एकादशम भिक्षु के सान्निध्य में हुआ ''आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी'' वर्ष का शुभारंभ

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 8 जुलाई, 2025

एकादशम भिक्षु के सान्निध्य में हुआ ''आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी'' वर्ष का शुभारंभ

विक्रम संवत 2082, आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी का पावन प्रभात, प्रेक्षा विश्व भारती, कोबा का रमणीय प्रांगण और युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की मंगल सन्निधि - आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी समारोह का शुभारंभ। इस ऐतिहासिक अवसर पर तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पट्ट से नीचे खड़े होकर अपनी मंगल वाणी से समारोह का आगाज किया। आचार्यप्रवर ने कहा— आज परम पूजनीय, परम स्तवनीय, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्य भिक्षु स्वामी का 300वां जन्मदिवस है, जिसमें हम बोधि दिवस भी कहते हैं। यह जन्म त्रिशताब्दी वर्ष प्रारम्भ हो रहा है तो हमारा एक वर्ष का उपक्रम बना हुआ है तो मैं महाना आचार्यश्री भिक्षु का स्मरण कर ‘आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष’ के शुभारम्भ की घोषणा करता हूं। इस अवसर पर आचार्यश्री ने एक नया उद्घोष दिया- 'दृढ़ निष्ठा से करें प्रयास, हो सद्ज्ञान-चरित्र विकास।'
पूज्यवर ने आचार्य भिक्षु का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया कि उनका जन्म विक्रम संवत 1783 की आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को राजस्थान के कंटालिया गांव में हुआ था। जन्म से पूर्व उनकी माता ने सिंह का स्वप्न देखा था, जो एक शुभ संकेत था। बाल्यकाल से ही उनमें सत्य के प्रति निष्ठा, तीव्र बुद्धि और अंधविश्वासों के प्रति विद्रोह की भावना थी। उनका विवाह हुआ, वे एक पुत्री के पिता भी बने, किंतु उन्होंने यौवनावस्था में ही पत्नी सहित ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया और एकांतर तप की साधना प्रारंभ की।
सुगणीबाई के असामयिक निधन के बाद भी उनका वैराग्य डिगा नहीं। विक्रम संवत 1808 की मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी को उन्होंने बगड़ी में मुनि दीक्षा ली। दीक्षा के पश्चात उन्होंने आगम, दर्शन, और आचार परंपरा का गहन अध्ययन किया। जब उन्हें संघ में शुद्धाचार की कमी दिखाई दी और प्रयासों के बावजूद उसमें सुधार की कोई संभावना नहीं दिखी, तो विक्रम संवत 1817 की चैत्र शुक्ला नवमी को उन्होंने धर्म की रक्षा हेतु अभिनिष्क्रमण किया। इस क्रांति के पश्चात उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, किंतु उन्होंने सत्य और आत्माराधना का पथ नहीं छोड़ा। गुरुदेव ने कहा कि आचार्य भिक्षु ने पृथक पंथ की स्थापना का संकल्प नहीं लिया था, लेकिन सत्य और साधना की प्रेरणा से लोग स्वयं जुड़ते गए और तेरापंथ की परंपरा का उद्भव हुआ। 'हे प्रभो! यह तेरापंथ' — यह उद्घोष उन्होंने भक्ति और समर्पण से किया, जिससे अहंकार और ममकार दूर रहा।
आचार्य प्रवर ने कहा कि आचार्य भिक्षु का नेतृत्व और प्रबंधन कौशल विलक्षण था। उन्होंने जो मर्यादा व्यवस्था दी, वह आज भी प्रासंगिक है और इतने वर्षों बाद भी बिना किसी परिवर्तन के अक्षुण्ण बनी हुई है। एक आचार्य के नेतृत्व में समस्त साधु-साध्वियों का रहना, उनकी स्वैच्छिक सहमति से नियम पालन, यह तेरापंथ की विशिष्टता है। वे श्रद्धा और तर्क के दुर्लभ समन्वय थे। उनकी तुलना काण्ट जैसे दार्शनिकों से की गई। आचार्य भिक्षु ने शुद्ध साधन से शुद्ध साध्य की प्राप्ति का मार्ग बताया और आत्मौपम्य के सिद्धांत को जन-जन में स्थापित करने का प्रयास किया। उनका कहना था कि धर्म बल प्रयोग या प्रलोभन से नहीं, बल्कि हृदय परिवर्तन से आता है। लौकिक और लोकोत्तर दान-दया की स्पष्ट परिभाषा देते हुए वे उनके मिश्रण के विरोधी थे।
उन्होंने लोकभाषा में रचनाएं कीं — लगभग 38,000 पद्य उनकी साहित्यिक प्रतिभा के साक्ष्य हैं। विक्रम संवत 1860 की भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को उन्होंने सिरियारी में समाधि ली। गुरुदेव ने कहा कि भारत सरकार द्वारा आचार्य भिक्षु के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया, दिल्ली में अस्पताल का नामकरण हुआ, और कई मार्ग, द्वार, चौक उनके नाम पर रखे गए। आचार्य भिक्षु के द्वारा नियुक्त मुनि भारमलजी से जो उत्तराधिकार परंपरा चली, वह आज भी जनकल्याणकारी अवदानों के साथ गतिमान है। गुरुदेव ने कहा कि जन्म दिवस का महत्व तब बढ़ता है जब जन्म लेने वाले का जीवन साधना और सिद्धांत से जुड़ा हो। उन्होंने कहा कि कंटालिया में आगामी चातुर्मास के पश्चात 13 रात्रियों का प्रवास प्रस्तावित है। इस अवसर पर आचार्य प्रवर ने स्वरचित गीत का संगान किया —
'सुगुरु को वंदन शत-शत बार,
भिक्षु को वंदन शत-शत बार।'
आचार्यश्री के इस वर्ष कार्यक्रमों की रूपरेखा आदि का वर्णन करते हुए कहा— यह वर्ष हम सभी के आध्यात्मिक विकास में सहायक बने। आचार्य भिक्षु की आचार निष्ठा और अनुशासन से प्रेरणा लेते रहें। उनकी बनाई गई मर्यादाएं और व्यवस्थाएं आज भी अखण्ड रूप में चल रही हैं। हम उन मर्यादाओं व व्यवस्थाओं के प्रति जागरूक रहें। यह वर्ष सभी के लिए कल्याणकारी रहे। मुख्य कार्यक्रम में भारत सरकार के कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। उन्होंने आचार्यश्री महाश्रमणजी को वंदन करते हुए कहा कि वे भारत सरकार की ओर से इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने नैतिक राजनीति और अणुव्रत के विकास के लिए निरंतर प्रयास करने का संकल्प दोहराया।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रेषित शुभकामना संदेश का वाचन मुख्यमुनि श्री महावीरकुमारजी ने किया। तदुपरान्त जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री भिक्षु की कुछ पुस्तकों का लोकार्पण किया गया, जिन्हें मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने आचार्यश्री के करकमलों में अर्पित किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में 'भिक्षु म्हारे प्रकट्या जी' गीत की प्रस्तुति मुनि ध्रुवकुमारजी एवं मुनि नम्रकुमारजी ने दी।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने आचार्य भिक्षु के गुणों का प्रभावशाली वर्णन करते हुए कहा - जैन आगमों में बोधि शब्द का उल्लेख मिलता है। सूयगड़ो में भगवन ऋषभ ने अपने पुत्रों को कहा - सम्बोधि को प्राप्त करो। जो व्यक्ति वर्तमान में सम्बोधि को प्राप्त नहीं करता वह अगली गति में भी बोधि को प्राप्त नहीं कर सकता। ठाणं सूत्र में तीन प्रकार की बोधि बताई गयी है --ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि। हम आरोग्य, बोधि और समाधि के उत्तम वर की आकांक्षा करते हैं। बोधि अर्थात आतंरिक चेतना, भीतरी ज्ञान जो व्यक्ति को हिताहित का ज्ञान देती है। आचार्य भिक्षु के पास मति, प्रज्ञा का वैभव था जिसके आधार पर वे आगे बढ़ते रहे। वे महान योगी, ध्यानी, ज्ञानी, चिंतक, दार्शनिक, प्रवचनकार, कवि, इन्द्रियजयी, परीषहजयी थे और इन सबसे ऊपर महान संत थे। उन्होंने प्रज्ञा के सहारे आगमों का मंथन किया, और उसके आधार पर तत्त्व का नवनीत जनता के समक्ष प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया, अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के स्वागताध्यक्ष गौतम बाफना, अध्यक्ष अरविंद संचेती, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुज पंकजभाई मोदी, मनीष बरड़िया, कंटालिया तेरापंथ समाज की ओर गौतम सेठिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। कंटालियावासियों ने इस अवसर पर गीत का संगान किया।
तेरापंथ समाज-अहमदाबाद ने इस अवसर पर गीत का सामूहिक संगान किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ ‘आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष’ के शुभारम्भ समारोह के प्रथम दिन का कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का सफल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।