अध्यात्म का प्रवेश द्वार है योग

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बीकानेर।

अध्यात्म का प्रवेश द्वार है योग

'शासनश्री' त्रय साध्वी मंजूप्रभा जी, साध्वी शशिरेखा जी और साध्वी कुंथुश्री जी के सान्निध्य में तेरापंथ समाज द्वारा योग दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी रोहितप्रभा जी, साध्वी आलोकप्रभा जी और साध्वी सम्यक्त्वप्रभा जी द्वारा आत्म-साक्षात्कार प्रेक्षाध्यान एवं मधुर संगान से मंगलाचरण के साथ हुआ। 'शासनश्री' साध्वी कुंथुश्री जी ने अपने उद्बोधन में कहा—योग अध्यात्म का प्रवेश द्वार है। पतंजलि ने कहा है, 'स्थिरसुखमासनम्'—जिसमें सुखपूर्वक स्थिरता से बैठा जा सके, वही आसन है। चित्त की निर्मलता और कार्यसिद्धि के लिए स्थिरता आवश्यक है। योगासन केवल शरीर की शुद्धि के लिए नहीं, बल्कि आत्मसंयम हेतु भी उपयोगी है। योग जीवन का विज्ञान और अन्वेषण है। उन्होंने श्वास-प्रेक्षा की विधि और उसकी महत्ता को भी रेखांकित किया, जिससे व्यक्ति अनंत शांति और शक्ति की अनुभूति कर सकता है।
'शासनश्री' साध्वी शशिरेखा जी ने परिषद को प्रेरित करते हुए कहा—योग वह मार्ग है, जिससे शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है और व्यक्ति अंतर्मुख होता है। योग दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं, अपितु यह दैनिक अभ्यास का विषय है। यदि प्रतिदिन योग किया जाए, तभी इस दिवस की सार्थकता सिद्ध हो सकती है। ध्यान में प्रवेश हेतु शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है, जिसे योगासन और प्राणायाम के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। साध्वी मृदुला कुमारी जी ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा—जैन शासन और तेरापंथ धर्मसंघ में योग की परंपरा विशिष्ट रही है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान की पद्धति के माध्यम से योग का पुनरुद्धार किया। महिला मंडल की मंत्री रेणु बोथरा ने कहा—योग के माध्यम से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक संतुलन भी प्राप्त किया जा सकता है।