अनित्यता की अनुप्रेक्षा से करें मोह-मूर्च्छा पर प्रहार : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अनित्यता की अनुप्रेक्षा से करें मोह-मूर्च्छा पर प्रहार : आचार्यश्री महाश्रमण

आत्म ज्ञान प्रदाता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी व्यारा से लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर बाजीपुरा हाई स्कूल पधारे। पूज्यप्रवर ने आगम वाणी का रसास्वादन कराते हुए फरमाया कि हमारी इस दुनिया में नित्य तत्त्व भी हैं और अनित्य तत्त्व भी है। कोरी नित्यता भी नहीं है और कोरी अनित्यता भी नहीं है। कहीं नित्यता की प्रधानता हो सकती है, अनित्यता गौण हो सकती है तो कहीं अनित्यता की प्रधानता और नित्यता गौण हो सकती है। दीये से लेकर आकाश तक सारे पदार्थ नित्यानित्य हैं। नित्यता की प्रधानता के आधार पर आकाश को नित्य कहा जा सकता है और आकाश में पर्याय परिवर्तन भी होते हैं इसलिए आकाश अनित्य भी है। दीया अनित्य है पर उसके परमाणु पुद्गल की अपेक्षा से वह नित्य है। जैन दर्शन में परिणामी नित्यवाद या नित्यानित्य वाद का सिद्धान्त बताया गया है। शरीर एक पर्याय है और पर्याय के नाते यह अनित्य भी है। द्रव्य है तो उसमें पर्याय भी हैं और पर्याय हैं तो उसमें द्रव्य भी है। द्रव्य नित्य होता है और पर्याय अनित्य होता है।
पच्चीस बोल के पन्द्रहवें बोल में आठ आत्माओं का उल्लेख मिलता है। उनमें पहली आत्मा द्रव्य आत्मा है। यह द्रव्य आत्मा शाश्वत है, असंख्य प्रदेशात्मक पिंड है। इसमें पर्याय परिवर्तन संभव है। एक आत्मा चार गतियों में भिन्न-भिन्न शरीरों को प्राप्त कर सकती है। शरीर अनित्य है, एक ही जीवन में पर्याय परिवर्तन होता रहता है। शरीर के पुद्गल हमेशा रहते हैं। एक व्यक्ति किसी समय धनाढ्य रह सकता है तो कभी गरीब भी हो सकता है। शरीर भी कभी मजबूत या कमजोर हो सकता है। यह धन सम्पदा, स्वजन संबंध भी स्थायी नहीं है, अनित्य है। इस अनित्य जगत में आदमी मोह-मूर्च्छा को कम करे। शांत सुधारस में कहा गया - जिनके साथ खेले थे, जो हमारे पूजनीय थे, जिनके साथ प्रेमपूर्ण बातें करते थे, वे लोग चले गए हैं, भस्मीभूत हो गये हैं, फिर भी मैं नि:शंक बैठा हूं। संसार में मैं ज्यादा मोह क्यों करूँ? अनित्यता की अनुप्रेक्षा करने से मोह-मूर्च्छा पर प्रहार हो सकता है और मोह कम हो सकता है।
यह शरीर भी अनित्य है, अशुचि से पैदा होने वाला है, अशाश्वत है, दु:ख और क्लेश का भाजन है। हम शरीर के प्रति भी मोह न करें, इस चिंतन से विरक्ति का भाव बढ़ सकता है। परिवार के संबंध भी अनित्य हैं। आत्मा अलग है, शरीर अलग है। व्यक्ति अनित्य शरीर के लिए प्रयास करता है पर वह यह भी चिंतन करे कि शाश्वत आत्मा के लिए वह क्या कर रहा है? हमारा अनित्यता का चिन्तन जितना पुष्ट रहे, स्थायी आत्मा के कल्याण के लिए प्रयत्न करें, हमारी चेतना निर्मल रहे, वह हमारे लिए हितकर रह सकता है।पूज्यवर के स्वागत में गंगाराम गुर्जर, पीयूष चौरड़िया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।