
संस्थाएं
विनय - समर्पण की प्रतिमूर्ति आचार्यश्री महाप्रज्ञ
नाथद्वारा। नाथद्वारा स्थित तेरापंथ भवन में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जन्म दिवस के पावन अवसर पर आयोजित धर्मसभा का आयोजन साध्वी रचनाश्री जी के सान्निध्य में गरिमापूर्वक संपन्न हुआ। साध्वी रचनाश्री जी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जी एक विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे, जिनमें समर्पण और विनय का अनुपम समन्वय था। उनका जीवन गुरु और शिक्षा के प्रति अनन्य आस्था और समर्पण का प्रतीक रहा। बाल्य मुनि अवस्था में ही उन्होंने यह दृढ़ संकल्प लिया था कि कोई ऐसा कार्य नहीं करेंगे जो उनके गुरु को अप्रिय लगे।
साध्वीश्री ने बताया कि उन्हें उनकी माता से प्रारंभ से ही आध्यात्मिक संस्कार प्राप्त हुए। टमकोर में मुनि छबील जी स्वामी से प्रेरणा प्राप्त कर उन्होंने अध्यात्म का मार्ग चुना और तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षा ली। प्रारंभ में वे अज्ञ थे, फिर विज्ञ बने, तत्पश्चात विशेषज्ञ और अंततः ‘महाप्रज्ञ’ के रूप में प्रतिष्ठित हुए। उनके प्रवचन सरल, सरस और प्रभावशाली होते थे, जिससे प्रत्येक श्रोता को ऐसा प्रतीत होता था मानो वह प्रवचन विशेष रूप से उसी के लिए हो। इस अवसर पर साध्वी प्राज्ञप्रभा जी ने शासन माता द्वारा रचित कविता का भावपूर्ण पाठ किया। साध्वीवृंद द्वारा सामूहिक गीत प्रस्तुत किया गया। महासभा सदस्य कांतिलाल धाकड़, महिला मंडल अध्यक्षा मंजू पोरवाल एवं फतेहचंद बोहरा ने भी अपने भाव प्रकट किए। कार्यक्रम की शुरुआत महिला मंडल की बहनों द्वारा मंगलाचरण से हुई। संचालन साध्वी गीतार्थप्रभा जी ने किया।