साधु रहे शांति, क्षांति और समता की मूर्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधु रहे शांति, क्षांति और समता की मूर्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

विश्व विभूति, जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी कड़ोदरा से 13 किलोमीटर का विहार कर लिंबायत के महर्षि आस्तिक सार्वजनिक हाई स्कूल में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि निर्ग्रन्थ साधु त्यागमूर्ति, अहिंसामूर्ति होना चाहिए। किसी को भी तन-मन-वचन से कष्ट नहीं देने वाला हो। ऐसे शुद्ध साधु का मुख दर्शन करने से, श्रद्धा से वन्दन करने से दर्शन, वंदन करने वाले प्राणी का पाप झड़ता है।
साधु के मन में दया, अनुकम्पा, करूणा की चेतना होनी चाहिये। साधु शांतिमूर्ति होना चाहिये। संत वह होता है, जो शांत रहता है। अशांत रहने वाले में संतता की कमी होती है। साधु क्षांतिमूर्ति, समतामूर्ति भी रहे। साधुओं का अपना संसार है। वे सांसारिक संबंधों से उपर ऊठे हुए होते हैं, वे अध्यात्म और परमतत्त्व से जुड़े होते हैं। साधु तो अणगार होते हैं, भिक्षु होते हैं। वास्तव में तो त्यागी साधु तो दुनिया की विभूतियां होती है। जो पांच महाव्रतों का तीन करण, तीन योग से नियम ले चुके हैं वे दुनिया के बड़े आदमी होते हैं। साधु को राजा, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री भी वन्दन करते हैं। देव भी उसको नमस्कार करते हैं, जिसका मन सदा धर्म में रत रहता है। संयम और साधुता का महत्त्व है।
गृहस्थ को भी धर्म करने का अधिकार है। साधु रत्नों की बड़ी माला है तो श्रावक रत्नों की छोटी माला है। कोई-कोई गृहस्थ भी उस वेष में, भावों में साधुता आ जाने से केवलज्ञान को प्राप्त कर सकता है। आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों की गृहस्थ भी साधना कर सकते हैं। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने अहिंसा यात्रा में अहिंसक चेतना का जागरण और नैतिक मूल्यों के विकास की बात बताई थी और मैं तीन बातों सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के बारे में बताया करता हूँ। गृहस्थों के जीवन में शांति रहे।
कहा गया है - ''क्या करेगा प्यार वह ईमान से, क्या करेगा प्यार वह भगवान से।
जन्म लेकर गोद में इंसान की, कर सका न प्यार जो इंसान से।।''
सब जीवों के प्रति हमारे मन में मैत्री की भावना होनी चाहिए। छोटे-छोटे प्राणियों को भी बिना प्रयोजन कष्ट नहीं
दें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने मंगल उद्बोधन में कहा कि अनेक चीजें मधुर हो सकती है पर जिसका मन जिस कार्य में लग जाता है, उसके लिए वही मधुर हो जाता है। सूरतवासियों के लिए आचार्यप्रवर का शुभागमन मधुरता का निमित्त बन रहा है। जहां-जहां आचार्यप्रवर पधारे, आपका प्रभावशाली व्यक्तित्व उभरकर सामने आया। आचार्यप्रवर का मन-वचन और इन्द्रियों का संयम सधा हुआ है। इसलिए आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली है, तेजस्वी है। आपकी कथनी-करणी में समानता है, तभी जन-जन का आपके प्रति आकर्षण है।
पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय विधायक संगीता बेन पाटिल, सूरत प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष संजय सुराणा, लिंबायत सभा अध्यक्ष लालचंद चोरडिया, अनिल चिंडालिया, जवेरीलाल दुगड़, रतनलाल भलावत, तेयुप से धीरज भलावत, महिला मंडल से मंजू बेन सिंघवी, अर्जुन मेडतवाल, चित्रकूट वैष्णव सम्प्रदाय से धनपति शास्त्री, मुस्लिम समाज से जे.सी. राज, महर्षि आस्तिक हाई स्कूल के चेयरमैन गंभीरसिंह, लक्ष्मीलाल गोखरू आदि ने अपने हृदयोद्गार प्रस्तुत किए।
प्रवास व्यवस्था समिति, लिंबायत सभा, युवक परिषद, महिला मंडल ने स्वागत गीतों की प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई। संगीतादेवी बुरड़ ने मासखमण तप (30), उकचंद बुरड़ ने 8 एवं मोहित बुरड़ ने 13 की तपस्या का गुरुदेव से प्रत्याख्यान किया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।