
गुरुवाणी/ केन्द्र
गुरु के निर्देश का हो सम्यक् अनुपालन : आचार्यश्री महाश्रमण
संयम सुमेरू युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग सात किलोमीटर का विहार कर सवेला गांव में स्थित श्री सवेला ग्रुप प्राथमिकशाला में पधारे। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि हमारे आध्यात्मिक साहित्य में मोक्ष का उल्लेख मिलता है। मोक्ष एक दार्शनिक विषय है—हमारी आत्मा जन्म-मरण के चक्र में निरंतर परिवर्तन करती रहती है; वह इस चक्र से कैसे मुक्त हो और सर्व कर्म से मुक्त अवस्था में विराजमान हो जाए। तब न जन्म लेना पड़े और न ही मृत्यु हो—परम आनंद की वह मोक्ष की अवस्था होती है, जहां एकांत सुख होता है।
मोक्ष की प्राप्ति मानो सर्वोपरि उपलब्धि बन जाती है। प्रश्न है कि मोक्ष कैसे प्राप्त हो? अनेक उपाय बताए गए हैं—सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चारित्र तथा तप की आराधना से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति गुरु के निर्देश में आचरण करता है, उसका कषाय मंद हुआ होता है, उसमें निष्ठा जागी होती है, विनय भाव होता है, और अनुशासन का पालन करने का भाव होता है—तभी वह सम्यक्तया गुरु के निर्देश का पालन कर सकता है।
जो विद्यार्थी अनुशासन में रहकर विद्यालय में अध्ययन करता है, उससे विद्यालय की व्यवस्था उत्तम बनी रहती है। अनुशासनहीन व्यक्ति को दंडित होना पड़ सकता है। विनयहीनता कठिनाइयों को जन्म देती है। जो शीलविहीन, उद्दंड, अविनीत और वाचाल होता है, उसे संगठन से दूर किया जा सकता है, या उसका मान-सम्मान घट सकता है। आत्मिक दृष्टि से भी वह हानि में रह सकता है।
जिसने धर्म के अर्थ को सुना है, उसका यह सुनना भी प्रशंसनीय है। सुनते-सुनते अच्छे संस्कार और शिक्षा प्राप्त हो सकती है। शास्त्रों की बातों को कान और मन लगाकर सुनने से वे आत्मसात हो जाती हैं। श्रवण के बाद मनन होना चाहिए। प्रवचन के समय समय पर पहुँचना चाहिए। हाजरी में भी यथासंभव समय की पाबंदी रहे। हाजरी, मीटिंग में समय पर उपस्थिति का प्रयास करना चाहिए। जीवन में समयबद्धता बनी रहनी चाहिए।
चतुर्दशी के उपलक्ष में हाजरी का वाचन कराते हुए पूज्यप्रवर ने तेरापंथ के तरह नियमों का विवेचन करवाया तथा सेवा-भावना और परस्पर सहयोग के लिए प्रेरित किया। पूज्यवर ने कहा — जो दूसरों के लिए कार्य करता है, वही सच्चा कार्यकर्ता होता है। जितना लिया जाए, उतना लौटाने का प्रयास भी हो। ड्यूटी के प्रति जागरूकता ही जीवन की सफलता है। जो व्यक्ति कर्तव्य और अकर्तव्य में भेद नहीं करता, उसका अनिष्ट हो सकता है। साधु संस्था में त्याग का महत्व है। जीवन में साधुत्व प्राप्त होना परम सौभाग्य की बात है। हमारी साधना सुचारु रूप से चलती रहे। पूज्य प्रवर की अनुज्ञा से मुनि संयमकुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। सामूहिक लेखपत्र वाचन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ। संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।