
स्वाध्याय
श्रमण महावीर
भगवान् पार्श्व ने सामायिक चारित्र का प्रतिपादन किया था। उनके संघ में सम्मिलित होने वाले समता की साधना का व्रत लेते थे। उनके सामायिक के चार अंग थे-
१. अहिंसा
२. सत्य
३. अचौर्य
४. बाह्यादान (परिग्रह) विरमण।
भगवान् महावीर ने देखा भगवान् पार्श्व के श्रमण ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सम्बन्ध में शिथिल दृष्टिकोण अपनाते जा रहे हैं। भगवान् पार्श्व द्वारा प्रदत्त पूर्व-ज्ञान का प्रयोग चमत्कार-प्रदर्शन में कर रहे हैं। साधना-काल में भगवान को ऐसे अनेक अनुभव हुए थे। मंक्खलिपुत्त गोशालक को अष्टांग-निमित्त की शिक्षा देने वाले श्रमण भगवान् पार्श्व की परम्परा में ही दीक्षित हुए थे। उनके नाम हैं-शाण, कलंद, कर्णिकार, अच्छिद्र, अग्निवैश्यायन और गोमायुपुत्र अर्जुन। वे सुख-दुःख, लाभ-अलाभ और मृत्यु के रहस्यों के पारगामी विद्वान् थे। उनकी भविष्यवाणी बड़ी चमत्कारपूर्ण होती थी वे भगवान् पार्श्व के शासन से पृथक् होकर अष्टांग-निमित्त से जीविका चलाते थे।
भगवान् महावीर इन सारी परिस्थितियों का अध्ययन कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वर्तमान परम्परा में नया प्राण फूंके बिना उसे सजीव नहीं बनाया जा सकताI
नई स्थापनाएं : नई परम्पराएं
भगवान् महावीर ने समता धर्म को वही प्रतिष्ठा दी जो भगवान् पार्श्व ने दी थी। भगवान् ने दीक्षा का प्रारम्भ समता के संकल्प से ही किया और कैवल्य प्राप्त कर सबसे पहले समता धर्म की व्याख्या की। उनके गणधरों ने सर्वप्रथम समता के प्रतिनिधि गन्थ सामायिक सूत्र की रचना की। किन्तु भगवान् ने परिस्थिति के संदर्भ में सामायिक का विस्तार कर दिया। सामायिक के तीन प्रकार हैं-
१. सम्यक्त्व सामायिक-सम्यग् दर्शन।
२. श्रुत सामायिक-सम्यग् ज्ञान।
३. चारित्र सामायिक-सम्यक् चारित्र
भगवान् महावीर को सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान में कोई परिवर्तन करना आवश्यक प्रतीत नहीं हुआ। उन्होंने केवल चारित्र सामायिक का विकास किया।
भगवान् महावीर ने चार महाव्रतों का विस्तार कर उनकी संख्या पांच कर दी। जैसे-
१. अहिंसा
२. सत्य
३. अचौर्य
४. ब्रह्मचर्य
५. अपरिग्रह।
भगवान् ने जितना बल अहिंसा पर दिया, उतना ही बल ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर दिया। उनकी वाणी पढ़ने वाले को इसकी प्रतिध्वनि पग-पग पर सुनाई देती है।
भगवान् ने कहा- 'जिसने ब्रह्मचर्य की आराधना कर ली, उसने सब व्रतों की आराधना कर ली। जिसने ब्रह्मचर्य का भंग कर दिया, उसने सब व्रतों का भंग कर दिया।
जो अब्रह्मचर्य का सेवन नहीं करते, वे मोक्ष जाने वालों की पहली पंक्ति में हैं।