
गुरुवाणी/ केन्द्र
अपनी आत्मा को न बनाएं दुरात्मा : आचार्यश्री महाश्रमण
तपोनिष्ठ महायोगी आचार्य श्री महाश्रमणजी अहमदाबाद नगर का भ्रमण कराते हुए, अहमदाबाद के प्रख्यात कांकरिया लेक के किनारे स्थित वेद मंदिर प्रांगण में पधारे। वेद मंदिर के विशाल हॉल में अमीवर्षा कराते हुए, अमृतपुरुष ने फरमाया कि जैन वाङ्मय–आगमों में कहा गया है कि हमारी आत्मा यदि दुरात्मा बन जाए, तो वह सबसे बड़ा शत्रु बन जाती है। कहा गया है कि एक दुश्मन यदि किसी व्यक्ति का गला काट दे, तो वह केवल उसका एक जन्म समाप्त कर सकता है, परंतु दुरात्मा बनी आत्मा तो उसके कई जन्मों को बिगाड़ सकती है। जो दुरात्मा होते हैं, वे जब मृत्यु के निकट आते हैं, तब सोचते हैं कि उन्होंने तो जीवन में केवल पाप ही पाप किए, अब आगे उनकी क्या गति होगी।
मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी आत्मा को दुरात्मा न बनाकर सदात्मा, महात्मा और संभव हो तो परमात्मा बनाने का प्रयास करे। मिथ्यात्व से आक्रांत आत्मा दुरात्मा हो सकती है। हमारे समाज में जहाँ सज्जन लोग मिलते हैं, वहीं दुर्जन भी मिल सकते हैं। यदि किसी दुर्जन के पास विद्या, बुद्धि और ज्ञान है, तो वह उनका उपयोग विवाद बढ़ाने और समस्याएँ उत्पन्न करने में करता है। यदि उसके पास धन है, तो वह उसका अहंकार करता है, और यदि शारीरिक बल है, तो उसका दुरुपयोग दूसरों को पीड़ित करने में करता है। इसके विपरीत, यदि सज्जन के पास विद्या है, तो वह दूसरों को भी ज्ञान देने का प्रयास करता है। उसके पास धन है, तो वह दान करता है, और यदि शारीरिक बल है, तो वह दूसरों की सेवा करता है। संसार में संत पुरुष भी मिलते हैं, जिनके दर्शन अपने आप में पावन होते हैं। साधु तो चलते तीर्थ होते हैं। सज्जनों की संगति करें, ज्ञान और उत्तम संस्कारों को अपनाएं।
धर्म के दो रूप होते हैं – पूजा-उपासना और आचरणात्मक। वीतराग की आज्ञा को स्वीकार कर, उनके वचनों को आचरण में लाएं। चाहे जैन हों या अजैन, सभी को अच्छा मनुष्य बनना चाहिए। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति यदि जीवन में आ जाएं, तो मनुष्य का जीवन सुंदर बन सकता है। जीवन में ज्ञान और चारित्र का निरंतर विकास होता रहना चाहिए। आज कांकरिया-मणिनगर क्षेत्र के वेद मंदिर में आगमन हुआ है। साध्वी रामकुमारीजी लगभग दस वर्षों से इस क्षेत्र में प्रवासरत हैं। वे वयोवृद्ध साध्वी हैं। उनके चित्त में सदैव समाधि बनी रहे। उनके साथ की साध्वियाँ सेवा करते हुए ज्ञान का विकास करती रहें।
साध्वी रामकुमारीजी की सहवर्ती साध्वी आत्मप्रभाजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। कई महीनों बाद गुरु सन्निधि में मुनि धर्मरुचिजी गुरुदर्शन को पहुंचे तो आचार्यश्री अपने से रत्नाधिक संत की अगवानी में पहुंचे व नीचे विराजकर वंदना की मुद्रा में सुखपृच्छा इत्यादि की। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष चंपालाल गांधी, जिगीसा पींचा, मुमुक्षु हनुमानमल दुगड़ ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। स्थानीय ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की ओर संकल्पों की भेंट गुरुचरणों में अर्पित की गई। तेरापंथ कन्या मण्डल ने गीत का संगान किया। संतोषदेवी बरड़िया ने भी गीत का संगान किया। तेरापंथ समाज कांकरिया-मणिनगर तेरापंथ समाज ने भी सामूहिक रूप से गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।