
गुरुवाणी/ केन्द्र
लोक में सबसे उत्कृष्ट मंगल है अहिंसा, संयम और तप रुपी धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण
गुजरात की धरा पर लगातार दूसरे चतुर्मास एवं आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष शुभारंभ के लिए, गुजरात की राजधानी गांधीनगर में स्थित कोबा के प्रेक्षा विश्व भारती प्रांगण में, विशाल जनमेदिनी की उपस्थिति में तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ प्रातः लगभग 9:31 बजे मंगल प्रवेश किया। साधु-साध्वीवृंद, मुमुक्षु एवं समण श्रेणी की श्रृंखला के मध्य गतिमान आचार्यश्री के ज्योतिचरण जब प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में पहुँचे, तो पूरा वातावरण जयघोषों से गूंज उठा। यह वही भूमि थी जहाँ 2002 में आचार्य महाप्रज्ञजी का चातुर्मास संपन्न हुआ था। अब 23 वर्षों बाद उनके परंपरागत उत्तराधिकारी उसी स्थान पर चातुर्मास हेतु पदार्पण कर रहे थे। परिसर के वीर भिक्षु समवसरण में विशाल सभा को आर्हत वाणी की अमृतवर्षा कराते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने फरमाया—
''धम्मो मंगल मुक्किट्ठं, अहिंसा संजमोतवो।
देवावि तं नमं सन्ति, जस्स धम्मे सयामणो।।''
व्यक्ति मंगलभावना करता है — अपने लिए भी, और दूसरों के लिए भी। उसके लिए प्रयास भी करता है। कभी-कभी कुछ वस्तुओं को भी मंगल मानकर ग्रहण भी करता है। शास्त्रों में बहुत बड़ी बात कही गई है कि सबसे बड़ा मंगल क्या है? बताया गया है कि धर्म सबसे बड़ा मंगल है। परंतु फिर प्रश्न उठता है — कौन-सा धर्म? तो उत्तर प्राप्त होता है — अहिंसा, संयम और तप। यही उत्कृष्ट मंगल है। सभी प्राणियों को अपने समान समझो — जैसे मुझे दुःख प्रिय नहीं है, वैसे ही दूसरों को भी दुःख प्रिय नहीं हो सकता। जैसे मुझे सुख अच्छा लगता है, वैसे ही सबको। सबको अपने समान समझना अहिंसा की भावना है। साधु के तो तीन करण — मन, वचन, और काय से आजीवन हिंसा का त्याग होता है।
''तन कर, मन कर, वचन कर, देत न काहू दुःख।
तुलसी पातक झरत है, देखत वा को मुख।।''
गृहस्थ भी अहिंसा के मार्ग पर चले। अनावश्यक हिंसा से बचे। साधु की अहिंसा तो बहुत उच्च कोटि की होती है — मन, वचन और शरीर पर नियंत्रण रखते हुए संयम और तप की आराधना करते हैं। यदि कोई दोष लग जाए तो प्रायश्चित से शुद्धि हो सकती है। पूज्य प्रवर ने आगे कहा— आज हम अहमदाबाद के चातुर्मास स्थल में प्रवेश कर चुके हैं। संत परंपरा में चातुर्मास के चार महीने अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। चातुर्मास में स्थिरता, अध्ययन, आराधना, ध्यान और सेवा का विशेष वातावरण बनता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने भी वर्ष 2002 का चातुर्मास यहीं किया था। हम तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़े हैं। इसके आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु स्वामी हुए हैं। उनके द्वारा शुरू की गई परंपरा आज तक चल रही है। आज गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी का समागम भी हुआ है। जो मनीषी होते हैं, वे धर्म परंपरा से जुड़े होते हैं। उनकी वाणी उपदेशात्मक और ज्ञानवर्धक होती है।
प्रवास व्यवस्था समिति सेवा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही है। हमें प्रेक्षा विश्व भारती का यह परिसर चातुर्मास हेतु मिला है। वर्ष 2002 में जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलामजी यहां पधारे थे, वह भी एक ऐतिहासिक क्षण था। राजनीति से भी जनसेवा की जा सकती है। यह वर्ष प्रेक्षा कल्याण वर्ष और आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष है, जो भिक्षु चेतना वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। हम सब धर्म, तप और ज्ञान की आराधना को निरंतर बनाए रखें। मंगल प्रवेश के अवसर पर साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि शास्त्रों में चार दुर्लभताओं का उल्लेख मिलता है — मनुष्य जन्म, धर्म श्रवण, श्रद्धा और संयम में पराक्रम। भारतीय दर्शन में चिंतामणि रत्न, कल्पवृक्ष और कामधेनु को दुर्लभ कहा गया है। तुलसीदासजी ने संत समागम और हरिकथा को दुर्लभ बताया है। पूज्यवर सूरत, सौराष्ट्र, कच्छ और उत्तर गुजरात की यात्रा करते हुए अब अहमदाबाद पधारे हैं। वे भावनात्मक और नैतिक चेतना के साथ मूल चेतना जगाने के लिए पधारे हैं। आचार्यप्रवर का यह चातुर्मास मंगलमय हो।
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने अपने वक्तव्य में कहा — 'आज गुजरात के लिए सौभाग्य का दिन है कि पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी का चातुर्मास हमारे प्रदेश में प्रारंभ हो रहा है। संतों का जीवन परोपकारमय होता है। चातुर्मास आत्मिक विकास का अमूल्य समय है। आचार्यश्री के सान्निध्य में हमें जिज्ञासाओं और शंकाओं का समाधान मिलेगा। धर्म ऐसा होना चाहिए जो मनुष्य को सुख, शांति और आत्म-उत्कर्ष की ओर ले जाए।' राज्यपाल महोदय ने आगे कहा — 'प्राचीन काल में हमारे देश में जो ऋषि-मुनि हुए, उन्होंने आत्मा की उन्नति के आठ नियम बताए — उनमें यम आत्म-कल्याण का मुख्य सूत्र है। पांच महाव्रत, जो जैन धर्म के मूल सिद्धांत हैं, वे किसी का विरोध नहीं करते। हर प्राणी के प्रति दया, मैत्री और करुणा का भाव हो। हिंसा आत्मा की उन्नति में बाधा है।
आचार्यश्री ने 60,000 किमी से अधिक की पदयात्रा कर जन-जन में चेतना जगाई है। उनका जीवन पथदर्शन देने वाला है। केवल धर्म ही मनुष्य को पशु से अलग करता है। पैसे से धर्म नहीं होता, धर्म तो स्वानुशासन से होता है। गंगा स्नान से पाप नहीं धुलते, हमारे कर्म ही हमारे सुख-दुःख का कारण होते हैं। धर्म, अर्थ और काम करते हुए मोक्ष की ओर बढ़ें। जिसने अध्यात्म पा लिया, उसने सब कुछ पा लिया।' राजकुमार पुगलिया ने राज्यपाल का परिचय दिया और अरुण बैद ने आभार ज्ञापन किया। प्रअहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष अरविंद संचेती, मंत्री उम्मेदकुमार बैद, स्वागताध्यक्ष भैरूलाल चोपड़ा, अहमदाबाद सभा अध्यक्ष अर्जुनलाल जैन ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम में तेरापंथ महिला मंडल और तेरापंथ कन्या मंडल द्वारा स्वागत गीत की प्रस्तुति दी गई, वहीं ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भावपूर्ण अभिव्यक्ति से आराध्य चरणों का स्वागत किया। अंत में राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का कुशलता पूर्वक संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।