सहयोग की भावना ही समाज, संघ या देश का है आधार : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ चलथान कड़ोदरा के श्री नारायण मुनि देव नर्सिंग कॉलेज पधारे। परम पावन ने जिनवाणी की अमृतवर्षा करते हुए फरमाया कि दुनिया में हम अकेले हैं या बहुत हैं यह एक प्रश्न है। मैं अकेला हूं यह बात तथ्य पूर्ण प्रतीत हो रही है, क्योंकि आत्मा अकेली है। आदमी अकेला जन्म लेता है और अकेला ही एक दिन अवसान को प्राप्त हो जाता है। अकेला कर्म का बन्धन करता है और अकेला ही उसका फल भोगता है। एक आदमी को वेदना होती है, दूसरे सहानुभूति दिखाते हैं पर वह वेदना तो खुद को ही सहनी पड़ती है।
यह अनेकान्त का एक दृष्टिकोण है कि मैं अकेला आया हूं, मुझे अकेला ही जाना है। मेरे कृत कर्मों का भुगतान मुझे ही करना है। परिवार में रहकर भी मैं अकेला हूं।अनेकान्त की दो दृष्टियां मानी जा सकती हैं- एक नैश्चयिक दृष्टि और दूसरी व्यावहारिक दृष्टि। नैश्चयिक दृष्टि से आत्मा अकेली है। मेरा कोई नही है और मैं किसी का नही हूं। व्यक्ति अपने पुरुषार्थ पर चले, दूसरे साथी हैं तो ठीक है, पर दूसरों की ज्यादा अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। अकेले कदम बढ़ाते-बढ़ाते आदमी बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है। मंद गति वाली चींटी भी चलते-चलते सैंकड़ों योजन जा सकती है और यदि पुरुषार्थ नहीं है तो तीव्र गति वाला गरुड़ भी आगे नहीं बढ़ सकता।
व्यवहार की दृष्टि से देखें तो हमारे बहुत सहयोगी हैं। समुदाय हैं, संघ है, इतने लोग साथ हैं, एक को तकलीफ हुई तो सेवा देने कितने-कितने लोग आ जाते हैं। एकता में शक्ति होती है, सुख दु:ख में कितने साथ खड़े रहते हैं। इस दृष्टि से हम अनेक हैं। जहां समाज है, समूह है, वहां आदमी अकेला नहीं है। जहां आत्मा के कल्याण की बात है, कर्मों को बांधने और भोगने की बात है वहां यह चिंतन रहे कि मैं अकेला हूं। यह एकत्व का चिंतन है। व्यवहारिक जगत में हम साथ हैं, सेवा-सहयोग के लिए तैयार हैं।
''परस्परोपग्रहो जीवानाम्'' - जीवों का परस्पर उपग्रह, सहयोग होता है। छः द्रव्य हमारा कितना सहयोग करते हैं, जीवास्तिकाय जीवों का एक दूसरे का परस्पर सहयोग होता हैं। तकलीफ में दूसरे के मददगार बनो, सहयोग की भावना ही समाज, संघ या देश का आधार है। लौकिक सहायता भी की जाती है, हम आध्यात्मिक सहयोग भी करने का प्रयास करें। स्वामीनारायण संप्रदाय के के.पी. शास्त्री ने अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य महाश्रमणजी जैसे महापुरुष पिछले सौ वर्षों में हुए नहीं हैं और आने वाले सौ वर्षों में होंगे भी नहीं। पूज्यवर के स्वागत में सभा अध्यक्ष संजय बाफना, दीपक खाब्या, राकेश चपलोत अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल गीत, भिक्षु भजन मंडली, कन्या मंडल, ज्ञानशाला द्वारा सुन्दर प्रस्तुतियां दी गई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।