
गुरुवाणी/ केन्द्र
प्राणी-जगत के साथ है हमारा सहयोगात्मक संबंध : आचार्यश्री महाश्रमण
वर्धमान के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी का लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर सप्तदिवसीय प्रवास हेतु अहमदाबाद के शाहीबाग स्थित तेरापंथ भवन में पावन पदार्पण हुआ। मंगल पाथेय प्रदान करते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि इस दुनिया में दो चीजें हैं – एक जीव और दूसरी अजीव। जीव और अजीव के सिवाय इस पूरी सृष्टि में और कुछ भी नहीं है। कहीं-कहीं हम जीव-अजीव का मिश्रित रूप भी देख सकते हैं। जैसे मनुष्य में आत्मा चेतन है, पर शरीर पुद्गल है।
सिद्ध भगवान विशुद्ध जीव आत्माएं हैं। कई द्रव्य बिल्कुल अजीव हैं, जैसे धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल और पुद्गल। प्राणी शरीर और आत्मा दोनों से युक्त होता है। वह जीव-अजीव का मिला-जुला रूप है। मनुष्य पुद्गलों का बहुत उपयोग करता है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय से सहयोग प्राप्त होता है, पर ये दिखाई नहीं देते। पुद्गल तो दिखाई देते हैं।
हमारा प्राणी-जगत के साथ सहयोगात्मक संबंध भी है। आचार्य उमास्वाति ने कहा है - 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्।' तत्वार्थ सूत्र दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परंपराओं में लगभग मान्य है। आगमों में यह सम्मति नहीं है, पर णमोकार मंत्र, भक्तामर और तत्वार्थ सूत्र दोनों परंपराओं में मान्य हैं।
जैन दर्शन का मुख्य सिद्धांत है षट् द्रव्य वाद। छह द्रव्यों से यह सृष्टि बनी है। धर्मास्तिकाय गति में, अधर्मास्तिकाय स्थिर रखने में और आकाशास्तिकाय स्थान देने में सहयोगी होते हैं। काल से हमें समय प्राप्त होता है। पुद्गलास्तिकाय भी हमारे बहुत काम आता है। छठा द्रव्य — जीवास्तिकाय — दूसरों को सहयोग नहीं करता, पर जीव एक-दूसरे को परस्पर सहयोग देते हैं। यह पारस्परिकता है। व्यक्ति में स्वावलंबिता हो —
'कम से कम लो, अधिक से अधिक दो सेवा-धर्म विचार, रखो सभी के साथ में प्रतिपल शिष्टाचार।'
शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श – ये पुद्गल हैं, और हमारे रागभाव के निमित्त बन सकते हैं। ये काम शल्य हैं, विष हैं, मारक हैं, आशीविष सर्प के समान हैं। ऊपर से पदार्थों का उपयोग नहीं करता, पर भीतर में कामना है – यह भी शल्य है। चातुर्मास का समय निकट है। आज शाहीबाग तेरापंथ भवन में आए हैं। चातुर्मास त्याग-तपस्या का समय है। इस बार आचार्य भिक्षु का 300वां जन्मदिवस आ रहा है – त्रिशताब्दी का समय है। जितना हो सके तपस्या करें। एक-एक कदम आगे बढ़ें। आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी से पदार्थों का त्याग करने का प्रयास करें।
पूज्यवर ने आगे फरमाया कि यहाँ कई संतों से मिलना हो गया है। साध्वियों-समणियों से भी भेंट हुई है। अनौपचारिक रूप से यह वर्धमान महोत्सव जैसा बन गया है। सभी का स्वास्थ्य अनुकूल रहे, अच्छी धर्माराधना चलती रहे – ऐसी मंगलकामना। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि आचार्य प्रवर अनेक प्रांतों को पवित्र करते हुए गुजरात में दूसरा चातुर्मास करने पधारे हैं। हमने गुजरात की सभ्यता और संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन और गुजराती लोगों की श्रद्धा और भक्ति को देखा। इनके रोम-रोम में श्रद्धा है। गुरु के प्रति आकर्षण और भक्ति है।कच्छ की यात्रा तेरापंथ की प्रभावना को बढ़ाने वाली यात्रा सिद्ध हुई। ऐसा प्रतीत होता था मानो आचार्यवर संपूर्ण जैन समाज के आचार्य हैं। गुरुदेव भी उन्हें वात्सल्य और प्रेरणाएं प्रदान करते थे। आचार्यवर एक सम्राट हैं, जो सभी को सब कुछ दे रहे हैं।
पूज्यवर के स्वागत में सभाध्यक्ष अर्जुनलाल बाफणा, तेरापंथ सेवा समाज ट्रस्ट अध्यक्ष सज्जन सिंघवी, टीपीएफ अध्यक्ष जागृत संकलेचा ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। भिक्षु भजन मण्डल, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मण्डल ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति की ओर से नानालाल कोठारी व सागर सदन की ओर से अरविंद दूगड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अहमदाबाद ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।