परम विजय प्राप्ति के लिए मोह को जीतना हो लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

पालड़ी, अहमदाबाद। 24 जून, 2025

परम विजय प्राप्ति के लिए मोह को जीतना हो लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण

महान यायावर आचार्य श्री महाश्रमण जी पश्चिम अहमदाबाद तेरापंथ भवन से विहार कर पालड़ी क्षेत्र में गौतम चौधरी के बंगले पर पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि शास्त्रों में परम विजय की बात कही गई है। एक योद्धा यदि समरांगण में दस लाख शत्रुओं को भी जीत लेता है और दुर्जेय संग्राम में विजयी हो जाता है, तो यह एक बड़ी बात अवश्य है, परंतु यह परम विजय नहीं है। शास्त्रकार कहते हैं कि जो अपनी 'एक आत्मा' को जीत लेता है, वही परम विजेता कहलाता है। अपने आप को जीतना कठिन कार्य है — अपने क्रोध, अहंकार, माया, लोभ का क्षय कर देना और घातिकर्म का नाश कर देना एक महान उपलब्धि है। जैन दर्शन में 8 कर्म बताए गए हैं, जिनमें मोहनीय कर्म को कर्मों का राजा कहा गया है। इस कर्म को जीत लेना मानो एक गहरी घाटी को पार कर लेने जैसा है।
हिंसा की प्रवृत्ति और असद्भाव से मनुष्य हिंसक अपराध की ओर चला जाता है। अतः मोह को जीतना हमारा मुख्य लक्ष्य बनना चाहिए, जिससे परम विजय प्राप्त करना सहज हो सकता है। दुनिया में कभी-कभी युद्ध की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। ऐसे समय में यदि कोई बड़ा देश निष्पक्ष भाव से दोनों पक्षों को समझाए, तो युद्ध की स्थिति टल सकती है और समस्या का समाधान भी निकल सकता है। बुद्धिमत्ता से अनेक समस्याओं का हल संभव है। इस संसार में बुद्धिमत्ता का बड़ा महत्व है। जैन दर्शन में अनेकांतवाद की बात आती है, जहाँ आग्रह की भावना नहीं होनी चाहिए। गुरुदेव तुलसी के समय, सन् 1985 में संत लोंगोवाल और राजीव गांधी के बीच समझौता हुआ था। साधु समाज में भी यदि कोई मतभेद उत्पन्न हो जाए, तो बहुश्रुत या वरिष्ठ साधुजन उसका समाधान कर सकते हैं। आज विश्व में तनाव की स्थिति है, परंतु मैत्री और शांति वार्ता से वह सुलझ सकती है। जो कार्य मैत्री से होता है, वह लड़ाई से नहीं हो सकता। थोपने की बजाय हृदय में उतारने का प्रयास करना चाहिए। डंडे की जगह ठंडक काम में लाई जाए। शांति के लिए यदि कड़ाई भी करनी पड़े, तो वह स्वीकार्य हो सकती है।
चतुर्दशी के उपलक्ष में पूज्यवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए मर्यादाओं की व्याख्या करते हुए प्रेरणाएँ प्रदान कीं। साधुपन आजीवन का विषय है — पंच महाव्रत और साधुपणा अंतिम समय तक सुरक्षित रहे। आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि ऋषिकुमारजी, मुनि रत्नेशकुमारजी व मुनि केशीकुमारजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने तीनों संतों को दो-दो कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हमारे धर्मसंघ में एक नेतृत्व है, जिसके कारण धर्मसंघ विकास की ऊँचाइयों को छू रहा है। साधु-साध्वियाँ और श्रावक-श्राविकाएँ इस गौरव को और भी बढ़ा रहे हैं। हमें अपने गुरु के प्रति असीम आस्था रखनी चाहिए। साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने कहा कि जिस व्यक्ति के पास जीवन जीने की कला होती है, उसका जीवन सार्थक हो सकता है। आचार्य श्री महाश्रमण जी यहाँ जीवन जीने की कला सिखाने पधारे हैं। वे सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति और मैत्रीभाव की शिक्षा दे रहे हैं।
मुख्यमुनिश्री महावीरकुमार जी ने कहा कि इस संसार में जरा और मरण का वेग बढ़ता जा रहा है, जिससे व्यक्ति दुखी हो रहा है। इससे मुक्ति का उपाय धर्म ही है। धर्म ही द्वीप है, शरण है, गति और प्रतिष्ठा है। आज पालड़ी में 'घर बैठे गंगा' आई है, इसका आध्यात्मिक लाभ उठाएं। पूज्यवर के स्वागत में गौतम चौधरी, अरिष्टनेमि व समीक्षा चौधरी तथा चौधरी-बोथरा परिवार की बहनों ने गीत प्रस्तुत किए। अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के मंत्री विजयराज सुराणा ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।