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आत्मसंयम की उत्कृष्ट साधना है दीक्षा
साध्वी कुन्दनरेखा जी के सान्निध्य में तथा तेरापंथ सभा दिल्ली एवं दिल्ली प्रवासी पारिवारिक जनों द्वारा मुमुक्षु मोहक का मंगलभावना कार्यक्रम आयोजित किया गया। साध्वी कुन्दनरेखा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि दीक्षा आत्मसंयम की उत्कृष्ट साधना है, जो जीवन का रूपांतरण कर भवसागर से पार लगाती है। तेरापंथ धर्मसंघ की दीक्षा विशेष होती है – एक गुरु, अनुशासन और करुणा से परिपूर्ण वातावरण साधना को उत्कृष्ट बनाते हैं। मुमुक्षु मोहक आत्मसाधना में उत्तरोत्तर प्रगति करे, यही मंगलभावना है। साध्वी सौभाग्ययशा जी ने तेरापंथ धर्मसंघ की एकता, अनुशासन और मर्यादा की प्रशंसा करते हुए मोहक को शीघ्र आत्मकल्याण की शुभकामनाएं दीं। साध्वी कल्याणयशा जी ने दीक्षा को आत्मशुद्धि और शाश्वत सुख की प्राप्ति का मार्ग बताया।
महासभा अध्यक्ष मनसुख सेठिया ने इसे पारिवारिक गौरव बताया कि उनका पोता संयम पथ की ओर अग्रसर है। उपाध्यक्ष संजय खटेड ने कहा कि पाँच महाव्रतों की श्रृंखला मोहक को अप्रमत्त बनाएगी। सभा अध्यक्ष सुखराज सेठिया ने 'तेरह करोड़' का संदर्भ देते हुए दीक्षा को तेरह नियमों की अनुपालना बताया, जो जागरण का प्रतीक है। इस अवसर पर पारिवारिक व भुवनेश्वर प्रवासी बहनों ने गीत प्रस्तुत किए। चंदा डूंगरवाल, शशि सेठिया, मधु श्रीमाल, प्रकाश बेताला, झलक बेताला, सम्पतराज बेताला, वर्धमान बेताला आदि ने गीत, कविता एवं वक्तव्यों के माध्यम से अपनी मंगलभावनाएं प्रकट कीं। मुमुक्षु मोहक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संसार मोहबंधन में उलझा है, जबकि उन्हें आचार्य श्री महाश्रमणजी जैसे तेजस्वी गुरु का मार्गदर्शन मिला है। उन्होंने कहा कि संयम जीवन कठिन होते हुए भी मुख्यमुनि महावीर कुमार जी स्वामी के कारण सुगम बन गया। अंत में उन्होंने अपनी साधना के लिए चित्त की निर्मलता, पवित्रता और एकाग्रता की मंगलकामना की।