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स्वाध्याय से निर्धारित हो सकती है जीवन की दिशा : आचार्यश्री महाश्रमण
मानवता के महामसीहा, युगप्रवर्तक आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 9 किमी का विहार कर इपलोड़ा ग्राम में जयंतीभाई शर्मा के निवास स्थान में पधारे। शर्मा निवास में आयोजित धर्मसभा में पूज्यवर ने ज्ञान, स्वाध्याय और आध्यात्मिक दिशा के महत्व पर उद्बोधन देते हुए फरमाया कि 'हमारे जीवन में ज्ञान का अत्यंत महत्व है।' ज्ञान दो प्रकार का होता है— लौकिक विद्या का और आध्यात्मिक विद्या का। लौकिक ज्ञान जहां जीवन की दुनियावी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, वहीं आध्यात्मिक ज्ञान आत्मा के कल्याण और मोक्षमार्ग में पथप्रदर्शक बनता है।
पूज्यवर ने जोर देकर कहा कि धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय आत्मदर्शन का माध्यम बन सकता है। स्वाध्याय से जीवन की दिशा निर्धारित हो सकती है, और उसका निरंतर अभ्यास ज्ञान को कंठस्थ और चिरस्थायी बना देता है। ज्ञान का पुनरावर्तन स्मृति को स्थायित्व प्रदान करता है। उन्होंने वर्तमान भौतिकतावादी युग में बालकों को केवल भौतिकता में रचने बसने से सावधान रहने की सीख दी और ज्ञानशालाओं के माध्यम से उन्हें धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा देने की आवश्यकता बताई। पूज्यवर ने कहा कि 'कोरी भौतिकता समस्याएं उत्पन्न कर सकती है, अतः उसके साथ आध्यात्मिकता का अनुकरण आवश्यक है।'
धार्मिक कथाओं और संत प्रवचनों को भी प्रेरणास्पद बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि 'एक सार्थक विचार भी जीवन की दिशा और दशा को परिवर्तित कर सकता है।' धर्मग्रंथों का सतत अध्ययन श्रेष्ठ विचारों का भंडार बन सकता है। उन्होंने श्रावकों से स्वाध्याय में प्रमाद न करने और समय मिलने पर अवश्य स्वाध्याय करने का आह्वान किया। मंगल प्रवचन के उपरांत जयंतीभाई शर्मा ने पूज्यवर के स्वागत में अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।