी है और हमारे मुख्य मुनि भी महावीर हैं। अनेक संत-साध्वियां हमारे साथ हैं। 'शासनश्री' मुनि श्री धर्मरूचिजी भी पधार गए हैं, गुरुकुलवास में दीक्षा पर्याय में आप सबसे बड़े हैं। इस चातुर्मास की पृष्ठभूमि में मुनिश्री उदितकुमार जी की विषेश भूमिका रही है, आप बहुश्रुत परिषद् के सदस्य भी हैं।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु का स्मरण कर नमन करता हूं। उनकी उतरवर्ती आचार्य परम्परा में आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी को हमने देखा है। इन सबको श्रद्धा के साथ नमन करता हूं। दीक्षा प्रदाता मुनि सुमेरमलजी स्वामी का स्मरण कर नमन करता हूं। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी और मुख्यमुनि महावीरकुमारजी आदि साथ हैं, सभी अच्छा कार्य करते रहें। सभी साधु-साध्वियां समय का अच्छा उपयोग करते रहें। सूरत के इस चातुर्मास में खूब अच्छी धार्मिक जागरणा होती रहे। जैन-अजैन विभिन्न क्षेत्रों के लोग हैं, उन सभी में आध्यात्मिक धार्मिक कार्य भी यथासंभव होते रहें। गृहस्थों के जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की भावना रहे। यहां की चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के सब कार्यकर्ताओं में आपस में सौहार्द बना रहे। ज्यादा तनाव नहीं हो, शांति बनी रहे। सुचारू रूप से आध्यात्मिक गतिविधियां चलती रहें। गुजरात राज्य के गृहमंत्री हर्ष भाई सिंघवी ने पूज्यवर के दर्शन किये। हर्षभाई संघवी ने सूरत शहर में आचार्य श्री महाश्रमण का स्वागत किया।
दक्षिण अफ्रीका के गबोन देश के राष्ट्रपति ब्राइस ओलिगुई नुगुएमा के संदेश का वाचन मुनि कुमारश्रमण जी ने किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने फरमाया कि संत के चरण अमृत की धारा होते हैं। आचार्यवर अध्यात्म की अमृतधारा लेकर सूरत आये हैं। सूरत का यह चातुर्मास एक विलक्षण चतुर्मास होगा। आचार्यवर डायमंड सिटी में सम्यक्त्व का डायमंड लेकर आए हैं। सम्यक्त्व का डायमंड जिस व्यक्ति को प्राप्त हो जाता है उसका जीवन सफल और सुफल हो जाता है। सूरत को स्मार्ट सिटी का दर्जा भी मिला हुआ है, आचार्य प्रवर इंटर्नल डिजिटलाइजेशन करवाने के लिए, भीतरी जगत से संपर्क करवाने पधारे हैं। सूरत क्लीन सिटी है, आचार्य वर चाहते हैं कि हर व्यक्ति आंतरिक दृष्टि से स्वच्छ बने। सूरत ग्रीन सिटी है, हरा-भरा है, आचार्य वर चाहते हैं कि हर व्यक्ति अध्यात्म से हरा भरा बने।
मुनि उदितकुमारजी ने पूज्यवर के स्वागत में कहा कि राजा वही बनता है जिसके पुण्य होता है, परम पूज्य आचार्य प्रवर पुण्य के अक्षय कोष हैं। पुराने संत कहा करते थे तेरापंथ का आचार्य वही बनता जिसको महाविदेह में जाना था पर थोड़ी कमी रह गई और वे तेरापंथ के आचार्य बन गए। आचार्य वर के चातुर्मास के संदर्भ में त्रिसूत्री कार्यक्रम का चिंतन किया था- अधिक से अधिक 12 व्रती श्रावक तैयार हों, मासखमण की तपस्या हो और एक साथ 2024 अठाइयां हो। पूज्यवर के स्वागत में आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष संजय सुराणा, स्वागत अध्यक्ष संजय जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। सूरत महिला मंडल एवं कन्या मंडल ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। सिटीलाइट ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।