
गुरुवाणी/ केन्द्र
ईमानदारी के प्रति अडिग रहे आस्था : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन के सजग प्रहरी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रेक्षा विश्व भारती के वीर भिक्षु समवसरण में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि साधु के पांच महाव्रत होते हैं, और गृहस्थों के बारह व्रतों में पांच अणुव्रत होते हैं। महाव्रत और अणुव्रत में वस्तुतः सिद्धांत एक जैसे हैं, अंतर केवल अनुपात और सीमा का होता है। पांच महाव्रतों में दूसरा महाव्रत है — सर्व मृषावाद विरमण, जबकि अणुव्रतों में इसका नाम है — स्थूल मृषावाद विरमण व्रत। मृषावाद (झूठ बोलना) अविश्वास का कारण बनता है, अतः इसे छोड़ना चाहिए। अठारह पापों में भी दूसरा पाप मृषावाद ही है। साधु को जब छेदोपस्थापनीय चारित्र ग्रहण कराया जाता है, तब सर्व मृषावाद का भी त्याग कराया जाता है। गृहस्थ भी स्थूल मृषावाद का परित्याग करें — यह अपेक्षित है। ईमानदारी के तीन आयाम होते हैं — माया वर्जन, मृषा वर्जन, चोरी वर्जन। साधु के लिए ये तीनों आयाम उच्चतम स्तर पर होने चाहिएं। कषाय शांत होने से मृषावाद विरमण की साधना सरल हो जाती है। ‘वृत्त’ और ‘वित्त’ दो शब्द हैं — वृत्त यानी चारित्र, वित्त यानी धन-पैसा। चारित्र की प्रयत्नपूर्वक रक्षा की जानी चाहिए। वित्त तो आता-जाता रहता है, पर वृत्त यानी चारित्र एक बार गया, तो फिर मिलना कठिन होता है। वृत्त अपने आप में एक महान संपत्ति है। छोटी संपत्ति (वित्त) के लिए बड़ी संपत्ति (वृत्त) को खो देना विचारणीय विषय है।
''साच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप।
जाके हिरदै साच है, ता हिरदै प्रभु आप।।''
जहां सच्चाई होती है, वहां प्रभुता आ सकती है। ईमानदारी के प्रति आस्था बनी रहनी चाहिए। आस्था एक बड़ी और स्थायी चीज होती है, और स्नेह व प्रेम से उसका घनिष्ठ संबंध होता है। भले ही कठिनाइयाँ आएं, पर ईमानदारी के प्रति हमारी आस्था अडिग रहे। तीन मूल शब्द — ज्ञान, दर्शन और चारित्र — यदि एक साथ हों, तो चरित्र सहज बन जाता है। यदि ज्ञान के साथ दर्शन आ जाए, तो चारित्र स्वाभाविक रूप से विकसित होता है। जब ज्ञान के साथ अहिंसा के प्रति आस्था जाग जाए, और माया, मृषा, चोरी का वर्जन हो जाए, तो हम ईमानदारी को आचरण में ला सकते हैं। पूज्यवर की अभिवंदना में साध्वी साध्वी शकुन्तलाश्रीजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। साध्वी लब्धिश्रीजी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। अभातेयुप के पूर्व महामंत्री हनुमान लुंकड़ व जसराज बुरड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम-अहमदाबाद के सदस्यों ने गीत का संगान किया। अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति ने स्वागत गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।