विकसित हो शांति और क्षमा की साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शाहीबाग, अहमदाबाद। 29 जून, 2025

विकसित हो शांति और क्षमा की साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शाहीबाग स्थित तेरापंथ भवन में मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि कषाय वह तत्व है, जिसके द्वारा पाप कर्म का आगमन होता है। कषाय के चार प्रकार हैं — क्रोध, मान, माया और लोभ। गुस्सा प्रीति का नाश करने वाला होता है। गुस्सा आवेश के रूप में नहीं आना चाहिए। गुस्सा जहाँ भी होता है, वहाँ प्रायः नुकसान ही होता है। गुस्सा करने वाला व्यक्ति कठिनाई में भी आ सकता है। आदमी की यह कमजोरी है कि वह न चाहते हुए भी गुस्से में आ जाता है। प्रेक्षाध्यान से गुस्से को शांत करने का प्रयास किया जा सकता है। जब गुस्सा आए, तब न बोले, न हाथ उठाए और उस स्थान को छोड़ दें, थोड़ी देर मौन रखें।
आक्रोश की स्थिति में भी मन को शांत रखने का प्रयास होने चाहिए। हमारे जीवन में गुस्सा एक शत्रु है। इसका सदा परित्याग करना चाहिए। चाहे परिवार हो या व्यापार, गुस्सा कहीं भी काम का नहीं है। व्यक्ति को अपनी वाणी में मिठास बनाए रखनी चाहिए। धर्म के क्षेत्र में भी गुस्सा न करने से चित्त-समाधि बनी रह सकती है। हमारी प्रकृति शांत रहनी चाहिए। साधु तो सदैव प्रसन्नता के प्रतीक होते हैं। यदि थोड़ा गुस्सा मन में आ भी जाए, तो वाणी में वह प्रकट न हो। खमत-खामणा कर लें। योग और ध्यान से गुस्सा शांत हो सकता है। प्रसन्न मन और विनय से किसी से भी कार्य लिया जा सकता है। सेवा देने वाला भी शांत रहे। धृति और धैर्य को बनाए रखे।
यदि मुखिया थोड़ा शांत रहे तो उसका नेतृत्व और भी प्रभावशाली बन सकता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का उदाहरण देते हुए पूज्यवर ने बताया कि वे कितने शांत स्वभाव के थे। हमारी शांति और क्षमा की साधना विकसित हो — यही काम्य है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या श्री साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि यदि व्यक्ति में धैर्य और धृति-बल हो, तो वह जीवन में कुछ भी प्राप्त कर सकता है। धैर्य से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। धैर्य हो तो मन स्थिर रहेगा और कार्य में निरंतरता आएगी। असफलता में ही सफलता छिपी होती है। हमें असफलता को चुनौती मानकर आगे बढ़ते जाना चाहिए। कार्यों में उतावलापन नहीं रखना चाहिए। यदि कुछ प्राप्त करना है, कोई उपलब्धि पानी है, तो उसके लिए धृति-बल आवश्यक है।
पूज्यवर की अभिवंदना में मुनि मदनकुमारजी, साध्वी संवेगप्रभाजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ किशोर मंडल और ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुतियाँ हुईं। ज्ञानार्थी नियांश मेहता ने अपनी प्रस्तुति दी। मुमुक्षु विशाल परीख ने आचार्यश्री के सम्मुख अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने चतुर्मास के दौरान तीन सितम्बर को आयोज्य दीक्षा समारोह में मुमुक्षु विशाल को मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा करवाई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।